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Dating Apps: राइट पार्टनर की ख्वाहिश में रॉन्ग डिसीजन बिगाड़ रहे युवाओं का फ्यूचर

Dating Apps: डेटिंग एप्स के जरिए युवा एक दूसरे के साथ धड़ल्ले से मिल रहे हैं. लोग एक साथ कई लोगों से मैच कर रहे हैं. इसके कई तरह के इफैक्टस दिख रहे हैं. कहीं युवा मेंटल परेशानियों का शिकार हो रहे हैं तो कहीं सामाजिक विकृतियां भी फैल रही हैं.

By Neha Singh | May 21, 2024 10:10 AM
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Dating Apps: कमिटमेंट…ये क्या होता है. देखो मुझे अभी कोई कमिटमेंट नहीं चाहिए. हां, हम साथ घूम सकते हैं. खा-पी सकते हैं. हूक-अप कर सकते हैं, लेकिन इससे ज्यादा मुझसे कोई उम्मीद मत रखना. ऐसी बातें आजकल आपको हर दूसरे युवा के बीच सुनने को मिल जाएंगी. बिहार-झारखंड समेत हर छोटे बड़े राज्य के शहरों में यह कल्चर फैल रहा है. मेट्रोपॉलिटन शहरों से शुरू डेटिंग एप्स टीयर 2 और 3 शहरों में भी चलन में आ चुके हैं. युवा वर्ग इनसे वाकिफ है. डेटिंग एप्स का कल्चर से राइट पार्टनर की ख्वाहिश में लिए गए रांग डिसीजन से युवाओं का फ्यूचर बर्बाद भी हो रहा है.

भले इन एप्स में एज लिमिट का बंधन है, पर टीनएजर्स ज्यादा उम्र बताकर इन एप्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं. डेटिंग एप्स के चक्कर में युवा इमोशनल ट्रैजिडी में भी फंस रहे हैं. इनमें छोटे शहरों के कम उम्र के युवा ज्यादा हैं. एप्स से बने कनेक्शंस युवाओं को क्राइम तक भी ले जा रहे हैं. दिल्ली व गाजियाबाद में इस तरह के दो मामले सामने आ चुके हैं. डेटिंग एप्स की मैनेजमेंट कमिटी की तरफ से जारी डाटा के मुताबिक इन एप्स पर 18 से 40 वर्ष तक के युवा मौजूद हैं. कोरोना पीरियड में इन एप्स के यूजर्स की संख्या में अचानक वृद्धि हुई थी. उस समय यूजर्स में 60 प्रतिशत की अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.

टीयर-2 सिटीज के 90 प्रतिशत युवा डेटिंग ऐप्स पर

झारखंड, बिहार के छोटे-बड़े शहरों से लेकर, जयपुर, भोपाल, इंदौर तक के युवा इनका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. डेटिंग एप द्वारा जारी डाटा के अनुसार इन टीयर 2 शहरों के लगभग 90 प्रतिशत युवा डेटिंग एप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. इन एप्स में जो युवाओं के बीच सबसे चलन में हैं उनमें बंबल, आइसले, टिंडर, हैपेन, ओके क्यूपिड, क्विक-क्विक, फ्लिप, कॉफी मीट्स बैगेल… जैसे एप्स हैं. यह ‘इश्क के खेल’ के रूप में युवाओं के बीच फैल रहा है.

मैच…चैट…डेट…

मैच…चैट…डेट…ये तीन ऐसे स्टेप्स हैं जिन्हें युवा सेकेंड में तय कर लेते हैं. फोन पर आजकल उंगलियां चलाते हुए युवा अपनी पसंद के हिसाब से राइट स्वैप करते हैं…फिर मैच होते हैं. मैच होते ही चैटिंग का दौर शुरू होता है जो जल्द ही डेट तक पहुंच जाता है. इस तकनीक के दौर में लोगों को अपना खास चुनने के लिए एक राइट स्वैप के साथ मैच करने की जरूरत होती है. इन सबके कर्ता-धर्ता होते हैं डेटिंग एप्स जिसे आज करोड़ो युवा इस्तेमाल कर रहे हैं. ये एप लोगों को एक दूसरे की अलग-अलग प्रिफरेंस और च्वाइस के हिसाब से ऑप्शन देते हैं और इनके मैचमेकर बनते हैं. हालांकि, इन एप्स पर शुरुआत पसंद के साथ होती है. कई लोग अपना साथी भी ढूढ़ लेते हैं तो कई लोग इसकी अधिकतर ऑप्शन की दुनिया में खो जाते हैं. इनमें से ज्यादातर एप्स फ्री होते हैं, लेकिन प्रीमियर के ऑप्शन के लिए कुछ सब्सक्रिपशन होते हैं. इन मैचिंग एप्स पर लोगों को उनकी उम्र, पसंद-नापसंद और लोकेशन के हिसाब से ऑप्शन दिए जाते हैं.

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कई करोड़ यूजर, नहीं है कोई भरोसेमंद

डेटिंग एप की मैनेजमेंट टीम के हिसाब से यूजर्स कई डेटिंग एप यूज करते हैं, जिसके थ्रू ये अपने लिए अपना मनपसंद पार्टनर ढ़ूंढ़ते हैं. हर एप को लाखों की संख्या में लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. इतने एप्स द्वारा लोगों के फ्रिक्वेंट इस्तेमाल के बाद भी युवाओं को अपना मनपसंद पार्टनर नहीं मिलता है. यूजर्स की मानें तो उन्हें इतने सारे ऑप्शन मिलते हैं कि उनमें से चुनना काफी मुश्किल हो जाता है.

खबर में आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कुछ यूजर्स का हाल

पूणे की एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाली सॉफ्टवेयर इंजीनियर कनक बताती है कि इन डेटिंग एप्स ने जिंदगी को काफी अलग बना दिया है. इन एप्स के जरिए वर्चुअल डेटिंग को काफी बढ़ावा मिला है. अब लोगों के पास ऑप्शन कहीं ज्यादा है. इंसान आसानी से स्वाइप कर के सेकेंड में शिफ्ट कर सकता है. इससे कंफ्यूजन बहुत बढ़ता है. इससे कुछ लोगों की जिंदगी पर खासा असर पड़ता है. कुछ लोग जहां फ्लर्ट और इन सारी चीजों को नॉर्मल लेते हैं तो कुछ लोग इस दरम्यान काफी इमोशनल जुड़ाव महसूस करने लगते हैं, जिससे काफी हर्ट भी हो जाते हैं.

रांची के बिजनेस मैन हिमांशु शेखर बताते हैं कि इन डेटिंग एप को यूज करने का मेरा एक्सपीरिएंस बहुत अच्छा रहा. हिमांशु कहते हैं कि जब मैंने शुरू में इसे यूज करना शुरू किया था तो बहुत लोगों से बात होती थी. फिर मुझे मेरी पार्टनर मिली, हमने एक दूसरे को राइट स्वाइप किया…थोड़ी बहुत बातें हुई..हम मिले और उसके बाद हमने एक दूसरे को हमेशा के लिए पसंद किया. हिमांशु बताते हैं कि उन दोनों ने साथ में उस ऐप को डिलीट किया. आज उन दोनों के रिश्ते को 3 साल हो गए.

पटना के एक अस्पताल में मैनेजमेंट देखने वाली रिया गुप्ता बताती हैं कि डेटिंग एप का उनका एक्सपीरिएंस बहुत अच्छा नहीं रहा है. वो कहती है कि मैने 3-4 डेटिंग एप्स का इस्तेमाल किया.कई लड़कों से बात हुई पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसके साथ लांग टर्म रहा जा सके, जिनके साथ कनेक्शन बन सके. हर बार नए इंसान से मिलो और बात करो और फिर उसे डिलीट करो, इससे मुझे मेंटली परेशानी होने लगी. मेरी तरह और भी कई लड़के और लड़कियां ऐसे हैं, जिनके साथ ये परेशानी हो रही है. रोज घंटों डेटिंग एप्स का इस्तेमाल उन्हें थका रहा है और मेंटली परेशान कर रहा है.

चार्जेज एप्लीकेबल

ये एप्स लोगों को एक दूसरे की अलग-अलग प्रिफरेंस और च्वाइस के हिसाब से ऑप्शन देते हैं और इनके मैचमेकर बनते हैं. हालांकि, इन डेटिंग एप्स पर शुरुआत पसंद के साथ होती है. ज्यादातर एप्स फ्री होते हैं, लेकिन प्रीमियर के ऑप्शन के लिए कुछ सब्सक्रिपशन होते हैं. इन मैचिंग एप्स पर लोगों को उनकी उम्र, पसंद-नापसंद और लोकेशन के हिसाब से ऑप्शन दिए जाते हैं.

दो चर्चित मामले: मौत के अंजाम तक ले गए डेटिंग ऐप

18 मई 2022 को दिल्ली में एक शख्स ने अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या कर दी थी. दोनों की मुलाकात भी 2019 में डेटिंग एप से ही हुई थी. आरोपी आफताब अमीन पूनावाला ने कबूल किया था कि वह 2019 में एक डेटिंग ऐप के जरिए श्रद्धा से मिला था. उसने अपनी गर्लफ्रेंड के 35 टुकड़े किए थे.

अब ताजा मामला गाजियाबाद का है. एक शख्स ने डेटिंग एप पर समलैंगिक पार्टनर को खोजा. बीते 2 मई को उसकी हत्या कर दी. हत्या से पहले उससे संबंध बनाने का खुलासा भी पुलिस की जांच में हुआ. ये दो मामले बताते हैं कि डेटिंग एप युवाओं में कैसी विकृति फैला रहे हैं.

62.2 करोड़ लोग इंटरनेट के एक्टिव यूजर

अपने देश में ऑनलाइन डेटिंग एप्स की बात करें तो इनका कारोबार 53.6 करोड़ डॉलर के टर्न ओवर तक फैला हुआ है. कारोबार में 17. 61 प्रतिशत की वार्षिक बढ़ोतरी भी हो रही है. भविष्य की बात करें तो इनके यूजर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है. 44 प्रतिशत लोग हैं ऑनलाइन डेटिंग की तरफ मुखातिब हुए हैं. आईक्यूब की रिपोर्ट के मुताबिक 62.2 करोड़ लोग इंटरनेट के एक्टिव यूजर हैं, जिनपर डेटिंग एप्स की नजर है.

62.2 करोड़ लोग इंटरनेट के एक्टिव यूजर

अपने देश में ऑनलाइन डेटिंग एप्स की बात करें तो इनका कारोबार 53.6 करोड़ डॉलर के टर्न ओवर तक फैला हुआ है. कारोबार में 17. 61 प्रतिशत की वार्षिक बढ़ोतरी भी हो रही है. भविष्य की बात करें तो इनके यूजर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है. 44 प्रतिशत लोग हैं ऑनलाइन डेटिंग की तरफ मुखातिब हुए हैं. आईक्यूब की रिपोर्ट के मुताबिक 62.2 करोड़ लोग इंटरनेट के एक्टिव यूजर हैं, जिनपर डेटिंग एप्स की नजर है.

घातक इफैक्टस

ज्यादा ऑप्शंस बढ़ाते हैं फ्रस्ट्रेशन.
लोगों में हीन भावना पैदा होती है.
इसकी आदत लग जाती है.

डेटिंग एप्स युवाओं को मेंटल डिसऑर्डर की ओर ले जा रहे हैं. इन एप्स में ज्यादा ऑप्शंस होने की वजह से युवा किसी एक के साथ टिके नहीं रह रहे. ऐसे में पार्टनर को रिजेक्शन का खतरा हमेशा बना रहता है. मिस्टर या मिसेज राइट की तलाश कभी खत्म नहीं हो रही. ऐसे में संबंधों का बनना और टूटना लगा रहता है. इससे भावनात्मक रूप से युवाओं को टॉर्चर तक का सामना करना पड़ रहा है. एप्स से बने कनेक्शंस को सीरियसली लेना युवाओं को भारी पड़ रहा है. डॉ प्रियंका कुमारी, मनोचिकित्सक

डेटिंग ऐप्स क्या हैं और इनका इस्तेमाल किसके लिए होता है?

डेटिंग ऐप्स ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जहां लोग एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं, खासकर नए रिश्ते या फ्लर्टिंग के लिए। ये ऐप्स उपयोगकर्ताओं को उनकी पसंद, उम्र और लोकेशन के आधार पर संभावित मैच पेश करते हैं।

क्या डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल केवल युवा करते हैं?

हालांकि डेटिंग ऐप्स में विभिन्न आयु समूहों के लोग मौजूद हैं, लेकिन इनमें 18 से 40 वर्ष के युवा सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। छोटे शहरों में भी युवाओं के बीच इनका चलन बढ़ रहा है।

क्या डेटिंग ऐप्स का उपयोग सुरक्षित है?

डेटिंग ऐप्स का उपयोग करते समय सावधानी बरतना महत्वपूर्ण है। कुछ मामलों में, गलत कनेक्शन और आपराधिक गतिविधियों की घटनाएं सामने आई हैं। उपयोगकर्ताओं को अपने व्यक्तिगत जानकारी को साझा करने में सतर्क रहना चाहिए।

क्या डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल करने से मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है?

जी हां, कुछ उपयोगकर्ताओं ने बताया है कि डेटिंग ऐप्स का लगातार उपयोग मानसिक तनाव और फ्रस्ट्रेशन का कारण बन सकता है। कई बार, अधिक विकल्प होने से निर्णय लेने में कठिनाई होती है, जिससे हीन भावना उत्पन्न हो सकती है।

क्या डेटिंग ऐप्स मुफ्त होते हैं?

ज्यादातर डेटिंग ऐप्स का उपयोग मुफ्त में किया जा सकता है, लेकिन इनमें प्रीमियम विकल्प भी होते हैं जिनके लिए सब्सक्रिप्शन शुल्क लगता है। ये प्रीमियम सुविधाएं उपयोगकर्ताओं को और अधिक विकल्प और सुविधाएं प्रदान करती हैं।

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