Loading election data...

Deen Dayal Upadhyay : मार्क्सवाद के खिलाफ दिया एकात्म मानववाद का दर्शन, पर क्यों नहीं हुआ प्रयोग 

जानिए क्या है भाजपा का राजनीतिक दर्शन, दूसरी विचारधाराओं से कितनी है अलग

By Mukesh Balyogi | September 25, 2024 7:06 AM

Deen Dayal Upadhyay : दीनदयाल अंत्योदय योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम, दीनदयाल उपाध्याय स्वनियोजन योजना का नाम तो आपने जरूर सुना होगा. ये सारी भारत सरकार की योजनाएं हैं. 

इनके अलावा विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से भी पंडित दीनदयाल ग्रामोद्योग रोजगार योजना, दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना, पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्वयं योजना, दीनदयाल उपाध्याय स्वरोजगार योजना, दीनदयाल उपाध्याय गृह आवास(होम-स्टे) विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय किसान कल्याण योजना, दीनदयाल उपाध्याय रसोई योजना, दीनदयाल उपाध्याय वरिष्ठ नागरिक तीर्थयात्रा योजना का भी संचालन किया जा रहा है. 

इसी तरह राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का एकीकरण कर दीनदयाल अंत्योदय योजना का नाम दिया गया था. भाजपा सरकारें चाहे केंद्र में हो या राज्य में, किसी भी नई योजना का नामकरण अधिकतर दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर ही होता है. इससे साफ है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय भाजपा के लिए सबसे बड़े प्रेरणा पुरुष हैं. उन्हीं दीनदयाल उपाध्याय की जयंती 25 सितंबर को है. 1916 में उनका जन्म हुआ था. उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का नगला चंद्रभान उनका पैतृक गांव था. वे जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे. 

Deen Dayal Upadhyay : दीनदयाल उपाध्याय क्यों हैं भाजपा के सबसे बड़े प्रेरणा पुरुष? 

केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों की ओर से सबसे अधिक योजनाएं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर शुरू किए जाने से यह तो साफ है कि वे भाजपा के चिंतन, आदर्श, विचार-प्रक्रिया और कार्यपद्धति की गहराइयों में मौजूद हैं. 

भाजपा के पूर्वावतार जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे होने के कारण यह भी साफ है कि वे इस पार्टी के इतिहास के सबसे बड़े नेताओं में शुमार हैं. परंतु जनसंघ और भाजपा को मिलाकर लगभग दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए हैं. फिर भी दीनदयाल उपाध्याय जैसा सम्मान और श्रद्धा किसी दूसरे को मिलती नहीं दिखती है. इसका राज क्या है? इसका जवाब राजनीतिक विश्लेषक गौतम चौधऱी देते हैं. 

गौतम चौधरी कहते हैं- देश के राजनीतिक क्षितिज पर जब जनसंघ अवतरित हुआ तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद को बाकी पार्टियों से अलग दिखाने की थी, यानी पार्टी विथ डिफरेंस साबित करने की थी. 

जनसंघ का उस समय का दावा यह था कि वह भारत और भारतीयता के विचारों की एकमात्र प्रतिनिधि पार्टी है. बाकी पार्टियां पाश्चात्य चिंतन के आधार पर काम करती हैं और भारतीय मूल्यों की उपेक्षा करती हैं.

 जनसंघ के नेता उस समय अपने भाषणों में कहा भी करते थे या आज भी संघ परिवार से जुड़े विचारक कहते हैं कि अंग्रेज भारत छोड़कर तो चले गए लेकिन हमें अपने विचारों का गुलाम बना रखा है. ऐसे में जनसंघ के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि खुद को अलग विचारधारा के तौर पर भी प्रस्तुत करे. ‘न अमेरिका का रास्ता, न रूस का रास्ता, हमें चाहिए भारत का रास्ता ’ के नारे से भी काम नहीं चलने वाला था. 

हिंदुत्व के राजनीतिक एजेंडे से भी बात नहीं बन रही थी. क्योंकि, हिंदू महासभा जैसी पार्टियां भी उस दौर में थीं. इसलिए जनसंघ के नेताओं ने पूंजीवाद और समाजवाद दोनों से अलग नई विचारधारा की बात करनी शुरू कर दी. ‘Third Way’ यानी तीसरा रास्ता उस समय जनसंघ या यों कहे कि पूरे संघ परिवार के विचारकों के प्यारे शब्द थे. गौतम चौधरी के मुताबिक, जनसंघ के अधिवेशनों में ‘Third Way’ नाम से वैकल्पिक आर्थिक नीति या सामाजिक नीति की बात की जाती थी. अब इस  ‘Third Way’ के व्यापक संदर्भों में सैद्धांतिकरण की जरूरत थी. उस सैद्धांतिकी की नींव भी हिंदू चिंतन और भारतीय परंपरा से जुड़ा होना आवश्यक था. इसलिए भारत में पहले से मौजूद ऐसे विचारों की तलाश होने लगी, जिसे वैचारिक अधिष्ठान (Ideological Paradigm) के रूप में स्वीकार कर थोड़े से बदलाव के साथ जनसंघ की राजनीतिक विचारधारा घोषित किया जा सके.

 इसी बीच उत्तराखंड के अल्मोड़ा निवासी विद्वान बद्री साह ठुलघरिया लिखित पुस्तक ‘दैशिक शास्त्र’ की प्रति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं ने डॉ. मुरली मनोहर जोशी को सौंपी. मुरली मनोहर जोशी ने इसे जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय को दिया. इस पर जनसंघ के नेताओं ने चिंतन-मंथन किया. फिर इस आधार पर पूंजीवाद और समाजवाद से अलग  वैकल्पिक दर्शन का खाका खींचने की जिम्मेवारी पंडित दीनदयाल उपाध्याय को सौंपी गई. इस तरह एकात्म मानववाद दर्शन(Integral Humanism Philosphy) का प्रारंभिक प्रारूप तैयार हुआ. इसके उपरांत 1965 में हुए भारतीय जनसंघ के विजयवाड़ा अधिवेशन में एकात्म मानववाद को पार्टी के आधिकारिक दर्शन के रूप में स्वीकार किया गया. भारतीय जनता पार्टी के संविधान की धारा-3 के मुताबिक आज भी पार्टी का राजनीतिक दर्शन यही है. 

Deen dayal upadhyay : मार्क्सवाद के खिलाफ दिया एकात्म मानववाद का दर्शन, पर क्यों नहीं हुआ प्रयोग  5

Deen dayal upadhyay : मार्क्सवाद के खिलाफ दिया एकात्म मानववाद का दर्शन, पर क्यों नहीं हुआ प्रयोग  6

Deen Dayal Upadhyay : क्या मार्क्सवाद और समाजवाद का विकल्प है एकात्म मानववाद?

राजनीतिक विश्लेषक गौतम चौधरी कहते हैं कि मार्क्सवाद तो राजनीतिक विचारधारा है. इसका मूल दर्शन द्वंद्वात्मक भौतिकतावाद है. एकात्म मानववाद को द्वंद्वात्मक भौतिकतावाद(Dialectic Materialism) के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश तो जरूर की गई थी, पर दोनों के अधिष्ठान(Paradigm) अलग-अलग हैं. 

द्वंद्वात्मक का विपरीतार्थक एकात्म और भौतिकतावाद का विपरीतार्थक मानवतावाद मानकर कथित वैकल्पिक दर्शन का नाम रख दिया गया. यहीं भूल हो गई. दरअसल, एकात्म मानववाद कोई मौलिक विचार नहीं था. यह भारतीय परंपरा में पहले से मौजूद विचारों की व्याख्या थी. दूसरा, द्वंद्वात्मक भौतिकतावाद एक विश्वदृष्टि(Worldview) है. किसी भी विचारधारा के विश्वदृष्टि होने के लिए उन्हें तीन सवालों के जवाब देने होते हैं-1. सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई है? 2. सृष्टि की अंतिम परिणति क्या है? और (3) सृष्टि की उत्पत्ति और परिणति के बीच का मार्ग कौन सा है? मार्क्सवाद में इन सवालों के जवाब हैं पर एकात्म मानववाद में इनके जवाब नहीं हैं. इस कारण एकात्म मानवाद विश्वदृष्टि की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है. एकात्म मानववाद के मार्क्सवाद के विकल्प होने में आधार के स्तर पर यह बड़ा मौलिक अंतर है. 

Deen Dayal Upadhyay : एकात्म मानववाद को जमीन पर उतारने में क्या है बाधा?

गौतम चौधरी कहते हैं कि पूंजीवाद,  साम्यवाद, समाजवाद, गांधीवाद आदि विचारधाराएं कितना सफल और कितना असफल रहीं, यह बहस का विषय है. परंतु, इन विचारधाराओं के पॉलिटिकल, सोशल और इकोनॉमिक ट्रायल हुए. इनके एजेंडे को लागू कराने के लिए राजनीतिक संघर्ष और आंदोलन हुए. इनके इकोनॉमिक मॉडल स्वीकार और खारिज किए जाते हैं. कोई भी राष्ट्र और समाज जब झंझावातों में फंसा तो मार्क्सवाद, समाजवाद या पूंजीवाद की रोशनी में इनके हल खोजने की कोशिश की गई. एकात्म मानववाद को यह सौभाग्य हासिल नहीं हुआ. 

जब एकात्म मानववाद के प्रयोग ही नहीं हुए तो इसकी सार्थकता क्या है? जवाब में गौतम चौधरी कहते हैं कि यही तो विचार का विषय है. क्योंकि, दुनिया पूंजीवाद और समाजवाद दोनों का विकल्प चाहती है. नए वैकल्पिक विचार की तलाश भी है.

Deen dayal upadhyay : मार्क्सवाद के खिलाफ दिया एकात्म मानववाद का दर्शन, पर क्यों नहीं हुआ प्रयोग  7

Deen Dayal Upadhyay : क्या एकात्म मानववाद केवल बौद्धिक विमर्श का हथियार भर है?

इंडियन इंंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन, जम्मू के प्रोफेसर अनिल सौमित्र कहते हैं कि सच्चाई यह है कि दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन व्यापक बौद्धिक विमर्श से भी अछूता है. केवल हिंदुत्व विचारधारा के बौद्धिकों के बीच इस पर चर्चा होती है. इसके राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक मॉडलों को लागू करने की बाद तो दूर इस पर व्यापक शोध का भी अभाव है. जबकि पूंजीवाद और समाजवाद दोनों से निराश दुनिया को एक नए विकल्प की तलाश है. एकात्म मानव दर्शन इस तलाश को पूरा कर सकता है. 

सामाजिक अनुसंधान के संस्थानों को एकात्म मानव दर्शन के व्यवहारिक आयामों पर शोध को बढ़ावा देने की जरूरत है. इससे इसके पॉलिटिकल, सोशल और इकोनॉमिक मॉडल डेवलप किए जा सकते हैं. उसके बाद इसके अप्लायड डायमेंशन पर चर्चा हो सकेगी. इससे पता चलेगा कि किन परिस्थितियों में इसे किस प्रकार आजमाया जा सकता है. 

अनिल सौमित्र, प्रोफेसर, आईआईएमसी-जम्मू

Deen Dayal Upadhyay : शेयर होल्डर की जगह स्टेक होल्डर्स की बात करना ही एकात्म मानववाद की सफलता

एकात्म मानववाद केवल भाजपा के संविधान तक ही सीमित रहेगा या जनता के बीच भी जाएगा? दीनदयाल उपाध्याय की आर्थिक नीति पर शोध पुस्तक लिखने वाले बिहार में दरभंगा स्थित एमजी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. सुरेंद्र गाईं बताते हैं कि दीनदयाल उपाध्याय जी ने सार्वभौम मूल्यों की स्थापना के लिए भारतीय चिंतन प्रणाली के सार के रूप में एकात्म मानववाद को प्रस्तुत किया. 

दुनिया का कॉरपोरेट जगत अब शेयर होल्डर्स के लाभ की जगह स्टेक होल्डर्स के लाभ की बात करने लगा है, यही एकात्म मानववाद की सफलता है. निःसंदेह रूप से इनमें से अधिकतर दिग्गजों ने एकात्म मानववाद नामक शब्द भी नहीं सुना होगा. परंतु दीनदयाल जी ने जिन सार्वभौमिक मूल्यों की बात की, दुनिया का बौद्धिक जगत भी अब उसी तरह की बात कर रहा है. दीनदयाल जी ने अपने दर्शन में पूरे ब्रह्मांड को एक ईकाई मानकर विचार करने का आग्रह किया. उन्होंने यह स्थापना दी कि राष्ट्र हित मानव जाति के हित का विरोधी नहीं है. इसी तरह निजी हित परिवार या समाज हित का विरोधी नहीं है. सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. एक के हित में सबका हित है. दूसरी ओर पश्चिमी जगत में समाजवाद का मतलब व्यक्तिगत हित का विरोधी होना है.

Deen Dayal Upadhyay : क्या लागू हो पाएगा Mass Production नहीं Production By Masses?

दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के तहत Mass Production नहीं Production By Masses की चर्चा की गई है. यानी अधिक उत्पादन की जगह अधिक लोगों के द्वारा उत्पादन की बात है. क्या वर्तमान परिस्थितियों में यह संभव है?  डॉ. सुरेंद्र गाईं जवाब देते हैं कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय समता को ममता का आधार देने की बात करते हैं. उनके मुताबिक दुनिया में व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के बीच परस्पर पूरकता और तादात्म्य है, चाहे किसान-मजदूर हो या व्यापारी-उद्यमी सबकी अपनी-अपनी गरिमा है और उसके उचित निर्धारण और मान्यता से ही व्यवस्था का ताना-बाना बरकरार रह पाता है. 

विकेंद्रीकरण, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, आत्मनिर्भरता, स्वरोजगार ,पशु और श्रम केंद्रित तकनीकी सोच के साथ यदि विकास की दिशा में हम अग्रसर होंगे तो निश्चित रूप से दीनदयाल के सपनों का भारत बनाने में समर्थ हो पाएंगे. सामाजिक परिवर्तन की दिशा में दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा चित्रकूट,बीड और झारखंड में कृषि, कुटीर उद्योग और सेवा के क्षेत्र में कुछ प्रकल्प चलाये जा रहे हैं. इसके अलावा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा  कुछ अन्य प्रकल्प भी चलाये जा रहे हैं. स्वदेशी विचार मंच के द्वारा भी एक स्वदेशी मुहिम चलाई जा रही है. 

Deen dayal upadhyay : मार्क्सवाद के खिलाफ दिया एकात्म मानववाद का दर्शन, पर क्यों नहीं हुआ प्रयोग  8

Deen Dayal Upadhyay : क्या राष्ट्रवाद और एकात्म मानववाद साथ चल सकते हैं? 

हिंदू विचारक प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज कहते हैं कि राष्ट्रवाद और एकात्म मानववाद साथ नहीं चल सकते हैं. क्योंकि, दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद में पूरे विश्व ब्रह्मांड को एक इकाई माना गया है. राष्ट्रवाद की जगह राष्ट्रभक्ति शब्द ज्यादा उपयुक्त है. राष्ट्रवाद तो यूरोप के धूर्त नेताओं द्वारा गढ़े गए शब्द हैं.

रामेश्वर मिश्र पंकज के मुताबिक, एकात्म मानववाद पूंजीवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद और गांधीवाद से ज्यादा व्यवहारिक है. मार्क्सवाद, समाजवाद और गांधीवाद तो केवल नारे भर हैं. जो सत्ता को सुरक्षा देने के लिए वैचारिक कवर का काम करते हैं. 

सच तो यह है कि राजनीति विचारधारा के आधार पर चलती ही नहीं है, या तो उस देश की संस्कृति के आधार पर चलती है या फिर वहां की परिस्थितियों के आधार पर चलती है. मार्क्स के विचार के आधार पर भी दुनिया में कहीं की सरकार नहीं चली. कहीं  लेनिन, कहीं माओ और कहीं होची मिन्ह के आधार पर हिंसा के बदौलत कब्जाई गई सत्ता चली. मार्क्सवाद की कोई भी एक व्याख्या दूसरी से मेल नहीं खाती है. समाजवाद और गांधीवाद का भी यही हश्र रहा. इतना जरूर है कि इन सभी ने अपने प्रचार-तंत्र के इतने व्यापक नेटवर्क बनाए कि लगता है कि ये हर जगह छाये हुए हैं. 

Deen Dayal Upadhyay : एकात्म मानववाद को धरातल पर उतारने के लिए तंत्र बनाने होंगे

रामेश्वर मिश्र पंकज कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी की राजनीतिक विचारधारा एकात्म मानववाद है. अब दीनदयाल जी के नाम के साथ उनके विचारों को भी आगे बढ़ाने की जरूरत है. 

एकात्म मानववाद को धरातल पर उतारने के लिए हमें शोधपीठों के नेटवर्क बनाने होंगे. हमें जीवन के हर क्षेत्र के लिए एकात्म मानववाद के तहत प्रैक्टिकल एप्रोच पेपर तैयार करने होंगे. जैसे- एकात्म मानववाद के तहत न्याय व्यवस्था कैसे काम करेगी. शिक्षा प्रणाली कैसी होगी. अर्थव्यवस्था का प्रैक्टिकल मॉडल कैसा होगा? उन्हें आजमाकर परखने के बाद फिर ट्रायल एंड एरर प्रोसेस से बार-बार नए-नए आयाम विकसित करने होंगे. 

एकात्म मानववाद मार्क्सवाद और गांधीवाद से अधिक प्रामाणिक है. इसे व्यवहारिक धरातल पर उतारने के लिए पहचान करने वाली संस्थाओं को तैयार करने की जरूरत है.

प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज, हिंदू विचारक 

ALSO READ: Controversy On Dinkar As National Poet : राष्ट्रकवि की कसौटी पर कितने खरे हैं दिनकर? क्यों उठते हैं विवाद?

Next Article

Exit mobile version