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Diabetes patients: डायबिटीज के मरीज स्ट्रोक के खतरे को टालें

डायबिटीज के मरीजों में लिवर व किडनी के खराब होने कि तरह ही स्ट्रोक का भी खतरा ज्यादा रहता है. हालांकि, सतर्कता बरत कर डायबिटीज से पीड़ित स्ट्रोक के खतरे को टाल सकते है. इसके लिए सबसे जरूरी है कि आप स्वस्थ जीवनशैली को अपनाएं.

Diabetes patients: अक्सर आपने लोगों को बातचीत करते सुना होगा कि अमुक व्यक्ति के पिता/भाई को ‘स्ट्रोक’ हो गया था. उनको डायबिटीज व ब्लड प्रेशर पहले से जरूर था, पर वह चलते-फिरते थे, पर जबसे उन्हें स्ट्रोक हुआ, तबसे उनका टहलना बिल्कुल बंद हो गया. अब तो अपनेआप बिना मदद के वह बाथरूम तक भी नहीं जा पाते. यह भी सुनने में आया होगा कि ‘स्ट्रोक’ के बाद एक हाथ या एक पैर में कमजोरी आ गयी, तबसे चलते समय लड़खड़ाने लगे हैं और चलने के लिए सहारा देना पड़ता है. आपने यह भी सुना या देखा होगा कि ‘स्ट्रोक’ के बाद आपके परिचित बात-बात में अत्यंत भावुक हो उठते हैं और आंखों में आंसू भर लेते हैं. कुछ लोगों को स्ट्रोक के बाद जरूरत से ज्यादा गुस्सा आने लगता है. कुछ लोगों की स्ट्रोक के बाद स्मरण शक्ति भी कमजोर हो जाती है.

आखिर क्या है यह स्ट्रोक

स्ट्रोक को साधारण भाषा में अचानक आयी बेहोशी कहा जा सकता है. बेहोशी तो ठीक हो जाती है, लेकिन स्ट्रोक का हाथ या पैर पर असर बना रह जाता है. पहले स्ट्रोक का कहर ज्यादातर वृद्ध लोगों पर बरसता था, पर अब डायबिटीज के बढ़ते प्रकोप से कम उम्र में ही लोग स्ट्रोक के शिकार हो रहे हैं. आजकल 50 वर्ष की उम्र से ही एक मधुमेह का मरीज स्ट्रोक का खतरा रहता है. यह तो सर्वविदित है कि डायबिटीज के मरीजों में कैरोटिड नली में चर्बी जमा होने की प्रक्रिया जारी रहने की वजह से शुद्ध खून के बहाव में गतिरोध पैदा हो जाता है.

क्या बला है यह टीआइए

आपने डॉक्टर के मुंह से टीआइए का नाम सुना होगा. यह टीआइए यानी ट्रांजिट इस्चीमिक अटैक का मतलब मिनी स्ट्रोक यानी छोटा स्ट्रोक होता है. इस टीआइए में क्षणिक बेहोशी व कमजोरी आती है, पर यह 24 घंटे से ज्यादा नहीं रुकती और टीआइए का मरीज फिर से बाहरी तौर पर पहले की तरह नार्मल हो जाता है. टीआइए से ग्रस्त मरीजों में एक तिहाई मरीज पांच साल के अंदर ही बड़े यानी जानलेवा स्ट्रोक के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में टीआइए से पीड़ित मरीज को किसी वैस्क्युलर सर्जन के साथ न्यूरोलाजिस्ट से परामर्श लें.

मृत्यु की तीसरी प्रमुख वजह

एक सर्वक्षण के मुताबिक, स्ट्रोक दुनियाभर में मौत का सबसे आम सौदागर है. सारी होने वाली मौतों में स्ट्रोक एक तीसरा मुख्य कारण उभरकर सामने आता है. डायबिटीज व दिल के मरीजों में होने वाली मौतों में यह दूसरे नंबर का सबसे बड़ा कारण है. पुरुषों में महिलाओं की तुलना में डेढ़ गुना स्ट्रोक का ज्यादा खतरा रहता है. यह देखा गया है कि डायबिटीज में होने वाले पहले स्ट्रोक के अटैक में 100 में से तकरीबन 40 लोगों की मौत हो जाती है. बाकी बचे जिंदा लोगों में दूसरी बार स्ट्रोक का कहर टूटने पर लगभग 35 प्रतिशत मौतें होती हैं. इन आंकड़ों से मधुमेह के मरीजों में स्ट्रोक से होने वाली मौत की विभीषिका का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

चर्बी स्ट्रोक की सबसे बड़ी वजह

स्ट्रोक के शिकार लगभग 90 प्रतिशत लोगों में देखा गया है कि उनमें स्ट्रोक का कारण गर्दन में स्थित धमनियों यानी आट्रीज की दीवारों में चर्बी व कैल्शियम का जमाव होना है, जिसे मेडिकल में ‘एथिरोस्क्लेरोसिस’ की प्रक्रिया कहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक तरफ दिमाग को जाने वाली शुद्ध खून की मात्रा में कमी आती है और दूसरी तरफ चर्बी के टुकड़े दिमाग के अंदर स्थित खून की नलियों में पहुंच कर उसे जाम कर देते हैं. यह दिमाग के कुछ हिस्सों को स्थायी रूप से हानि पहुंचा देते हैं. दूसरा एक और मुख्य कारण होता है दिल के किसी कोने में पड़ा खून का कतरा, जिसके टुकड़े गर्दन की नलियों से होते हुए दिमाग में पहुंच कर वहां खून की नली में जाकर फंस जाते हैं और इस तरह स्ट्रोक को जन्म देते हैं.

गर्दन की कैरोटिड नली है स्ट्रोक की जन्मदात्री

वैसे गर्दन व मस्तिष्क के अंदर की सारी खून की नलियां स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार होती हैं, पर गर्दन के अंदर स्थित शुद्ध खून ले जाने वाली धमनियां स्ट्रोक के दो तिहाई मरीजों में जिम्मेदार होती हैं. गर्दन की नलियों में सबसे ज्यादा कैरोटिड नामक शुद्ध खून ले जाने वाली नली का स्ट्रोक में सबसे ज्यादा अहम रोल है. अगर यह कैरोटिड नली स्वास्थ्य व चर्बी रहित रहे, तो 80 प्रतिशत मरीजों में संभवत: स्ट्रोक के अटैक को रोका जा सकता है. कैरोटिड नली दिल से निकलने वाली वह मुख्य खून की नली है, जो मस्तिष्क को शुद्ध रक्त पहुंचाती है. यह कैरोटिड नली गर्दन के दोनों तरफ स्थित होती है. इसकी एक शाखा चेहरे व गर्दन में स्थित अंगों को सप्लाइ करती है, तो दूसरी शाखा जिसे आंतरिक कैरोटिड नली कहते हैं, जो मस्तिष्क को पोषित करती है.

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किन डायबिटीज मरीजों को स्ट्रोक का ज्यादा खतरा

  • बढ़ती उम्र यानी वृद्ध लोग
  • टीआइए के मरीज
  • ब्लड प्रेशर के मरीज
  • दिल की बीमारी से पीड़ित मरीज
  • इसके अलावा मोटे लोग व धूम्रपान के आदी मधुमेह के मरीज स्ट्रोक के बहुत जल्दी शिकार बनते हैं.

बचाव के लिए डायबिटीज के मरीज क्या करें

  • अगर डायबिटीज के मरीज को कभी भी हल्का-सा चक्कर या कमजोरी आने की शिकायत हो, तो तुरंत किसी वैस्क्युलर या कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लें.
  • सबसे पहले अपनी गर्दन में स्थित कैरोटिड नली की जांच करवाएं और उसकी रूग्णता व उसमें प्रवाहित रक्त प्रवाह का सही निर्धारण करवाएं, अन्यथा स्ट्रोक के आक्रमण से बचना मुश्किल हो जायेगा.
  • अगर स्ट्रोक का आक्रमण को चुका है और आपके न्यूरोलोजिस्ट इलाज कर रहे हैं, तो किसी वैस्क्युलर सर्जन को भी एक बार अवश्य दिखला लें, जिससे भविष्य में दोबारा स्ट्रोक होने की आशंका को कम किया जा सके.
  • जो लोग मधुमेह (डायबिटीज) से ग्रस्त हैं, उन्हें अपने ब्लड शुगर को डॉक्टर से परामर्श लेकर नियंत्रित रखना चाहिए.
  • खाली पेट या फास्टिंग में ब्लड शुगर लगभग 80 से 100 के अंदर और खाना खाने के बाद लगभग लगभग 140-150 होना चाहिए.
  • मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए अपने डॉक्टर के परामर्श के अनुसार दवाएं लें और सक्रिय जीवन शैली पर अमल करें.

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