Engineers Day 2024: अभियंता दिवस अभियंताओं के सम्मान के लिए मनाया जाता है, ताकि इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करने वाले इस तरह उत्साहित हों कि रोजगार, विकास और समृद्धि के सपने साकार हो सकें. यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब पुलों के ढहने की बार-बार सुर्खियां बनाने वाले बिहार में एक पुल ऐसा भी है जहां 65 साल से आवागमन बदस्तूर जारी है.
ट्रेन इस पुल से आज भी धड़ाधड़ चलती है. हाल के दिनों में कुछ तकनीकी मरम्मत का काम चल रहा है, पर आवागमन रुका नहीं है बल्कि जारी है. यह पहला बड़ा रेल पुल है, जिसे देश की आजादी के बाद किसी नदी के ऊपर बनाया गया था. यह गंगा नदी पर बना मोकामा का राजेंद्र पुल है. यहां से ट्रेन और बाकी वाहन गुजरते हैं.
Engineers Day 2024: उत्तर और दक्षिण बिहार का विकास सेतु बना था पुल
मोकामा का राजेंद्र पुल जब 1959 में बनकर तैयार हुआ था, उस वक्त यह केवल गंगा नदी के आर-पार जाने के लिए नहीं था. बल्कि लाखों लोगों के सपनों को धरातल पर लाने का पुल था. रोजगार, विकास और समृद्धि के सपनों को राह देने वाला था. उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार के लाखों लोगों को सामाजिक तौर पर जोड़ने वाला भी था. झारखंड भी उस समय बिहार का ही हिस्सा था.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार के सांस्कृतिक सेतु को गंगा की धारा पर उतारने वाला एक दक्षिण भारतीय था. जी हां, वही शख्स जिसके जन्मदिन पर हम अभियंता दिवस मनाकर इंजीनियरों को सम्मानित करते हैं. यानी भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया.
Engineers Day 2024: 90 साल की उम्र में मीलों पैदल चलकर तलाशा सही लोकेशन
जब मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को बिहार में गंगा नदी पर रेल पुल के निर्माण के बारे में सलाह देने के लिए कहा गया, उस समय वे जीवन के नौवें दशक में प्रवेश कर चुके थे. फिर भी उन्होंने यह जिम्मेवारी स्वीकार की. वे गंगा नदी के किनारे मीलों पैदल चले. फिर मोकामा में जाकर वर्तमान राजेंद्र पुल वाली जगह का चुनाव पुल निर्माण हेतु सही लोकेशन के लिए किया.
विश्वेश्वरैया ने न केवल इस पुल के निर्माण स्थल की तलाश की, बल्कि इसका डिजाइन भी तैयार किया. 1962 में देहांत होने तक वे पुल के निर्माण कार्य में प्रगति की जानकारी लेते रहे. मोकामा के इस रेल पुल का शिलान्यास 1955 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया. इस पुल का उद्घाटन 1959 में प्रधानमंत्री रहते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया.
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