Flavours of Khoya: शुरू में ही यह कहना बेहतर रहेगा कि हम जब खोये के जायकों की बात कर रहे हैं, तो हमारा आशय भूले-बिसरे लुप्त प्रायः जायकों से नहीं है, जिनके खो जाने का संकट वर्तमान पीढ़ी के सामने खड़ा है. हम यहां उस खाद्य पदार्थ की बात कर रहे हैं, जिसे दूध को देर तक उबालकर गाढ़ा बना लगभग ठोस रूप दिया जाता है. इसके बारे में कबीर दास ने लोगों की बुद्धि पर तरस खाते हुए कहा था- रंगी को नारंगी कहे, पके दूध को खोया, चलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया! खोये का एक नाम मावा भी है.
उत्तर भारत की कई मिठाइयां खोये से ही तैयार होती हैं. जब तक छेने से तैयार होने वाली बंगाली मिठाइयों ने बाजार में अपने पैर नहीं पसारे थे, तब तक खोया ही इस अखाड़े का सर्वशक्तिमान पहलवान था. कलाकंद और पेड़े के विभिन्न रूप राजस्थान से लेकर पूर्वांचल तक देखने-चखने को मिलते है, जहां कम-ज्यादा भूनने के साथ खोये के जायके बदलते रहते हैं. मलाई या पनीरी से लेकर चॉकलेटी तक, भिंड-मुरैना के जले खोये के पेड़े हों या उत्तराखंड की लोचदार बाल मिठाई, ये सब हमारी जुबान पर अलग-अलग तरह से अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. मथुरा के पारंपरिक हलवाई ठंडा होने के लिए अलग रखी खोये की परात को हथेली से रगड़-रगड़ कर उसे रवेदार बनाते थे. यह कलाकारी अब कम देखने को मिलती है. अल्मोड़ा में ही खोये के ताजे कलाकंद में नारियल की गिरि मिलाकर उसे एक सुवासित पत्ते में लपेटा जाता है, जिससे वनस्पति और दूधिया मिठास के जायकों का संगम अनोखा लगता है.
कई व्यंजनों में होता है खोया का इस्तेमाल
कई ऐसे शाकाहारी व्यंजन हैं, जिनमें मावे की मदद से गरिष्ठ नमकीन सब्जी शाही तेवर वाली बनायी जाती है. लहसन-प्याज से परहेज करने वाले वणिक और जैन समुदाय में स्वादिष्ट खोया मटर की सब्जी बनायी जाती है. जोधपुर और जयपुर में मावे की कचौड़ियां भी बड़े शौक से खायी जाती हैं. यूं तो खोये में दूध की कुदरती मिठास (लैक्टोस के कारण) विद्यमान रहती है, पर यह सिर्फ नाममात्र की होती है और यदि इसका प्रयोग नमकीन व्यंजन में किया जा रहा हो, तो खटकती नहीं. जिस तरह पंजाब में नमकीन पराठे मलाई और अचार के साथ नमकीन पराठों की रौनक बढ़ाते हैं, उसी तरह खोये का प्रयोग आप अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यंजन को असाधारण बनाने के लिए कर सकते हैं. काजू-बादाम, चार मगज को भीगा कर पीसने के बाद उनके साथ कद्दूकस किये खोये को मिलाया जा सकता है, फिर देखिये, क्या कमाल की तरी तैयार होती है.
राष्ट्रपिता बापू को पसंद था मावा
एक दिलचस्प, पर लगभग अनजाना, तथ्य यह है कि राष्ट्रपिता बापू को मावा अच्छा लगता था. हालांकि वे खाने को सिर्फ जीवित रहने और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ही जरूरी समझते थे तथा स्वेच्छा से मन को इधर-उधर भटकाने वाले जायकों को अपने पास भी नहीं भटकने देते थे. मावा उन्हें इसलिए रुचिकर लगता था कि यह पोषक होता है. उन्होंने अपनी विदेशी शिष्या मीराबेन को लिखे एक पत्र में इस बात का उल्लेख किया है कि कैसे वे अपनी डाइट में उन दिनों बकरी के दूध के मावे का प्रयोग कर रहे थे. प्रसंगवश यह जिक्र भी जरूरी है कि भैंस और गाय के दूध से बने खोये के जायके में फर्क होता है, जो साफ महसूस किया जा सकता है.