13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राज्यों के खजाने को खाली कर रही हैं मुफ्त की योजनाएं, ये जानना है जरूरी

Freebies : फ्रीबीज की वजह से हिमाचल सरकार खस्ताहाल हो गई है. स्थिति इतनी विकट है कि मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने दो महीने तक वेतन नहीं लेने का फैसला किया है. आरबीआई ने 2022 में ही एक रिपोर्ट में यह दावा किया था कि फ्रीबीज की वजह से सरकारों का खजाना खाली हो जाएगा. फ्रीबीज क्या होता और कैसे यह इतना खतरनाक होता जा रहा है, पढ़ें पूरी खबर.

Freebies : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट 2022 में आई थी, जिसका नाम है-स्टेट फाइनांस: ए रिस्क एनालिसिस. इस रिपोर्ट में एक टर्म इस्तेमाल किया गया है फ्रीबीज. रिपोर्ट का दावा है कि जिस प्रकार सरकारें प्रदेशों में फ्रीजबीज दे रही हैं, उसका प्रभाव राज्यों के खजाने पर बुरी तरह पड़ रहा है और सरकारें उन कार्यों को नहीं कर पा रही हैं, जिनका फायदा भी लाॅन्ग टर्म में जनता को ही होता है. ताजा उदाहरण हिमाचल प्रदेश का है, जहां प्रदेश सरकार का खजाना इस तरह खाली हुआ है कि मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की है कि वे और उनके मंत्री और अन्य अधिकारी दो महीने तक वेतन नहीं लेंगे. आरबीआई की रिपोर्ट में फ्रीबीज को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 2026-27 तक राज्यों की आय में और कमी होगी और उनके खर्चे बढ़ते जाएंगे, इसमें सबसे खराब स्थिति में पंजाब होगी. केरल, बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों की भी स्थिति खराब हो जाएगी. क्या होता है फ्रीबीज और कैसे यह राज्य सरकारों को प्रभावित कर रहा है आइए जानें.


क्या है फ्रीबीज (Freebies)

फ्रीबीज उन कल्याणकारी योजना को कहते हैं, जिसका लाभ सरकारें सीधे और मुफ्त जनता को देती है. फ्रीबीज वे वस्तुए या सेवाएं हैं जिन्हें सीधे जनता को बिना किसी शुल्क के यानी फ्री दिया जा रहा है. फ्रीबीज का उद्देश्य कम समय में अधिक से अधिक लोगों को लाभ पहुंचाना होता है. जैसे आजकल सरकारें छात्रों को मुफ्त लैपटाॅप या साइकिल देती हैं. लोकलुभावन घोषणाओं के तहत महिलाओं को हर महीने हजार-दो हजार रुपए देना. बिजली और पानी का बिल माफ कर देना इत्यादि. फीबीज वैसे वादे हैं, जिनका उपयोग सरकारें ज्यादातर चुुनावों में लाभ लेने के लिए करती हैं.


फ्रीबीज और कल्याणकारी योजनाओं में क्या है अंतर

भारत के संविधान में यह बताया गया है कि भारत एक लोकल्याणकारी राज्य है. लोककल्याणकारी राज्य का अर्थ यह होता है कि सरकार जनता के सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए जिम्मेदार होगी. ऐसे में सवाल यह उठता है कि फ्रीबीज और कल्याणकारी योजनाओं में फर्क क्या है? जब भारत एक लोककल्याणकारी राज्य है ही तो फिर नागरिकों को मुफ्त सेवाएं देने में क्या हर्ज है? सवाल लाजिमी है, क्योंकि दोनों का उद्देश्य लोककल्याण ही है. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि कल्याणकारी योजनाएं पहले से तय करके बनाई जाती हैं और उसका उद्देश्य आम जनता के जीवन स्तर से जुड़ा होता है, जबकि फ्रीबीज तात्कालिक लाभ के लिए होती हैं. वर्तमान दौर की राजनीति में सरकारें चुनाव से पहले फ्रीबीज की घोषणाएं करती हैं, जिनका उद्देश्य चुनाव में वोट पाना होता है. लोककल्याण में सब्सिडी देना भी शामिल होता है.

Also Read : ‘कंट्रोवर्सी क्वीन’ कंगना रनौत को क्यों बताया गया इंटर्न, पढ़ें इमरजेंसी फिल्म का पूरा विवाद

क्या ‘झारखंड टाइगर’ खा सकते हैं जेएमएम का वोट बैंक, कोल्हान में कितनी मजबूत होगी बीजेपी?


हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों का भी है बुरा हाल

हिमाचल प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ढेर सारी फ्रीबीज की घोषणा की थी, मसलन महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देना. बिजली का बिल माफ करना और ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर आना. अब सरकार इन फ्रीबीज के वादे को पूरा कर रही है, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता जा रहा है और राज्य सरकार कर्ज में डूब रही है. महिलाओं को ही हर माह 1500 रुपए देने में सरकार पर 800 करोड़ रुपए का खर्च आता है. आरबीआई की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 2026-27 तक कई राज्य फ्रीबीज की वजह से काफी परेशानी में आ जाएंगे और उनका सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product) बुरी तरह प्रभावित होगा. इसमें पंजाब की स्थिति सबसे अधिक खराब होने वाली है. वहीं पश्चिम बंगाल, केरल और राजस्थान भी बदहाल हो जाएंगे.


फ्रीबीज से कैसे होता है नुकसान

आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि फ्रीबीज से सरकारों के खजाने खाली हो रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और फ्रीबीज कितना खतरनाक है यह समझने के लिए हमने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल से बातचीत की. हरिश्वर दयाल बताते हैं कि वेलफेयर स्कीम चूंकि फ्री में दी जाती है इसलिए उसका असर सरकारी खजाने पर पड़ता है और इसका असर यह होता है कि कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी दीर्घकालिक खर्चे के लिए सरकार के पास पैसे नहीं होते हैं. कैपिटल एक्सपेंडिचर वैसे खर्चे को कहते हैं, जिसमें बुनियादी ढांचे, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवा जैसी चीजें आती हैं. फ्रीबीज की वजह से सरकार का रेवेन्यू डेफिसिट या राजस्व घाटा बढ़ रहा है. यह स्थिति तब होती है सरकार का खर्च उसके रेवेन्यू से ज्यादा हो जाता है. इस स्थिति में सरकार की नियमित आय में कमी होती है और उसके खजाने पर असर होता है. परिणाम यह होता है कि सरकारें कैपिटल एक्सपेंडिचर नहीं कर पाती हैं.

सुप्रीम कोर्ट भी फ्रीबीज पर जता चुका है चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने भी फ्रीबीज पर चिंता जताई थी और यह कहा था कि चुनावी वादों को पूरा करने के लिए फ्रीबीज का सहारा लिया जाता है, लेकिन उसकी भी एक सीमा होनी चाहिए और फ्रीबीज और लोककल्याणकारी योजनाओं में फर्क समझा जाना चाहिए. जब करदाता यह सवाल पूछता है कि उसने तो कर जमा किया, फिर क्यों नहीं बनी सड़कें और क्यों नहीं हुआ पुल का निर्माण तो उन्हें क्या जवाब दिया जाए. राज्यों को फ्रीबीज पर नजर रखनी चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें