Anti Conversion Law : ‘देश में अगर अवैध धर्मांतरण होता रहा तो बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी’, यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने अवैध रूप से धर्मांतरण कराने के आरोपी एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते हुए की है. कोर्ट ने यह कहा है कि देश में सभी को अपनी इच्छा से धर्म चुनने का अधिकार है, इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी को उसका धर्म जबरन बदलवाने की आजादी है. कोर्ट की यह टिप्पणी बहुत ही खास है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से देश में अवैध धर्मांतरण का मुद्दा काफी चर्चा में है और उसपर विवाद भी खूब हुआ है.
- 2009 में एक मामला सामने आया, जिसमें एक हिंदू महिला ने मुस्लिम युवक से शादी की और इस्लाम कबूल किया. यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा.
- छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक सरकारी स्कूल में हेड मास्टर ने छोटे-छोटे बच्चों को धर्म परिवर्तन की शपथ दिलाई थी. इस घटना का वीडियो खूब वायरल हुआ था, तब धर्मांतरण का मुद्दा खूब गरमाया था.
- रायपुर के बागेश्वर धाम सरकार के पंडाल में कुछ लोगों की हिंदू धर्म में वापसी कराई गई.
- उत्तर प्रदेश के मेरठ और मध्यप्रदेश के भोपाल सहित कई इलाकों में जब धर्मांतरण का मुद्दा गरमाया और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो कोर्ट ने इसे गंभीर मुद्दा बताते हुए जबरन धर्मांतरण को रोकने की बात कही थी.
क्या है अवैध धर्मांतरण?
संविधान के अनुच्छेद 25-28 में यह बताया गया है कि धर्म किसी भी व्यक्ति का निजी मसला है और इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है. ज्यादातर लोग अपने जन्म के आधार पर धर्म को चुनते हैं, लेकिन कई बार धर्मांतरण भी होता है, जैसे कि कोई व्यक्ति जन्म से हिंदू था और विवाह के बाद या फिर 18 वर्ष का होने के बाद ईसाई या मुसलमान धर्म अपना लेता है या फिर कोई और धर्म अपना लेता है. कानून के अनुसार यह अपराध नहीं है, लेकिन जब धर्म बदलने के मामले में यह बात आ जाए कि एक व्यक्ति को किसी तरह का लालच देकर (जो नौकरी, पैसा या इसके अलावा भी कुछ हो सकता है) धर्म परिवर्तन कराया गया है, तो उसे अवैध धर्मांतरण कहा जाएगा.
क्या कहता है कानून
अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्रा ने बताया कि भारतीय संविधान में धर्म को स्वेच्छा से अपनाने की आजादी है, लेकिन जब मामला दबाव डालकर धर्म परिवर्तन का होता है, तो वह अपराध की श्रेणी में आ जाता है. भारतीय न्याय संहिता में इसे परिभाषित भी कर दिया गया है. न्याय संहिता में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को किसी भी तरह का प्रलोभन देकर या फिर अपनी पहचान छुपाकर उससे धर्म परिवर्तन के इरादे से शादी की जाए तो वह संज्ञेय अपराध है और यह गैर जमानती भी है. पहले के कानून में भारतीय दंड विधान की धारा 295A और 298 में ऐसे कृत्यों के लिए दंड की व्यवस्था थी जो नए कानून भारतीय न्याय संहिता में 298 और 302 में की गई है. अवैध धर्मांतरण के मामले में 10 साल तक की सजा का प्रावधान भी है.
कई राज्यों में भी हैं धर्मांतरण के विरुद्ध कानून
कई राज्यों ने भी धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून बनाया है, जिसमें झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, ओडिशा जैसे राज्य शामिल हैं. राज्यों ने बलपूर्वक धर्मांतरण को अपराध माना है और इसके खिलाफ एक से 10 साल तक की सजा और जुर्माने की भी व्यवस्था की गई है. अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्रा ने बताया कि अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए झारखंड में झारखंड धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 2017 बनाया गया है. यह अधिनियम झारखंड राज्य की परिसीमा के अंदर लागू है, जिसके तहत यह व्यवस्था है कि अगर भय, लोभ, प्रलोभन या अन्य किसी तरीके से किसी का धर्म परिवर्तन कराया जाता है, तो यह संज्ञेय और दंडनीय अपराध है.
झारखंड में आदिवासियों का धर्मांतरण कराने पर 1 लाख का जुर्माना
झारखंड धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम की धारा 3 के तहत बलपूर्वक या धोखे से कराए जाने वाले धर्मांतरण को रोका गया है. धारा 4 के तहत ऐसा करने पर दंड का प्रावधान है जो 3 साल कारावास या 50000 रुपए जुर्माना या दोनों हो सकता है. कानून यह भी कहता है कि अगर किसी नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग के लोगों का जबरन धर्मांतरण कराया जाएगा तो सजा की अवधि चार साल और जुर्माना 1 लाख रुपया तक हो सकता है. अधिनियम की धारा 5 में स्वेच्छा से धर्मांतरण करने हेतु जिला दंडाधिकारी से अनुमति लेने का प्रावधान है भी है. धारा 6 के तहत अपराध को संज्ञेय बनाया गया है.
उत्तर प्रदेश में 2020 और उत्तराखंड में 2018 में धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं. दोनों ही राज्यों में धोखे या लालच के जरिए धर्म परिवर्तन करवाने पर 10 साल की कैद और 15 से 50 हजार जुर्माने की व्यवस्था की गई है. ओडिशा पहला राज्य है जहां धर्मांतरण के खिलाफ सबसे पहले 1967 में कानून बनाए गए थे.
क्या कहता है धर्म
धर्म के अनुसार धर्मांतरण सही है या नहीं? इस सवाल का जवाब देते हुए मौलाना तहजीब ने बताया कि इस्लाम के अनुसार किसी भी मजहब को जबरन नहीं मनवाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि कुरान ए पाक में अल्लाह ने कहा है- ला इकरा हा फ़िद्दीन. दीन में कोई जब्र नहीं. इस्लाम मजहब का कानून है, लेकिन किसी भी मजहब या अकीदे को जबरन नहीं मनवाया जा सकता है. संत कबीर भी इस बात की वकालत करते हैं. वे कहते हैं कोई भी धर्म बगैर आत्मा द्वारा स्वीकार्य किए संभव नहीं है. आत्मा पर कब्जा करना या कराना पाप है. इस्लाम इस बात का संदेश देता है कि अल्लाह को राजी करने से पहले दिल को राजी करना जरूरी है, क्योंकि जबरदस्ती से कराया गया धर्म परिवर्तन स्थायी नहीं होता.
फादर असीम मिंज (सेक्रेटरी बिशप हाउस) कहते हैं कि ईसाई धर्म प्रेम पर आधारित है. हम प्यार बांटते हैं नफरत नहीं. हमारे यहां प्रेम को ज्यादा महत्व दिया गया है, इसलिए जबरदस्ती धर्म परिवर्तन जैसी चीजों को ईसाई धर्म नहीं मानता है. हम लोगों की सेवा करते हैं, प्रेम बांटते हैं और अगर कोई हमारे दृष्टिकोण और विचारों से प्रभावित होकर हमारे धर्म को अपनाना चाहता है, तो जो देश का कानून कहता है हम उसके अनुसार ही काम करते हैं.
जगन्नाथपुर मंदिर के मुख्य पुजारी कौस्तुभ मिश्रा का कहना है कि हिंदू धर्म में धर्मांतरण का कोई काॅन्सेप्ट नहीं हैं. भगवान गीता में कहते हैं कि चाहे जड़ हो या चेतन उसमें मेरा अंश है, इसलिए हिंदू धर्म में धर्मांतरण जैसी कोई चीज नहीं है. लेकिन आजकल समाज में जिस तरह धर्मांतरण हो रहा है मतलब भय, प्रलोभन और अन्य तरीके से, वह सही नहीं है. कोई व्यक्ति अगर किसी भी धर्म की परंपराओं और रीति-रिवाज से प्रभावित होकर उसे अपनी मर्जी से अपनाना चाहता है, तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है.
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