History of Munda Tribes 5 : पड़हा राजा के हाथों में होती थी शासन की कमान, आम सहमति से होते थे सभी कार्य
History of Munda Tribes : मुंडा समाज में प्रत्येक किलि का एक प्रधान होता था, जिसे पड़हा राजा कहा जाता था. वह अपने किलि के लोगों की रक्षा और उनकी सुविधाओं के लिए जिम्मेदार होता था. यहीं से शासन व्यवस्था की शुरुआत मुंडा समाज में होती है. मुंडा समाज के लोग 21 किलि में बंटे हुए थे और हर किलि का एक राजा होता था.
History of Munda Tribes : किसी भी सभ्यता को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम उसके इतिहास और वर्तमान को जानें. इतिहास हम उसे कहते हैं, जिसका कोई लिखित प्रमाण हमें मिलता हो,चूंकि मुंडाओं के पास उनकी कोई लिपि नहीं थी इसलिए हमें उनके प्राचीन इतिहास को समझने के लिए उनकी परंपराओं के बीच तलाश करनी होती है. इन्हीं परंपराओं में से एक है किलि जिससे जुड़े कई नियम मुंडा समाज में आज भी मौजूद हैं.
21 किलियों में बंटा था मुंडा समाज
झारखंड के छोटानागपुर में किलि परंपरा के जरिए मुंडा आदिवासियों ने परिवार नामक संस्था की नींव डाली. एक महिला एक पुरुष की पत्नी बनने लगी और उनके बच्चे समूह के नहीं बल्कि उस दंपती की संतान कहलाने लगे. रक्त संबंधों का असर दिखने लगा और विवाह रक्त संबंध में वर्जित बन गए. किलि तो मुंडाओं के बीच शासन व्यवस्था की एक शुरुआत भर था, इससे कड़ी जुड़ते गए और विवाह-समाज सबके कानून बनने लगे. किलि का प्रधान पड़हा राजा या मानकी कहलाने लगा और इस तरह एक शासन व्यवस्था की नींव पड़ी. प्रत्येक किली की शासन व्यवस्था को उस किलि का पड़हा राजा देखता था. मुंडाओं के पहले नेता रीसा मुंडा के साथ आए 21 हजार लोग 21 किलि में बंटे हुए थे जिनके नाम इस प्रकार हैं –
- 1. कछुआ
- 2. टोपनो
- 3. भेंगरा
- 4. सांदीगुरा
- 5. डुंगडुंग
- 6. लिपि
- 7. होनेरो
- 8. हाओ
- 9. कंदीर
- 10. केरकेट्टा
- 11.बारला
- 12. टुटी
- 13.हेम्बरोम
- 14.कोनगाड़ी
- 15. सांगा
- 16. कुजरी या कुजूर
- 17.सोय
- 18. तिडू
- 19. टूयू
- 20.ओडैया
- 21. पूर्ति (किलि के नाम शरत चंद्र राय की किताब The Mundas and Their Country से लिए गए हैं)
धीरे-धीरे किलि की संख्या में वृद्धि होने लगी और कई किलियों के उपवर्ग बनाए जाने लगे मसलन पूर्ति किलि में कई उपवर्ग बने जैसे इंगा पूर्ति,हासापूर्ति, चुटूपूर्ति. वहीं तमाड़ और उसके आसपास के गांव में कमल गोत्र के मुंडा भी मिले, जो किलियों की संख्या में वृद्धि का सूचक है. किलियों की संख्या में वृद्धि की मुख्य वजह जनसंख्या में वृद्धि और उसके अनुसार जरूरतें थीं.
पड़हा राजा के हाथों में होती थी शासन की कमान
मुंडा आदिवासियों में जब शासन की शुरुआत हुई तो गांव के प्रधान यानी मुंडा को कई अधिकार भी मिले. इन्हीं अधिकारों के तहत उसने गांव में कुछ बाहरी लोगों को भी बसाया, जो उनकी जरूरतों के अनुसार थे. जैसे बुनकर, लोहार और कुम्हार. गांव में दामादों को भी बसाया गया, जो दूसरे गांव के होते थे, इन्हें एदा हातुरेनको कहा गया, यानी दूसरे गांव के लोग. इन्हें कुछ जमीन दी जाती थी जिसपर खेती कर वे अपनी आजीविका चलाते थे, लेकिन उनके पास उस भूमि पर कोई मालिकाना हक नहीं होता था. गांव के मुंडा को अधिकार तो थे, लेकिन उसके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसे ऐशो-आराम से जोड़कर देखा जाए. उसके पास भी अपनी जमीन होती थी जिसपर उसे खेती करना होता था, उसके दास-दासी नहीं होते थे और वह सिर्फ कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए प्रधान था ना कि जीवनशैली में. उसके आदेश को मानना गांव वालों के लिए जरूरी था और सामूहिक जिम्मेदारी के तहत इसका पालन भी किया जाता था.
गांवों में लोकतांत्रिक व्यवस्था थी,आम सहमति से होते थे काम
झारखंड के प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी गुंजल इकिर मुंडा का कहना है कि मुंडा जनजाति में किलि का काफी महत्व है. इसका प्रधान मानकी के रूप में काम करता था. लेकिन वह शासक जैसा नहीं था, वह प्रधान जरूर होता था, लेकिन उसके भी अपने खेत थे और उसे उन खेतों में काम करना पड़ता था. मुंडा या प्रधान होने का अर्थ यह कतई नहीं था कि आप आराम करेंगे और आपके दास-दासी काम करेंगे. मुंडा समाज समानता में विश्वास करता था.
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जब आप मुंडा समाज की शासन व्यवस्था की बात करेंगे तो आपको यह जानना बहुत जरूरी है कि यहां हर काम आम सहमति से होता था. एक ऐसा लोकतंत्र कायम था, जिसमें बहुमत नहीं सर्वसम्मति से फैसला होता था. अगर दस लोग हैं और दस में से दस लोग यह कहेंगे कि कोई काम होना चाहिए, तब ही उसे करने का फैसला किया जाएगा. जहां तक मुंडाओं में किलि की व्यवस्था की बात करें, तो इसका कोई प्रमाणिक इतिहास तो ज्ञात नहीं है, लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि मुंडाओं ने अपनी सुविधानुसार इसे बनाया होगा. शादी-विवाह और मृत्यु से संबंधित नियम बनाए गए और किलि का उसमें अहम रोल था. आज भी एक किलि में शादी वर्जित है और इसका पालन होता है. शुरुआत में तो काफी कम किलि थे, जिनमें हेम्ब्ररोम, केरकेट्टा जैसे किलि हैं. चूंकि मुंडा और असुर एक ही भाषा समुदाय से आते हैं और शुरुआत में साथ रहने के बाद वे अलग हुए हैं और दोनों में ही यह यह गोत्र मिलता है इसलिए यह गोत्र काफी पुराना है. हर गोत्र से जुड़ी लोककथाएं हैं, जो मान्यताओं के अनुसार हैं.
मुंडा समाज में त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था
प्रसिद्ध साहित्यकार अनुज लुगुन बताते हैं कि जैसे ही शासन शब्द आता है, आमलोगों के मन में जो तस्वीर उभरती है उसमें एक राजा होता है और उसके आगे-पीछे कई लोग होते हैं.लेकिन मुंडा समाज में यह व्यवस्था नहीं थी. मुंडा अपने गांव का प्रधान था और वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह समाज में समानता के साथ रहता था. उसकी जिम्मेदारी होती थी अपने किलि के लोगों की रक्षा करना और उनके लिए आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराना.
मानवशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर मीनाक्षी मुंडा का कहना है कि मुंडा समाज में पहले एक गोत्र या किलि के लोग एक ही गांव में रहते थे. इनके सात गांवों को मिलाकर एक प्रधान होता था, जिसे पड़हा राजा कहा जाता था. सभी पड़हा के ऊपर एक महाराजा होता था, जिसके हाथों में समाज की पूरी कमान होती थी. लेकिन रहन-सहन और व्यवहार में यह आम लोगों की तरह ही होते थे. मीनाक्षी मुंडा बताती हैं जगदीश त्रिगुणायत की किताब में मुंडाओं के 22 गोत्र की चर्चा है. हालांकि वर्तमान में गोत्र की संख्या सौ से अधिक है.
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