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History of Munda Tribes 3 : मुंडा जनजाति के लोग जब छोटानागपुर में आकर एक सुरक्षित जीवन जीने लगे तो उनके अंदर एक विकसित समाज की रूपरेखा तैयार होने लगी. वे अपने समाज को चलाने के लिए प्रारंभिक तौर पर कुछ तौर-तरीके बनाने लगे, जिसे उनकी सभ्यता संस्कृति से जोड़ा गया. मुंडाओं के इतिहास पर ध्यान दें तो हमें कई ऐसी चीजें मिलेंगी, जो हमें उनके इतिहास और रहन-सहन के बारे में जानकारी देती है.
History of Munda Tribes 3 : कैसा था मुंडाओं का गांव
रीसा मुंडा के साथ 21 हजार मुंडा आदिवासी छोटानागपुर आए थे. इन्होंने अपने लिए सुरक्षित जमीन देखते हुए पहाड़ों के बीच में अपना आशियाना बनाया और समूह में रहने लगे. इतिहासकार बालमुकुंद वीरोत्तम ने अपनी किताब झारखंड: इतिहास एवं संस्कृति में लिखा है कि मुंडाओं के गांव में 50 से 100 घरों का समूह होता, जिसे एक गांव के रूप में माना जाता था. ये गांव समतल भूमि पर बसा होता था. गांव में लोग सामूहिकता में रहते थे और गांव के बीच में एक अखरा होता था. अखरा का उपयोग सामूहिक कार्यों के लिए किया जाता था, मसलन नृत्य-संगीत या फिर विचार-विमर्श. अखरा में एक वृक्ष भी होता था, जिसके नीचे लोग बैठते थे. गांव में एक ओर सासन होता था, जहां मृतकों की अस्थियों को गाड़ा जाता था. सासन में परिवार के लोगों के लिए जगह सुरक्षित होता था. प्रत्येक परिवार के लोग अपनी जगह सुनिश्चित करने के लिए पत्थरों से निशान बनाते थे. हालांकि गांव में गरीब-अमीर का कोई भेदभाव नहीं था और सभी सामूहिकता में रहते थे.
History of Munda Tribes 3 : कैसे घरों में रहते थे मुंडा आदिवासी
मुंडा आदिवासियों के घरों के बारे में शरत चंद्र राय ने अपनी किताब The Mundas and Their Country में लिखा है कि इनके घर में आमतौर पर दो कमरे होते थे. एक सोने के लिए और दूसरा खाना बनाने के लिए. सोने के कमरे को मुंडा ‘गिति-ओरा’और भोजन बनाने के कमरे को ‘मंडी-ओरा’ कहा जाता था. गिति ओरा जहां मुंडा सोते थे वहां बकरियों को भी रखा जाता था. बकरियों को गितिओरा में जगह रात के वक्त दी जाती थी. संपन्न घरों में रचा और बारी भी होता था. रचा का अर्थ आंगन और बारी आमतौर पर घरों के पीछे होता था. रसोईघर में ही पुरखों के लिए जगह होती थी जिसे आदिंग कहते थे. आदिंग में सिर्फ परिवार का सदस्य ही प्रवेश कर सकता था अन्य व्यक्ति को वहां प्रवेश की इजाजत नहीं होती थी. संपन्न लोगों के यहां बरामदे की व्यवस्था एक से अधिक भी होती थी जिसे ओरिस कहा जाता था.
भात मुंडाओं का प्रिय भोजन
मुंडा आदिवासियों ने जब छोटानागपुर में प्रवेश किया तो वे कृषि से परिचित हो चुके थे. उन्होंने जंगलों को साफ कर खेती योग्य जमीन बनाई जिसे खूंटकट्टी जमीन कहा जाता है. जंगलों को साफ कर बनाई गई जमीन पर ही मुंडा खेती करते थे. चावल उनका मुख्य भोजन था, जिसे वे नमक और माड़ के साथ खाते थे. कुछ अमीर मुंडा दाल भी खाते थे. वैसे इस इलाके में ज्यादातर मुंडा भात और साग ही खाते थे, लेकिन कुछ लोग जो दाल खाते थे उनमें कुरथी, उरद और अरहर जिसे राहर भी कहते हैं शामिल था. कुछ सब्जियां भी मुंडा खाते थे, जिनमें प्याज, बैंगन, मूली, टमाटर, कद्दू और लौकी भी शामिल थे. चावल के अलावा मुंडा बाजरा और मक्का भी खाते थे. मुंडा परिवार मुख्यत: तीन बार भोजन करता था 1. लो एन’ या सुबह का भोजन 2.’टिकिन मंडी’ या दोपहर का भोजन और 3.’एफिब मंडी’ या शाम का भोजन.मुंडा अपने घरों में भोजन के लिए मुर्गियां और बकरियां भी पालते थे, लेकिन उन्हें विशेष अवसरों पर ही खाया जाता था.
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महिला–पुरुष दोनों की थी सहभागिता
समाज में स्त्री–पुरुष दोनों साथ मिलकर काम करते थे और भोजन भी साथ ही करते थे. महिलाएं रसोई बनाने, पानी भरने, बच्चों की देखभाल करने वस्त्रों की कताई–बुनाई से जुड़ी होती थीं. पुरुष प्रधान था, लेकिन महिलाओं का स्थान दोयम नहीं था.
कैसी थी मुंडाओं की कदकाठी
मुंडाओं के बारे में यह कहा जाता है कि वे मध्यम कद के होते थे. उनके शरीर का रंग काला होता था और वे बलवान होते थे.उनकी लंबाई 168.9 सेंटीमीटर होती थी. नाक चिपटे और माथा चौड़ा होता था. यह भी कहा जाता है कि जब मुंडा युवक और युवती युवा होते थे तो वे बहुत सुंदर दिखते थे.
मुंडा आदिवासियों की वेशभूषा
मुंडा आदिवासी पोशाक के नाम पर कपड़े से बने बोटोई पहनते थे,जो उनके शरीर के निचले हिस्से में पहनी जाती थी. कमरधनी पहनने की परंपरा भी थी जिसे हरदह कहा जाता था. ये नारियल के रेशे से बने होते थे. वृद्ध पुरुष बागो पहनते थे जो एक गज लंबा होता था जो लंगोट की तरह होता था. महिलाएं भी कमर के चारों ओर एक कपड़ा बांधती थीं, जिसे पारी कहा जाता था. कुछ महिलाएं स्तनों को ढंकने के लिए तिकोना कपड़ा शरीर के ऊपरी हिस्से में बांधती थीं,लेकिन यह हमेशा नहीं होता था. पैर में चप्पल पहनने की परंपरा नहीं थी, सभी खाली पैर रहते थे. बारिश के मौसम में वे लकड़ी से बना हुआ चप्पल पहनते थे.
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FAQ : मुंडा आदिवासियों का समाज कैसा था?
मुंडा आदिवासियों के समाज में स्त्री-पुरुष के बीच कार्यों का बंटवारा था और दोनों अपने अपने हिस्से का कार्य करते थे. कोई भेदभाव नहीं था.
मुंडा आदिवासियों का रंग कैसा होता था?
मुंडा आदिवासियों के शरीर का रंग काला होता था और लंबाई मध्यम थी.