History of Munda Tribes 2 : मगध से झारखंड की ओर साथ आए थे मुंडा और संताल

History of Munda Tribes : दुश्मनों द्वारा अपने मूल निवास सिया सादी बीर से खदेड़े जाने के बाद मुंडा नए निवास स्थान की तलाश में निकले और मगध होते हुए छोटानागपुर पहुंचे. छोटानागपुर में उन्होंने अपना स्थायी निवास बनाया, क्योंकि यह इलाका दुर्गम था और दुश्मनों से सुरक्षित भी था.

By Rajneesh Anand | December 22, 2024 5:52 PM
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History of Munda Tribes  : मुंडा जनजाति के लोग छोटानागपुर में स्थायी निवास बनाने से पहले संतालों के साथ रहते थे. रामायण के छठे कांड जिसे लंका कांड कहते हैं, के अनुसार गंगा के दक्षिण में मंदार पर्वत पर हरी जनजातियां रहती थीं, इन जनजातियों के बारे में यह कहा जाता है कि ये  संभवतः संताल, मुंडा, हो और अन्य कोलारियन जनजातियां थीं.

History of Munda Tribes : छोटानागपुर की ओर साथ आए थे मुंडा और संताल

रामायण का यह प्रमाण मुंडाओं के उस दावे को पुख्ता करता है कि वे मंदार पर्वत और उसके आसपास निवास करते थे. मुंडा और संताल चूंकि एक ही भाषा समूह के हैं, इसलिए पहले उनके साथ रहने के प्रमाण मिलते हैं. लेकिन जब वे नए निवास स्थान की तलाश में मगध होते हुए छोटानागपुर की ओर बढ़े तो संताल और मुंडा अलग–अलग हो गए. इस बात का जिक्र शरतचंद्र राय ने अपनी किताब The Mundas and Their Country में किया है. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि पारंपरिक इतिहास के अनुसार मिथिला से, मुंडा, चेरू और अन्य कोल जनजातियां दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़ते हुए मगध (दक्षिण बिहार) में प्रवेश करती हैं और वहां निवास भी करती हैं. यहां के पाली गांव में मुंडाओं जुड़े अवशेष मिलते हैं. मुंडा जिसे पालीगढ़ कहते हैं, वहीं संभवत: पाली गांव था. यहां कई टीले और खंडहर मौजूद हैं, जिन्हें कोल राजाओं से जोड़कर देखा जाता है.

History of Munda Tribes : ओमेदांडा में बनाया पहला निवास स्थान

मुंडा अपना निवास स्थान छोड़कर क्यों निकले इसके बारे में यह कहा जाता है कि उनके दुश्मनों ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया. नए निवास की तलाश में मुंडा और संतालों ने सोन नदी पार किया और अलग–अलग हो गए. मुंडाओं ने छोटानागपुर को चुना जो बहुत ही घने जंगलों और पहाड़ों से घिरा था. 

मुंडाओं की परंपरा को माने तो उन्होंने सबसे पहले छोटानागपुर के ओमेदांडा नामक गांव में अपना निवास स्थान बनाया. यह क्षेत्र घने जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध था, जो उनके लिए जीवन यापन और अस्तित्व बनाए रखने के लिए उपयुक्त था . साथ ही यह इलाका उन्हें दुश्मनों से भी सुरक्षित करता था. 

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रीसा मुंडा के नेतृत्व में छोटानागपुर आए थे मुंडा

मुंडाओं परंपरा में यह बात सर्वस्वीकार्य है कि रीसा मुंडा के नेतृत्व में 21 हजार मुंडा छोटानागपुर की धरती पर आए और यहां आकर बस गए. मुंडाओं ने छोटानागपुर की पहाड़ियों के बीच खुद को सुरक्षित कर लिया और दुश्मनों की चिंता के बगैर जंगल साफ कर खेती की शुरुआत की और एक उन्नत समाज और शासन व्यवस्था की स्थापना की. मुंडाओं ने छोटे–छोटे गांव बसाए और उन गांवों की पहचान प्राकृतिक चिह्नों से बनाई. उनके गांवों की पहचान ही उनके गोत्र किलि के रूप में सामने आया. किलि का मुंडाओं में बहुत महत्व है.

आग जलाकर तय की जाती थी गांवों की सीमाएं

छोटानागपर के गांव में मुंडा महिलाएं. तस्वीर : संस्कृति मंत्रालय

 मुंडाओं ने रांची के उत्तर–पश्चिम इलाके में अपने गांव ज्यादा बसाए. गांवों की सीमा रेखा तय करने के लिए आग जलाई जाती थी और उसकी चहादीवारी में गांव की संपत्ति होती थी जो सामूहिक होती थी. ये खूंटकट्टी जमीन होते थे और इनपर पूरे गांव का अधिकार होता था. वे अपनी जरूरतों के हिसाब से गांव की संपत्ति का इस्तेमाल करते थे और इसके लिए उनपर कोई बंदिश भी नहीं थी. शुरुआत में गांव छोटे होते थे लेकिन धीरे–धीरे उनका विस्तार होने लगा. जब गांव की आबादी बढ़ने लगी तो मुंडाओं ने सबकुछ व्यवस्थित रखने के लिए नियम बनाने शुरू किए.

6ठी सदी से बनाई पहचान

मुंडाओं के इतिहास के बारे में कोई भी लिखित प्रमाण ना होने की वजह से इतिहासकार यह मानते हैं कि 6ठी सदी में वे धीरे-धीरे एक समृद्ध और सांस्कृतिक समाज के रूप में अपनी पहचान बनाने लगे थे. चूंकि वे एक समाज के रूप में व्यवस्थित हो चुके थे इसलिए अब उनका प्रयास एक जीवनशैली विकसित करना था जो  उनकी आने वाली पीढ़ियों को के लिए धरोहर साबित हो.

FAQ : मुंडा समाज के लोग किसे मानते हैं अपना पहला लीडर

रीसा मुंडा को समाज के लोग अपना पहला लीडर मानते हैं.

मुंडा समाज में किलि किसे कहते हैं

मुंडा समाज में किलि गोत्र को कहा जाता है, जो उनकी विशेष पहचान है.

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(झारखंड लोकसेवा आयोग की परीक्षा में झारखंड के इतिहास से जुड़े कई सवाल पूछे जाते हैं, खासकर यहां के जनजातियों से संबंधित. मुंडा शासन व्यवस्था, उनकी संस्कृति, आर्थिक स्थिति, कला, साहित्य, कानून और झारखंड आंदोलन. इन विषयों पर हिंदी में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं है. हमारी यह कोशिश है कि हम स्टूडेंट्‌स की जरूरतों के हिसाब से कंटेंट तैयार कर उन्हें उपलब्ध कराएं. मुंडाओं ने यहां लंबे समय तक शासन किया, इसलिए उनके इतिहास से ही शुरुआत की जा रही है. इसके लिए हमने पुस्तकों की मदद ली है और मुंडा बुद्धिजीवियों और मानवशास्त्रियों और इतिहासकारों से भी बातचीत की है)

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