History of Munda Tribes : झारखंड के इतिहास पर अगर बात करें तो मुंडा जनजाति का यहां व्यापक प्रभाव नजर आता है, जिन्हें यहां के सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक माना जाता है. मुंडाओं ने यहां लंबे समय तक शासन किया और आज भी झारखंड मुंडाओं का निवास स्थान है. झारखंड में कुल 32 जनजातियां निवास करती हैं, जिनमें से सबसे अधिक जनसंख्या संताल, मुंडा और उरांव जनजाति की है. हालांकि झारखंड के प्राचीनतम जनजातियों में असुर का नाम सबसे पहले आता है और यह भी माना जाता है कि मुंडाओं से पहले छोटानागपुर क्षेत्र में यही आए और अपना घर बार बसाया.
History of Munda Tribes : मुंडाओं के इतिहास का लिखित साक्ष्य नहीं
झारखंड को भौगोलिक दृष्टि से दो भागों में बांटा जा सकता है-1. छोटानागपुर 2. संताल परगना. इस लेख में हम बात कर रहे हैं छोटानागपुर के इतिहास और यहां रहने वाले आदिवासियों की.दुखद यह है कि इस इलाके में सभ्यताएं तो प्राचीन काल से पनपीं, लेकिन उनके इतिहास को बताने के लिए कोई लिखित साक्ष्य नहीं है.छोटानागपुर के इतिहास की जो भी लिखित जानकारी उपलब्ध है वह तब से मिलती है, जब इस क्षेत्र में मुगलों और अंग्रेजों का प्रवेश हुआ. मुगलकाल में भी छोटानागपुर को केंद्रित करके कुछ नहीं लिखा गया है, बल्कि उनके शासन के दौरान जो कुछ इस इलाके से संबंधित रहा उसका जिक्र अकबरनामा, आइने अकबरी और जहांगीर की आत्मकथाओं में मिलता है. भारत के पहले एंथ्रोपोलॉजिस्ट माने जाने वाले शरद चंद्र राय ने भी अपनी किताब The Mundas and Their Country में इस बात का जिक्र किया है कि मुंडाओं और अन्य जनजातियों के इतिहास उनके समाज और संस्कृति के कोई लिखित प्रमाण अंग्रेजों के आगमन से पहले के नहीं मिलते हैं.
History of Munda Tribes : बाहर से आए थे मुंडा, शव दफनाने की परंपरा से मिलते हैं संकेत
मुंडा आदिवासियों को आज भले ही झारखंड का मूल निवासी बताया जाता हो, लेकिन वे भी यहां बाहर से आए थे. वे विभिन्न मार्गों से होकर छोटानागपुर आए, इसलिए यह बात भी पुख्ता तरीके से नहीं कही जा सकती है कि वे कहां से छोटानागपुर आए. देश के इतिहासकारों ने भी इस इलाके पर कभी भी गंभीरता से कुछ नहीं लिखा और यह पूरा इलाका ही इतिहासकारों की उपेक्षा का शिकार रहा है. बावजूद इसके इतिहासकार और मुंडाओं के बीच जो गीत और जनश्रुति प्रचलित हैं, उनके अनुसार जब मुंडा यहां आए तो उनका सामना असुरों से हुआ. यानी यह प्रमाणित बात है कि मुंडा छोटानागपुर के पहले निवासी नहीं हैं, उनसे पहले यहां असुर रहते थे, जिनके साथ उनका संघर्ष भी हुआ. मुंडाओं के बीच एक परंपरा है कि जब वे अपने परिजनों का शव दफनाते हैं तो कुछ गोत्र वाले उसे उत्तर दिशा की ओर सिर करके कब्र में लिटाते हैं और कुछ दक्षिण की ओर. इस परंपरा को भी उनके मूल निवास स्थान या जिस दिशा से वे आए थे से जोड़कर देखा जाता है.
जनश्रुतियों के अनुसार सिंगाबोंगा ने मुंडाओं को छोटानापुर भेजा
आदिवासियों की खासियत यह है कि वे अपनी परंपराओं और संस्कृति से बंधे रहते हैं, वे उसे जल्दी छोड़ते नहीं हैं, यही वजह है कि इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों ने उनके इतिहास का काफी कुछ उनसे निकाला. जब मुंडा यहां आए तो उनका असुरों से युद्ध हुआ. शरत चंद्र ने भी अपनी किताब में असुर और मुंडाओं के बीच युद्ध का जिक्र किया है और बताया है कि संभवत: सिया सादी बीर उनका मूल निवास स्थान था, जो जंगलों के बीच था. लेकिन उसके बारे में पता लगाना मुश्किल है.
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मुंडाओं के इतिहास और उनके गोत्र पर मुंडारी भाषा में किताब लिखने वाले कुशलमय मुंडू बताते हैं कि मुंडाओं के गीतों में इसका प्रमाण मिलता है. गीतों में बताया गया है कि मुंडा और असुरों के बीच 81 ऊंचे मैदान और 83 सीढ़ीदार खेतों में युद्ध हुआ था. यह भी जनश्रुति है कि असुरों के लोहा गलाने से जंगल और जमीन नष्ट हो रहे थे, तब मुंडाओं के भगवान सिंगाबोंगा ने कई तरह से असुरों को रोकने की कोशिश की और बाद में मुंडाओं को यहां भेजा.
मुंडा बाहर से आए, यह सच है, लेकिन कब आए यह बताना असंभव
मुंडा आदिवासी छोटानागपुर में प्रवेश करने तक कृषि कर्म से परिचित हो चुकी, यह उल्लेख प्रसिद्ध इतिहासकार बालमुकुंद वीरोत्तम ने अपनी किताब झारखंड : इतिहास एवं संस्कृति में किया है. यह पंक्तियां भी यह साबित करती हैं कि मुंडा बाहर से छोटानागपुर आए थे.
जनजातीय शोध संस्थान,रांची के निदेशक रणेंद्र भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मुंडा बाहर से आए थे और उनका संघर्ष असुरों से हुआ. हालांकि वे यह भी बताते हैं कि मुंडा कब आए और उस वक्त यहां क्या–क्या हुआ, इसे बता पाना बहुत कठिन है. दोनों ही जनजातियां एक ही भाषा समुदाय से आती है.
मुंडा ससनदिरी के बगल में असुरों का ससनदिरी
मुंडाओं से पहले असुर छोटानागपुर में रहते थे इसका प्रमाण देते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी के पूर्व विभागाध्यक्ष विजयशंकर सहाय बताते हैं कि मुंडाओं में मसान और ससनदिरी का बहुत महत्व है. मसान उस जगह को कहते हैं जहां मुंडा अपने पूर्वजों को दफनाते हैं और ससनदिरी उस जगह को कहा जाता है जहां मुंडा अपने पूर्वजों के अस्थियों को दफनाते हैं और उसपर एक चट्टान को गाड़ते हैं जिसे हड़गड़ी कहा जाता है. खूंटी जिले के तोरपा ब्लाॅक में गुड़िया गोत्र के मुंडाओं के कई गांव है, जहां उनकी ससनदिरी के बगल में एक पुरानी सी ससनदिरी है, जिसके बारे में वे कहते हैं कि यह असुरों का ससनदिरी है. मुंडाओं के गांव में हर ससनदिरी के बगल में एक पुरानी छोड़ी हुई ससनदिरी मिलती है जो यह साबित करती है कि मुंडाओं से पहले यहां असुर रहते थे. मुंडा यह कहते भी हैं कि जो असुर पहले यहां रहते थे, यह ससनदिरी उनकी है.शरद चंद्र राय ने भी अपनी किताब में मुंडाओं की ससनदिरी का जिक्र किया है.
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(झारखंड लोकसेवा आयोग की परीक्षा में झारखंड के इतिहास से जुड़े कई सवाल पूछे जाते हैं, खासकर यहां के जनजातियों से संबंधित. मुंडा शासन व्यवस्था, उनकी संस्कृति, आर्थिक स्थिति, कला, साहित्य, कानून और झारखंड आंदोलन. इन विषयों पर हिंदी में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं है. हमारी यह कोशिश है कि हम स्टूडेंट्स की जरूरतों के हिसाब से कंटेंट तैयार कर उन्हें उपलब्ध कराएं. मुंडाओं ने यहां लंबे समय तक शासन किया, इसलिए उनके इतिहास से ही शुरुआत की जा रही है. इसके लिए हमने पुस्तकों की मदद ली है और मुंडा बुद्धिजीवियों और मानवशास्त्रियों और इतिहासकारों से भी बातचीत की है)