Independence Day 2024: नयी ऊंचाइयों पर भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान यात्रा

इसरो ने अंतरिक्ष की लंबी यात्रा तय की है. भविष्य के लिए भी इसके पास कई योजनाएं हैं. शुक्र के अध्ययन के लिए अंतरिक्ष यान 'शुक्रयान-1' दिसंबर 2024 के अंत तक प्रक्षेपित होने की संभावना है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 15, 2024 2:13 PM
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डॉ निमिष कपूर, विज्ञान संचार विशेषज्ञ

सपनों को सच करने की यात्रा के साथ, आज से 62 वर्ष पूर्व शुरू हुआ देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम विकसित भारत की राह प्रशस्त कर रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रमा, मंगल और सूर्य पर सफल अनुसंधान के साथ ही विभिन्न देशों के कुल 424 उपग्रह प्रक्षेपित कर महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्तमान में आठ अरब डॉलर की है. भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की तेजी से बढ़ती स्वदेशी तकनीकी क्षमता और व्यावसायिक संभावनाओं के अनुसार अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2040 तक सौ अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.

स्वतंत्रता के बाद देश में अंतरिक्ष अनुसंधान आरंभ हुए, पर भारत की संस्थागत अंतरिक्ष यात्रा 1960 के दशक से आरंभ हुई. इसरो की स्थापना का श्रेय डॉ विक्रम साराभाई को जाता है. वर्ष 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया गया, जो 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के रूप में पुनर्गठित हुआ. भारत ने 21 नवंबर, 1963 को थुंबा से अपने पहले साउंडिंग रॉकेट ‘नाइक-अपाचे’ को प्रक्षिप्त किया. इस प्रक्षेपण के बाद से भारत का औपचारिक अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू हुआ.

नवंबर, 1967 में थुंबा उपग्रह प्रक्षेपण वाहन का प्रक्षेपण किया गया. यह प्रक्षेपण भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान यात्रा में मील का पत्थर साबित हुआ. वर्ष 1967 में अहमदाबाद में ‘प्रयोगात्मक उपग्रह संचार पृथ्वी स्टेशन’ की स्थापना इसरो का पहला बड़ा कदम था. इसका उद्देश्य उपग्रह संचार तकनीकों में विशेषज्ञता प्राप्त करना और इस क्षेत्र में देश की क्षमताओं को बढ़ाना था. वर्ष 1972 में, अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग की स्थापना ने इसरो को एक सशक्त प्रशासनिक ढांचा प्रदान किया, जिससे यह स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम हो गया. 19 अप्रैल, 1975 को भारत ने अपने पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को सोवियत संघ के सहयोग से प्रक्षेपित किया. इसने देश को अंतरिक्ष अनुसंधान में आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर किया.

इसके बाद 1975-76 में ‘सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट’ के माध्यम से, इसरो ने भारत के दूरदराज के गांवों में विकासात्मक कार्यक्रम प्रसारित किये. इसरो द्वारा ‘भास्कर’ शृंखला के उपग्रहों को 1979-1981 के बीच प्रक्षेपित किया गया. ये उपग्रह रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण थे. इन उपग्रहों ने कृषि, वन, जल संसाधन और पर्यावरण की निगरानी से जुड़े महत्वपूर्ण डेटा प्रदान किये.

वर्ष 1980 के दशक में एरियन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरिमेंट (एप्पल) उपग्रह ने देश को दूरसंचार और रिमोट सेंसिंग के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सफलताएं दिलाईं. 19 जून, 1981 को एप्पल का प्रक्षेपण किया गया, जो इसरो का पहला स्वदेशी, प्रायोगिक संचार उपग्रह था. 18 जुलाई, 1980 को इसरो ने अपने स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी-3) का सफल परीक्षण किया और रोहिणी सैटेलाइट को कक्षा में स्थापित किया. वर्ष 1983 में इनसैट शृंखला आरंभ की गयी, जिसने दूरसंचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम पूर्वानुमान में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इसके साथ ही भारतीय रिमोट सेंसिंग शृंखला के उपग्रहों ने कृषि, जल संसाधन, भूमि उपयोग और पर्यावरण निगरानी में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. वर्ष 1990 के दशक में इसरो ने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल जैसे उन्नत प्रक्षेपण यान विकसित किये, जिन्होंने भारत को अपने उपग्रहों को स्वयं प्रक्षेपित करने की क्षमता प्रदान की.

भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा दो अप्रैल, 1984 को सोवियत संघ के सोयुज टी-11 अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में गये थे. चंद्रयान-1 को 22 अक्तूबर, 2008 को प्रक्षेपित किया गया. इस मिशन ने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को प्रक्षेपित किया गया. हालांकि, विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग असफल रही, पर ऑर्बिटर ने डेटा उपलब्ध कराया. चंद्रयान-3 14 जुलाई, 2023 को प्रक्षेपित किया गया और 23 अगस्त, 2023 को इसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की, जिससे भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश बना. 5 नवंबर, 2013 को मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) को प्रक्षेपित किया गया. 24 सितंबर, 2014 को यह मिशन मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर गया, जिससे भारत अपने पहले ही प्रयास में मंगल तक पहुंचने वाला पहला एशियाई और दुनिया का चौथा देश बना.

भारत ने 2017 में उपग्रह प्रक्षेपण यान जीएसएलवी एमके-3 प्रक्षेपित किया, जो अपने साथ 3,136 किग्रा का सैटेलाइट जीसैट-19 साथ लेकर गया. 15 फरवरी, 2017 को इसरो ने उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी के माध्यम से एक साथ 104 सैटेलाइट प्रक्षेपित कर विश्व रिकॉर्ड बनाया. 11 अप्रैल, 2018 को प्रक्षेपित किया गया नाविक सैटेलाइट, स्वदेशी तकनीक से निर्मित नेवीगेशन सैटेलाइट है. इसके साथ ही भारत के पास अब अमेरिका के जीपीएस सिस्टम की तरह अपना नेवीगेशन सिस्टम है. 2 सितंबर, 2023 को, इसरो ने आदित्य एल-1 मिशन को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया.

इसरो ने अंतरिक्ष की लंबी यात्रा तय की है. भविष्य के लिए भी इसके पास कई योजनाएं हैं. शुक्र के अध्ययन के लिए अंतरिक्ष यान ‘शुक्रयान-1’ दिसंबर 2024 के अंत तक प्रक्षेपित होने की संभावना है. इसरो मानव अंतरिक्ष मिशन-गगनयान के माध्यम से मानव को 2024 में अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है. भारत का अंतरिक्ष स्टेशन 2030 तक स्थापित होने की योजना है. उपरोक्त उपलब्धियों ने भारत को अंतरिक्ष अन्वेषण में एक अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है.

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