India China Border Dispute :विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी से कजाखिस्तान की राजधानी अस्ताना में मुलाकात की और बातचीत की. यह मुलाकात तब हुई है जब भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जारी है और भारतीय सीमा में चीन के घुसपैठ से संबंधित कई खबरें भी सामने आती हैं. यह मुलाकात बहुत ही खास है क्योंकि दोनों ही देश सीमा पर जारी तनाव को कम करना चाहते हैं, क्योंकि इसके बिना सामान्य संबंध स्थापित नहीं हो सकते हैं.
भारत – चीन के बीच क्या है सीमा विवाद?
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद आजादी के समय से ही है, क्योंकि चीन उन बाॅर्डर को मानने के लिए तैयार नहीं था जो अंग्रेजों ने बनाए थे. चीन का कहना था कि यह औपनिवेशिक सीमाएं हैं. साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली के प्रोफसर धनंजय त्रिपाठी का कहना है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सीमा निर्धारित नहीं की गई है, बस एक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) है, जहां पर दोनों देशों की सेनाओं का कंट्रोल है. सीमा को लेकर दोनों देशों के अपने-अपने दावे भी हैं. प्रोफेसर त्रिपाठी ने बताया कि 1962 के बाद भारत-चीन के बीच सीमा विवाद तब ज्यादा बढ़ा जब चीन ने डोकलाम इलाके में रोड कंस्ट्रक्शन शुरू किया. यह इलाका भारत-चीन और भूटान की सीमा से सटा हुआ है. भारत और भूटान के बीच सैन्य समझौता भी है, इसलिए भूटान ने भी इस निर्माण का विरोध किया, जिसकी वजह से विवाद हुआ और दोनों देशों ने अपने इलाकों में सेना बढ़ाना शुरू कर दिया.
भारत ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का नया नक्शा जारी किया
भारत ने आर्टिकल 370 को 2019 में समाप्त कर दिया था और उसके बाद भारत का एक नया नक्शा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का जारी किया, जिसपर चीन को आपत्ति थी. इस नक्शे के आने के बाद चीन ने नियंत्रण रेखा पर सैन्य शक्ति को बढ़ाया, परिणाम स्वरूप भारत ने भी सेना की तैनाती बढ़ाई. गलवान घाटी में संघर्ष भी इसी का परिणाम था जिसकी वजह से दोनों देशों के कई सैनिक मारे गए. समस्या के समाधान के लिए कई बार राजनैतिक और सैन्य बातचीत भी हुई, लेकिन समस्या का कोई समाधान अबतक नहीं निकला है. तमाम विवाद के बीच भी दोनों देशों का व्यापार प्रभावित नहीं हुआ.
मैकमोहन लाइन को खारिज करता है चीन
भारत और चीन के बीच जो एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल है उस क्षेत्र में कई ग्लेशियर, बर्फीली पहाड़ियां और नदियां पड़ती हैं. यह क्षेत्र 3,440 किमी (2,100-मील) तक फैला है. 1962 से पहले जो सीमा निर्धारित थी उसमें मैकमोहन लाइन का जिक्र भी होता है, जिसका निर्धारण भारत और तिब्बत की सीमा के निर्धारण के लिए किया गया था. उस वक्त तिब्बत एक स्वतंत्र देश था, लेकिन चीन ने हमेशा यह कहा कि वह इस मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है. तिब्बत पर अब चीन का कब्जा भी है इसलिए 1914 में हुआ यह शिमला समझौता बहुत मायने नहीं रखता है.
भारत-चीन सीमा पर 1947 की स्थिति बना पाना मुश्किल
प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी का कहना है कि 1947 में भारत और चीन की जो सीमा निर्धारित थी, उसमें 1962 के युद्ध के बाद बदलाव तो आया है. अक्साई चीन इसका उदाहरण है. 1950 तक चीन ने अक्साई चीन पर अपना दावा पेश नहीं किया था, लेकिन 1952 के बाद उसकी नजर बदल गई और उसने इस क्षेत्र पर जो बर्फीला रेगिस्तान है, अपना कब्जा जमाना शुरू किया और 1962 के बाद उसने इसपर पूरी तरह कब्जा कर लिया. इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब “इंडिया आफ्टर गांधी” में उल्लेख किया गया है कि 1920 के दशक से पहले तक चीनी मानचित्र पर
अक्साई चीन के लिए जगह नहीं थी, लेकिन बाद में परिस्थितियां बदलने लगी.चीन और भारत के बीच जो सीमा विवाद वर्तमान में मौजूद है उसे 1962 की स्थिति में ही हल करना होगा, क्योंकि 1947 की स्थिति को फिर से कायम करना मुश्किल होगा.
भारत-चीन विवाद का क्या हुआ है परिणाम
भारत और चीन के बीच जारी विवाद का असर ना सिर्फ एशिया बल्कि पूरे विश्व पर पड़ा है. चीन ने जिस तरह का व्यवहार दिखाया है, उसके बाद भारत उसपर विश्वास नहीं करता है. अगर चीन अपने रवैये में बदलाव नहीं करेगा तो फिर भारत पश्चिमी देशों की ओर जाएगा, जिसका परिणाम बहुत बेहतर नहीं होगा. भारत में भी आम आदमी के बीच चीन की छवि बहुत ही नकारात्मक बन चुकी है, जो दोनों देशों के लिए अच्छा नहीं है. दोनों ही देशों की सभ्यता बहुत पुरानी है और एक दूसरे के साथ व्यापार भी बहुत पुराना है, इसलिए जरूरी यह है कि दोनों देश सीमा विवाद का हल निकालें, यह बात तय ही है कि सीमा विवाद का हल कूटनीतिक होगा.
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