Indira Gandhi : इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को तब हुआ था, जब देश आजाद नहीं था. उनके पिता और एक तरह से पूरा परिवार ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल था. परिणाम यह हुआ कि इंदिरा का बचपन आम बच्चों की तरह नहीं बिता. वे बेहद अकेली और गुमसुम रहती थीं, पिता अकसर जेल में रहते और मां भी सामाजिक कार्यों में जुटी रहती थीं.
काफी कम बोलने वाली इंदिरा ने जब देश में इमरजेंसी लगाई तो सहसा लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ था कि यह भी सच हो सकता है. इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की छवि तानाशाह वाली बन गई, वही पोखरण1 ने उन्हें आयरन लेडी बनाया. 1966 में जब इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं थीं, तो उनसे इस तरह के चट्टानी फैसलों की उम्मीद नहीं थी. इंदिरा के स्वभाव और व्यक्तित्व पर काफी कुछ लिखा गया है, लेकिन उनके घर वाले उनके बारे में उनके बारे में क्या सोचते हैं या सोचते थे यह जानने की इच्छा आम जनता को रहती है, क्योंकि वे इन बातों से दूर रहते हैं. इंदिरा के दोनों बेटों की पत्नी यानी दोनों बहुओं ने उनके व्यक्तत्व के बारे में कई बार चर्चा की है.
इंदिरा काफी सहज, मिलनसार और सीख देने वाली थीं
सोनिया गांधी और मेनका गांधी ने कई इंटरव्यू में यह बात कही है कि इंदिरा गांधी ने उन्हें मां की तरह संभाला और प्यार दिया. सोनिया गांधी ने इंडिया टुडे और धर्मयुग को दिए इंटरव्यू में यह बताया था कि जब वो पहली बार इंदिरा से मिली थीं तो काफी डरी हुईं थीं. इंदिरा गांधी ने उन्हें समझाया कि डरने की जरूरत नहीं है और उनका हौसला बढ़ाया. इंदिरा ने कहा था उन्हें भी प्यार हुआ था.
मेनका गांधी ने सिम्मी ग्रेवाल को दिए इंटरव्यू में बताया है कि जब मेरी और इंदिरा जी की मुलाकात हुई, तो मुझे पहले ये पता नहीं था कि वो प्रधानमंत्री हैं. जब पता चला संजय की मां प्रधानमंत्री हैं तो मेरी हालत खराब थी. लेकिन वो बहुत प्यार से मिलीं और सबकुछ ठीक हो गया. वे मुझे खाना बनाना भी सिखाती थीं और वो सबकुछ जो जानना जरूरी था.
संजय गांधी सुझाव देते थे, लेकिन फैसला इंदिरा गांधी का होता था
मेनका गांधी ने इंटरव्यू में बताया है कि संजय गांधी के बारे में मीडिया में कई ऐसी बातें चलती हैं, जो बिलकुल बकवास और घटिया हैं. इमरजेंसी के दौरान भी उनकी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है. वे सुझाव देते थे लेकिन अंतिम फैसला इंदिरा गांधी का होता था. वे एक अच्छी प्रशासक थीं और जानती थीं कि क्या सही है और क्या गलत. उनके बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने अपनी मां को थप्पड़ मारा. यह बेहद घटिया बात है. एक मां और बेटे के बीच किस तरह का रिश्ता होता है, यह मैं जानती हूं.
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संजय की मौत से पहले इंदिरा ने मेनका को कमरे में बंद कर दिया था
मेनका गांधी ने एक इंटरव्यू में बताया है कि संजय को प्लेन उड़ाने का शौक था और जिस दिन उनकी मौत हुई उससे एक दिन पहले वे उसी प्लेन में उन्हें लेकर गए थे और उन्हें बहुत अजीब महसूस हुआ. वो बहुत रोईं और इंदिरा गांधी से यह कहा कि उन्हें यह प्लेन ना उड़ाने का आदेश दें. इंदिरा ने संजय को मना भी किया, लेकिन अगले ही दिन सुबह आठ बजे की करीब मेनका को उठाकर यह कहा गया कि अस्पताल जाना है संजय का एक्सीडेंट हुआ है. एंबुलेंस में संजय को लाया गया और तब इंदिरा गांधी ने उनसे कहा कि वो जीवित हैं और एक कमरे में बंद कर दिया. उस कमरे में वो प्रार्थना करती रहीं और कुछ घंटे बाद इंदिरा ने दरवाजा खोलकर बताया कि संजय नहीं रहे. संजय और इंदिरा का रिश्ता बहुत खास था.
चुनाव में हार के बाद टूट गईं थीं इंदिरा
इमरजेंसी के बाद जब चुनाव हुआ तो संजय और इंदिरा दोनों चुनाव हार गए, इस हार से इंदिरा टूट गई थीं. वे गुमसुम रहती थीं क्योंकि जब सत्ता नहीं थी तो लोग दूर हो गए थे. वो घर पर रहती थीं, सन्नाटा पसरा रहता था. कोई नौकर और कुक भी नहीं था. परिवार के लोगों ने उस कठिन वक्त को प्यार से काटा, यह इंटरव्यू में मेनका बताती हैं.
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