Inspirational Journey: मुंबई में टीवी कमर्शियल के क्षेत्र में 17 साल का जमा-जमाया करियर छोड़ कर जेनी पिंटो ने पर्यावरण प्रेम में बेंगलुरु का रुख कर लिया. तब उनके सामने बड़ा सवाल था कि आगे वे क्या करेंगी? मन में था ऐसा कुछ करना, जिससे शौक को समय दे पाऊं और प्रकृति के बीच समय बीता सकूं.
इस बारे में जेनी कहती हैं कि “जब मैं मां बनी, तो मुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होने लगा. उपभोक्तावाद और पर्यावरण को लेकर मेरे मन में सवाल उठने शुरू हो गये थे. मैंने सोचना शुरू कर दिया था कि किस प्रकार पर्यावरण से लगाव जारी रख सकती हूं और प्रदूषण से दूर स्वच्छ दुनिया की ओर कदम बढ़ा सकती हूं लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि इसके लिए मैं क्या करूंगी?”
पोर्टलैंड जाकर सीखा काम
जेनी को शुरू से पेपर मेकिंग का काम आकर्षित करता था. जेनी कहती हैं, “30 की उम्र में मैंने मुंबई छोड़ दिया और बेंगलुरु चली आयी. मैंने वहां बर्तन बनाना सीखना शुरू किया. उसी दौरान हाथ से बने कागज के लिए लेक-डेम में जाने का मौका मिला. यहां केले के रेशों से कुछ बनाने की कोशिश की. फिर इसके उपयोग से कागज बनाने लगीं”.
जेनी के अनुसार, उनकी दिलचस्पी इको फ्रेंडली कागज तैयार करने में बढ़ने लगी. साल 1998 में उन्होंने अपना एक छोटा-सा स्टूडियो खोला. पर्यावरण प्रेम ऐसा कि इस स्टूडियो का निर्माण पूरी तरह से गोबर-मिट्टी, लकड़ी आदि प्राकृतिक चीजों से करवाया, जो बेंगलुरु का पहला ग्रीन बिल्डिंग है. लेकिन अभी भी बहुत कुछ सीखना था. साल 2000 में पोर्टलैंड जाकर प्राकृतिक फाइबर से कागज बनाना और उसे लाइटिंग के लिए इस्तेमाल करना सीखा. जेनी बताती हैं कि पेपर बनाना मुश्किल काम नहीं है, इसकी पूरी प्रक्रिया को इको-फ्रेंडली बनाना चुनौती है.
उत्पादन की पूरी प्रक्रिया इको फ्रेंडली
जेनी बताती हैं, “कागज को प्लांट सेल्युलोज से बनाया जाता है. इसकी सामग्री प्राकृतिक है, लेकिन हम जिस तरह से पेपर बनाते हैं, उसकी सामग्री का स्रोत और उत्पादन की प्रक्रिया बिल्कुल अलग है. इस पूरी प्रक्रिया में फाइबर को पानी और एडिटिव्स में पकाया जाता है और फिर लुगदी को सांचे में डालकर पेपर बनाया जाता है.”
हालांकि वे जानती थीं कि इससे पानी की खपत ज्यादा होगी, इसलिए उन्होंने बारिश के पानी को संरक्षित और रीसाइकल करने के लिए अलग से एक यूनिट लगायी. वे कागज बनाने में इसी पानी का इस्तेमाल करती हैं और फिर बचे हुए पानी से अपने गार्डन में लगे पौधों की सिंचाई करती हैं. यानी पूरी प्रक्रिया पूरी में पर्यावरण की अनुकूलता का पूरा ध्यान रखा गया है.
वे आगे बताती हैं, “कुछ समय बाद मुझे कुछ ऐसे मैन्युफैक्चरर्स मिल गये, जिन्हें मैंने छोटा होलैंडर बीटर (कागज बनाने की मशीन) बनाने के लिए राजी कर लिया. अब इसके लिए मुख्य रूप से कच्चे माल यानी केले के रेशे की जरूरत थी, आखिरकार वो भी मिल ही गया.”
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ऊर्जा ब्रांड की रखी नींव
केले के रेशे से कागज बनाने के काम को साल 2018 में जेनी ने सस्टेनेबल मटेरियल से डिजाइनर लाइट बनाने के रूप में विस्तार िदया. इसे ऊर्जा नाम से एक पूर्ण घरेलू ब्रांड में बदल दिया. उनके इस ब्रांड को रादेश शेट्टी जैसे कुशल आन्त्रप्रेन्योर का साथ मिला, जिन्होंने इस बिजनेस को आगे बढ़ाने में पैसा लगाया. वे अब फॉक्स सीमेंट से लैंप, दरवाजे के हैंडल और सजावटी सामान बनाती हैं. डिजाइनर लैंप बनाये जाते हैं. बचे हुए कॉर्क को कोस्टर और अन्य प्रोडक्ट बनाने में फिर से उपयोग किया जाता है. लैंप की कीमत 14,000 से शुरू होती है. वहीं आर्क फ्लोर लैंप की कीमत 73,000 से शुरू है. उत्पादन के लिए जेनी ने घर के पास ही कुछ कारीगरों को खोजा और हस्तशिल्प में हुनरमंद थे. नये लाइटिंग के काम के अनुसार उन्हें प्रशिक्षित किया. आज उनके साथ 50 से ज्यादा कारीगर काम कर रहे हैं. उनका ब्रांड लिंक्डइन, गूगल व रिलायंस के साथ जुड़ चुका है.
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