Integration of 565 Princely States 5: कश्मीर के भारत में विलय से पहले महाराजा हरि सिंह ने क्यों कहा था-मुझे गोली मार देना
Integration of 565 Princely States 5:भारत की आजादी के बाद जिन देसी रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना किया, उनमें कश्मीर सबसे अहम था. कश्मीर के राजा हिंदू थे जबकि बहुसंख्यक जनता मुसलमान थी, इसलिए पाकिस्तान की नजर कश्मीर पर थी. पाकिस्तान यह चाहता था कि वह किसी भी तरह कश्मीर पर अपना हक जमा ले.
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Integration of 565 Princely States 5: भारतीय इतिहास के वैसे विवादित विषय जिनसे वर्तमान भी प्रभावित है कि चर्चा की जाए तो सूची में सबसे ऊपर कश्मीर को रखा जा सकता है. वो कश्मीर जिसका उल्लेख संस्कृत के कविता संग्रह राजतरंगिणी में भी किया गया है, उस कश्मीर पर आधिपत्य को लेकर भारत और पाकिस्तान में सबसे पहले 1948 में युद्ध हुआ था. उसके बार 1965, 1971 और 1999 में भी भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और इन युद्ध में कहीं ना कहीं कश्मीर का मुद्दा हावी था.
कश्मीर पर हिंदू और बौद्ध राजवंश का शासन था
कश्मीर के इतिहास पर नजर डालें तो यहां मुगल शासन स्थापित होने से पहले हिंदू और बौद्ध राजाओं का शासन था. उसके बाद यहां एक मुस्लिम राजवंश स्थापित हुआ, लेकिन कुछ समय बाद यहां मुगलों का शासन कायम हो गया, जो लगभग दो सौ वर्षों तक कायम रहा. उसके बाद कश्मीर पर अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली ने कब्जा कर लिया. उसके बाद 1819 में शेर ए पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर कब्जा कर लिया.प्रथम सिख युद्ध के अंत के बाद महाराजा गुलाब सिंह ने अंग्रजों से समझौता कर लिया और उनके अधीन स्वतंत्रता शासक बने रहे.
भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद कश्मीर में क्या हुआ?
4 जून 1947 को जब लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी की तारीख घोषित की,तो उन्होंने भारत के 565 रियासतों को लैप्स ऑफ पैरामाउंसी का विकल्प दिया. इस विकल्प के तहत जिन रियासतों ने स्वतंत्र रहने का ऐलान किया उनमें कश्मीर सबसे बड़ा राज्य था.भारत यह चाहता था कि महाराजा हरिसिंह इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन यानी भारत में शामिल होने की कानूनी प्रक्रिया का पालन करें, लेकिन महाराजा हरि सिंह ने मना कर दिया. कश्मीर की बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की थी, इसलिए पाकिस्तान यह चाहता था कि कश्मीर उसके साथ आ जाए. महाराजा हरिसिंह खुद हिंदू राजा थे, इसलिए वे पाकिस्तान के साथ जाना नहीं चाहते थे. महाराजा का यह फैसला पाकिस्तान को मंजूर नहीं था.
लॉर्ड माउंटबेटन ने महाराजा हरि सिंह को समझाया था
लॉर्ड माउंटबेटन के साथ महाराजा हरिसिंह के संबंध अच्छे थे, इसलिए वे उन्हें समझाने गए थे. महाराजा हरिसिंह ने स्वतंत्र रहने की जिद की थी, इसपर माउंटबेटन ने उनसे कहा था कि आप चाहें तो पाकिस्तान में शामिल हो जाएं, लेकिन स्वतंत्र रहने की जिद ना करें. लेकिन राजा हरिसिंह नहीं माने. इस वजह से भारत सरकार परेशान थी. वहीं पाकिस्तान को कश्मीर हर हाल में चाहिए था. इसलिए भारत सरकार सतर्क थी.यही वजह थी कि उन्होंने शेख अब्दुल्ला जैसे लोगों की रिहाई की कोशिश की.
शेख अब्दुल्ला ने महाराजा हरि सिंह का विरोध किया था
शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में महाराजा हरिसिंह का विरोध किया था और उनके खिलाफ कश्मीर छोड़ो अभियान चलाया था.शेख अब्दुल्ला पढ़े-लिखे थे, लेकिन उन्हें कश्मीर में नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए वे महाराजा हरिसिंह का विरोध कर रहे थे. उनका यह कहना था कि सरकारी नौकरी में सिर्फ हिंदुओं का प्रभुत्व क्यों है, क्या राजा हिंदू है इसलिए? यही वजह था कि शेख अब्दुल्ला ने कश्मीरियों को राजा के खिलाफ एकजुट कर लिया था.
पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जे के लिए चली चाल
एक ओर तो भारत सरकार कश्मीर को दबाव डालकर भारत में शामिल करने के पक्ष में नहीं थी, वहीं पाकिस्तान ने चाल चलना शुरू कर दिया था. सबसे पहले तो उसने पाकिस्तान के साथ हुए स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट को तोड़ दिया और उसके बाद कश्मीर की नाकेबंदी शुरू कर दी. पाकिस्तान ने कश्मीर को भेजे जाने वाले सामानों पर भी रोक लगा दिया. उसके बाद पाकिस्तान की ओर से कबायलियों ने आक्रमण कर दिया. कबायली हमलावरों की संख्या हजारों में थी और उनके पास हथियार भी थे. महाराजा परेशानी में थे, क्योंकि उनके वफादार राजेंद्र सिंह शहीद हो चुके थे. हमलावर श्रीनगर के करीब पहुंच चुके थे और उन्होंने लूटपाट, हथियार और महिलाओं के साथ बलात्कार करना शुरू कर दिया. तब महाराजा को यह समझ आ गया कि वे अकेले कुछ नहीं कर पाएंगे तब 24 अक्टूबर 1947 को उन्होंने भारत सरकार से मदद मांगी.
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वीपी मेनन श्रीनगर पहुंचे
दिल्ली में डिफेंस कमेटी की बैठक के बाद रियासत विभाग के सचिव वीपी मेनन को श्रीनगर भेजा गया. जहां उन्होंने महाराजा से बात की और उन्हें जम्मू जाने को कहा, क्योंकि उन्हें शंका थी कि अगर हरिसिंह कबायलियों के हत्थे चढ़ गए तो वे उन्हें मार डालेंगे और भारत पर कश्मीर का हक कभी नहीं हो पाएगा. वीपी मेनन ने दिल्ली लौटकर प्रधानमंत्री पंडित नेहरू, सरदार पटेल और लॉर्ड माउंटबेटन से कहा कि हमें अपनी सेना कश्मीर भेजनी चाहिए अन्यथा कश्मीर भारत के हाथ से निकल जाएगा. लेकिन माउंटबेटन नहीं मान रहे थे, उनका कहना था कि पहले राजा हरिसिंह को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन करना होगा, तभी भारतीय सेना वहां जाएगी.
इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर राजा हरिसिंह ने साइन किया
कश्मीर की स्थिति बहुत खराब थी, लेकिन भारतीय सेना माउंटबेटन की जिद की वजह से वहां पहुंच नहीं पा रही थी. तब वीपी मेनन दस्तावेज लेकर महाराजा से मिलने जम्मू गए उस वक्त वे सो रहे थे, लेकिन उन्होंने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन कर दिया. इसके बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया. लेकिन उन्हें शंका थी अगर भारतीय सेना समय पर नहीं पहुंची तब क्या होगा, इसलिए उन्होंने अपने दीवान को बुलाकर यह कहा कि अगर कल सुबह तक भारतीय सेना अपने इलाके में ना दिखे तो मुझे जगाने की बजाय नींद में ही गोली मार देना. वीपी मेनन ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है.
भारतीय सेना कश्मीर पहुंची और कबायलियों को खदेड़ा
भारतीय सेना जब वहां पहुंची और कबायलियों को खदेड़ा तो पाकिस्तान बौखला गया और अपनी सेना के कार्यवाहक कमांडर-इन-चीफ जनरल ग्रेसी को कश्मीर में सैनिक भेजने का आदेश दिया, लेकिन ग्रेसी सिंह नहीं माने, उनका कहना था कि यह भारत के खिलाफ युद्ध होगा क्योंकि कश्मीर अब भारत का हिस्सा है. चूंकि आजादी के वक्त भारत और पाकिस्तान दोनों के कमांडर इन चीफ अंग्रेज थे इसलिए वे अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध के पक्षधर नहीं थे.
जिन्ना ने नेहरू और माउंटबेटन को लाहौर बुलाया
जिन्ना ने कश्मीर के मसले पर बात करने के लिए नेहरू और माउंटबेटन को कश्मीर बुलाया, लेकिन पटेल ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा नेहरू नहीं जाएंगे, हमला पाकिस्तान ने किया था और अगर उसे बात करनी है तो वो लाहौर आएं. तबीयत की वजह से नेहरू लाहौर नहीं गए, माउंटबेटन गए. लेकिन वहां माउंटबेटन ने यह कहा कि कश्मीर को भारत ने धोखे और युद्ध के जरिए अपने साथ शामिल किया है, इसलिए वे इस विलय को नहीं मानते हैं. वहीं नेहरू ने जनमत संग्रह की बात करके मामले को और उलझा दिया और कहा कि कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के बाद वहां जनमत संग्रह कराया जाएगा और शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत मसले को संयुक्त राष्ट्र में उठाएगा.
31 दिसंबर 1947 को कश्मीर का मसला भारत ने संयुक्त राष्ट्र में उठाया
पंडित नेहरू की राय के अनुसार भारत ने 31 दिसंबर 1947 को पाकिस्तान के खिलाफ शिकायत भेजा, लेकिन भारत की कोशिश बेकार हो गई. ब्रिटेन और अमेरिका ने इसे राजनीति का मुद्दा बना दिया. वे कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच एक मुद्दा बना दिया.नेहरू ने प्रधानमंत्री पद छोड़ने की पेशकश भी की थी, लेकिन वे अब कश्मीर के मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे. उन्होंने शेख अब्दुल्ला को अपना समर्थन दिया, जिसकी वजह से महाराजा हरिसिंह ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री बनाया. उस वक्त शेख अब्दुल्ला पाकिस्तान के विरोधी और भारत के समर्थक थे. 1 जनवरी 1949 को भारत और पाकिस्तान की सेना के बीच सीजफायर लागू कर दिया गया. उस समय पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से कश्मीर से बाहर नहीं हुई थी, परिणाम यह हुआ कि जिन इलाकों पर पाकिस्तानी सेना का कब्जा था, वह पाकिस्तान के पास चला गया और जिनपर भारतीय सेना जीत हासिल कर चुकी थी वह भारत का हिस्सा है.