Integration of 565 Princely States 4: भोपाल के नवाब को चाहिए था पाकिस्तान का साथ, सरदार पटेल को लिखा था ये पत्र
Integration of 565 Princely States 4: भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह का रुतबा काफी बड़ा था वे चैंबर ऑफ प्रिंसेस के प्रमुख सदस्य, जिन्ना के करीबी और लॉर्ड माउंटबेटन के खास दोस्त थे. आजादी के बाद उनका सपना था कि भोपाल रियासत स्वतंत्र मुल्क के रूप में रहे. दक्षिण भारत की अमीर रियासत त्रावणकोर भी कुछ इसी तरह का ख्वाब पाल रही थी.
Integration of 565 Princely States 4: आजादी के बाद जब प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने रियासत विभाग का गठन किया था,तो उन्हें इस बात का अंदेशा था कि 565 स्वतंत्र रियासतों को भारत का हिस्सा बनाना आसान काम नहीं है. यही कारण था कि उन्होंने लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को इस विभाग की जिम्मेदारी सौंपी थी. रियासतों को भारत में शामिल करने के काम में कई बार सरकार को बल प्रयोग भी करना पड़ा. लेकिन आज यहां बात हो रही है उन दो रियासतों की जिन्होंने माउंटबेटन प्लान की घोषणा के बाद तो खूब डींग हांका की वे अलग देश के रूप में रहेंगे, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि सरेंडर कर दिया.
भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे
भोपाल मध्य भारत के केंद्र में स्थित रियासत था और यहां के नवाब हमीदुल्लाह यह चाहते थे कि उनकी रियासत का स्वतंत्र अस्तित्व हो, दूसरे विकल्प के रूप में वे पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे, लेकिन भारत के साथ रहने की उनकी कोई इच्छा नहीं थी. उनकी यह ख्वाहिश भारत सरकार के लिए बड़ी चिंता का कारण था. भोपाल भारत के मध्य में स्थित था और अगर वह हिस्सा पाकिस्तान के पास चला जाता तो वह भारत की एकता के लिए खतरा था. नवाब हमीदुल्लाह की लॉर्ड माउंटबेटन और मोहम्मद अली जिन्ना से निकटता भी थी. इसी वजह से माउंटबेटन ने आजादी से पहले उन्हें सलाह देते हुए पत्र लिखा था कि वे इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन करके उन्हें सौंप दें, लेकिन वे दस्तावेज रियासत विभाग को तब तक नहीं सौंपेंगे जबतक कि हमीदुल्लाह अपने फैसले पर पूरी तरह विचार ना कर लें. अगर वे चाहें तो फैसला बदल भी सकते हैं. सर हमीदुल्ला खान चैंबर ऑफ प्रिंसेस के एक प्रमुख सदस्य थे और 1931 से 1932 तक और 1944 से 1947 तक उस निकाय के चांसलर रहे थे, इसलिए उनका रुतबा बड़ा था. लेकिन भोपाल के नवाब ने स्थिति की गंभीरता को समझा और कुछ सुविधाओं के साथ भारत के साथ जाने में ही भलाई समझी और सरदार पटेल को पत्र लिखकर अपनी सहमति दे दी.
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त्रावणकोर रियासत के दीवान ने की स्वतंत्र रहने की घोषणा
लॉर्ड माउंटबेटन ने जब भारत की आजादी की तिथि घोषित कर दी, तो त्रावणकोर रियासत ने सबसे पहले आजादी की घोषणा की थी. त्रावणकोर रियासत वर्तमान केरल राज्य और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों तक फैला था. त्रावणकोर के शासकों का संबंध दक्षिण भारत के प्राचीन चेरा राजाओं से था. वीपी मेनन ने अपनी किताब THE STORY OF THE INTEGRATION OF THE INDIAN STATES में बताया है कि चेरा राजाओं का त्रावणकोर कई कई छोटी-छोटी रियासतों में बंट गया था. बाद में इन सभी रियासतों को एक करने का काम राजा मार्तंड वर्मा ने किया था. उन्होंने 18वीं सदी की शुरुआत में शासन किया था. जनवरी 1750 में उन्होंने औपचारिक रूप से राज्य को अपने परिवार के संरक्षक देवता श्री पद्मनाभ को समर्पित कर दिया; और उनके दास के रूप में शासन किया. यह वही पद्मनाभ मंदिर हैं जहां के तहखानों से 2011 में एक लाख करोड़ से अधिक का सोना और हीरा निकला था. खैर ये बात तो सिर्फ इसलिए याद दिलाई क्योंकि पद्मनाभ स्वामी का जिक्र यहां आया था. कहने का आशय सिर्फ यह है कि इस रियासत के राजाओं के पास काफी दौलत थी.
आजादी के वक्त इस राज्य पर दो लोगों की हुकूमत चलती थी एक तो वहां के राजा बलराम वर्मा और दूसरे वहां के दीवान सीपी रामास्वामी अय्यर. 11 जून 1947 को दीवान ने घोषणा की कि हमारी रियासत अंग्रेजी शासन खत्म होने के बाद आजाद होगी. दीवान का यह कहना था कि हम भारत या पाकिस्तान में शामिल नहीं होंगे. दीवान और राजा का यह मानना था कि उनकी रियासत समुद्र के तट से लगी है और उनका भारत से कोई लेना-देना नहीं है. त्रावणकोर की इस घोषणा से भारत सरकार चिंतित थी क्योंकि यह भारत की एकता पर खतरा था और उन रियासतों का मन बढ़ाने वाला भी था जो भारत में शामिल होना नहीं चाहती थीं. लेकिन जनता राजा और दीवान के फैसले से खुश नहीं थी और उन्होंने इसका विरोध किया. 25 जुलाई को दीवान पर जनता ने जानलेवा हमला कर दिया, जिससे वे घबरा गए और यह भी समझ गए कि उनका फैसला गलत है. परिणाम यह हुआ कि भारत सरकार के बिना बल प्रयोग किए ही त्रावणकोर के राजा बलराम वर्मा ने 12 अगस्त को माउंटबेटन को यह संदेश भेजा कि वे भारत में शामिल होना चाहते हैं और इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन कर दिया, जिसके जरिए त्रावणकोर रियासत भारत का हिस्सा बन गया.