Integration of 565 Princely States 3: जूनागढ़ के रंगीन मिजाज नवाब महाबतखान ने भारत को धोखा देकर पाकिस्तान के साथ जाने का किया था फैसला
Integration of 565 Princely States 3 : जूनागढ़ का नवाब महाबतखान रंगीन मिजाज था. उसकी कई बेगम थीं और उसे कुत्तों से बहुत प्यार था. उसने अपने कुत्तों की शादी में राजकीय अवकाश भी दिया था. लेकिन महाबत खान ने भारत के साथ धोखा किया, उसने शुरुआत में तो भारत के साथ आने का नाटक किया, लेकिन अचानक पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी. जूनागढ़ की 80 प्रतिशत जनता हिंदू थी और वह भारत के साथ आना चाहती थी.
Integration of 565 Princely States 3 : 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, तो जूनागढ़ के नवाब ने एक चुनौती पेश कर दी थी. अंग्रेजों ने देसी रियासतों को लैप्स ऑफ पैरामाउंसी के तहत जो विकल्प दिया था, उसका उपयोग करते हुए जूनागढ़ के नवाब ने यह घोषणा कर दी कि वे पाकिस्तान के साथ जाएंगे. जूनागढ़ रियासत की कोई सीमा पाकिस्तान से नहीं लगती थी. यही वजह थी कि जूनागढ़ के फैसले ने रियासत विभाग के मंत्री और अधिकारियों की नींद उड़ा दी थी. रियासत विभाग के सचिव रहे वीपी मेनन ने अपनी किताब THE STORY OF THE INTEGRATION OF THE INDIAN STATES में लिखा है कि किस तरह जूनागढ़ के नवाब ने भारत सरकार को धोखे में रखा और इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन नहीं किया. वीपी मेनन ने जूनागढ़ के नवाब के फैसले की तुलना पश्चिमी क्षितिज पर खतरनाक बादल छा जाने से की है.
कहां स्थित था जूनागढ़ रियासत
1947 का जूनागढ़ रियासत वर्तमान गुजरात में स्थित है. जूनागढ़ काठियावाड़ के दक्षिण-पश्चिम में स्थित था. इसकी सीमाएं भारतीय राज्यों से जुड़ती थीं सिवाय दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम के क्षेत्र के जहां अरब सागर स्थित है. जूनागढ़ का पाकिस्तान से कोई नाता सीमा को लेकर नहीं था. पोर्ट वेरावल से कराची तक समुद्र के रास्ते दूरी लगभग 300 मील थी. यहां की जनसंख्या की 80 प्रतिशत आबादी हिंदू थी. वीपी मेनन लिखते हैं कि भारत में शामिल हुए राज्यों के कुछ हिस्से जूनागढ़ क्षेत्र में स्थित थे, जहां तक जाने के लिए जूनागढ़ क्षेत्र में प्रवेश करना ही पड़ता था. आज का राजकोट भी इसी रियासत के अंदर आता था.
क्या है जूनागढ़ का इतिहास
जूनागढ़ का क्षेत्र 1472-73 तक चूडासमा वंश के अधीन एक हिंदू राजपूत राज्य था. बाद में जब इसे अहमदाबाद के सुल्तान मुहम्मद बेदगा ने जीत लिया था, तो यह दिल्ली दरबार के अधीन आ गया. 1735 में शेरखान बाबी ने मुगल गवर्नर को निष्कासित कर जूनागढ़ पर अपना शासन स्थापित किया. जूनागढ़ के अंतिम नवाब महाबत खान रसूलखान उसी के वंशज थे.
रंगीन मिजाज थे नवाब महाबतखान
नवाब महाबतखान काफी रंगीन मिजाज थे और उनकी कई बीवियां थीं. वीपी मेनन ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि महाबतखान को कुत्तों से बहुत प्यार था और वे हमेशा कुत्तों से घिरे रहते थे. उनके पास सैकड़ों कुत्ते थे. इतना ही नहीं उन्होंने अपने दो कुत्तों की शादी भी कराई थी, जिसपर काफी खर्च भी किया गया. कुत्तों के शादी के दिन जूनागढ़ रियासत में राजकीय अवकाश घोषित किया गया था. नवाब महाबतखान ने भारत सरकार को अंधेरे में रखा और हमेशा यह जताने की कोशिश की कि वह एकीकृत काठियावाड़ का समर्थक है.
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जूनागढ़ के नवाब ने भारत को दिया था धोखा
25 जुलाई 1947 को जब लॉर्ड माउंटबेटन ने देसी राज्यों को संबोधित किया तो उसमें जूनागढ़ का प्रतिनिधित्व नवाब के संवैधानिक सलाहकार और दीवान के भाई नबी बख्श ने किया था. उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन से कई सवाल पूछे और उन्हें यह बताया की उन्होंने नवाब को भारत में शामिल होने की सलाह दी है. जूनागढ़ के दीवान अब्दुल कादिर मोहम्मद हुसैन ने कराची के मुस्लिम लीग के राजनेता सर शाह नवाज भुट्टो को जूनागढ़ आने और राज्य मंत्रिपरिषद में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. जब मई 1947 में अब्दुल कादिर इलाज के लिए विदेश चले गए, तब सर शाह नवाज ने ही उनके दीवान का पद संभाला. नवाज भुट्टो पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के दादा थे. नवाज भुट्टो के आने के बाद नवानगर के जाम साहब और ध्रांगधरा के महाराजा दोनों ने वीपी मेनन को चेताया था कि अब जूनागढ़ के पाकिस्तान में शामिल होने की संभावना है. जब इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन साइन करने के लिए जूनागढ़ भेजा गया तो उन्होंने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया, जबकि उन्हें यह जानकारी दी गई थी कि आजादी की घोषणा से पहले साइन कर देना है. नवाज भुट्टो टाल मटोल करते रहे और कई नाटक भी किया, जिसमें जनता का हित और उनकी रायशुमारी भी शामिल था. अंतत: 17 अगस्त को अखबार से यह पता चला कि जूनागढ़ पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला कर चुका है. यह बहुत ही खराब सूचना थी क्योंकि इससे हैदराबाद जैसे राज्यों को बढ़ावा मिलता. जूनागढ़ के अलग होने से काठियावाड़ की आर्थिक स्थिति पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा था.
जूनागढ़ ऐसे हुआ भारत में शामिल
कूटनीति के तहत भारत ने जूनागढ़ के भारत में शामिल होने के फैसले को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन सरदार पटेल ने माउंटबेटन और नेहरू के साथ एक बैठक करके वहां सैन्य कार्रवाई की बात कही. लेकिन माउंटबेटन राजी नहीं हुए, उनका कहना था कि ऐसा करने से पाकिस्तान कश्मीर पर नजर डाल सकता है, क्योंकि कश्मीर में भी उसी तरह की स्थिति थी जैसी जूनागढ़ में. जूनागढ़ का शासक मुसलमान और बहुसंख्यक आबादी हिंदू थी और कश्मीर में राजा हिंदू और बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की थी. अंतत: पटेल मान गए और उन्होंने सिर्फ जूनागढ़ की नाकाबंदी की बात कही और वीपी मेनन को जूनागढ़ भेजा गया. नवाज भुट्टो ने वीपी मेनन की नवाब से मुलाकात नहीं करवाई. लेकिन वीपी मेनन ने उन्हें इस बात की चेतावनी जरूर दी कि काठियावाड़ की जनता नवाब के फैसले से नाखुश है और कभी भी विद्रोह हो सकता है, उस वक्त उनके वंश का अंत निश्चित है.
वीपी मेनन ने वापसी में नवाब के दो छोटे जागीरों को भारत में शामिल करवा लिया जिससे नाराज होकर नवाब ने अपनी सेना वहां भेज दी. इससे मामला और बिगड़ गया लेकिन माउंटबेटन सैन्य कार्रवाई के विरोध में थे उन्हें लग रहा था कि इससे भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. लेकिन सरदार नहीं माने और जूनागढ़ की नाकेबंदी और तेज कर दी गई. जूनागढ़ में आम जनता भी नवाब के खिलाफ विद्रोह कर चुकी थी. इन सबसे डर कर नवाब वहां से कराची भाग गए. हालांकि उस वक्त पाकिस्तान ने इसे उसके अंदरूनी मामलों में भारत की दखल बताया था. लेकिन जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया और सरदार पटेल सफल रहे. 9 नवंबर, 1947 को भारत ने जूनागढ़ पर कब्जा कर लिया था. 10 नवंबर, 1947 को जूनागढ़ ने पाकिस्तान में अपना विलय रद्द कर दिया और भारत में शामिल हो गया. बाद में वह जनमत सर्वेक्षण भी कराया गया, जिसमें पाकिस्तान के साथ जाने वाले सिर्फ 91 लोग मिले थे.
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