Jharkhand Assembly election 2024 : झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और पार्टियां अपने-अपने खांचे में तैयारियां कर रही हैं. एनडीए ने शुक्रवार को सीट शेयरिंग की घोषणा भी कर दी है. बीजेपी 81 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीट पर चुनाव लड़ेगी, जबकि उसका सहयोगी दल आजसू 10, जदयू दो और लोजपा एक सीट पर चुनाव लड़ने वाले है. इंडिया गठबंधन की ओर से अभी सीट शेयरिंग को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई है. झारखंड के चुनाव में जिस बात पर सबकी नजर रहती है वो है कि आदिवासी वोटर्स किस ओर जाएंगे, क्योंकि अमूमन आदिवासी वोटर्स एकमुश्त वोट करते हैं, जिसका प्रभाव चुनाव में स्पष्ट तौर पर नजर आता है. लोकसभा चुनाव में इसकी झलक देखने को मिली भी थी. इन हालात में आम जनता यह जानना चाहती है कि आखिर आदिवासी विधानसभा चुनाव में किन मुद्दों पर वोट करेंगे.
लोकसभा चुनाव में सभी 5 आदिवासी रिजर्व सीट पर हार गई बीजेपी
लोकसभा चुनाव में इस बार बीजेपी का प्रदर्शन आदिवासी बहुल सीटों पर अच्छा नहीं रहा है और वो सभी पांच सीट पर चुनाव हार गई. जेएमएम ने अपना ग्राफ इस चुनाव में बढ़ाया और इस बार तीन सीटों पर जीत हासिल की है. जिसमें राजमहल, दुमका और सिंहभूम सीट शामिल है. वहीं कांग्रेस ने इस लोकसभा चुनाव में लोहरदगा और खूंटी सीट पर जीत हासिल की है. लोकसभा के चुनाव परिणाम इस बात की सूचना दे रहे हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी क्षेत्रों में जीत दर्ज करने के लिए काफी जोर लगाना होगा. बीजेपी इस बात पर मंथन कर भी चुकी है कि आखिर क्यों आदिवासी जो उनके साथ आ चुके थे वे लोकसभा चुनाव में उनसे दूर हुए हैं. यही वजह है कि झारखंड के चुनाव प्रभारी हिमंत बिस्वा शर्मा ने कहा है कि हम सभी सीटों पर मजबूत उम्मीदवार उतारेंगे.
आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा का मामला हाइप पर होगा
झारखंड विधानसभा चुनाव में इस बार आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा का मामला सर्वोपरि होगा. जिस प्रकार आदिवासियों की जमीन पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा किया जा रहा है उसे रोकने के लिए आदिवासी वोट करेगा. उक्त बातें सोशल एक्टिविस्ट ग्लैडसन डुंगडुंग ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कही. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि पांचवीं अनूसूची के तहत आदिवासियों के कल्याण को जिस तरह दरकिनार किया जा रहा है, उनकी भाषा संस्कृति और कल्याण के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है, यह मुद्दा भी इस चुनाव में प्रभावी होगा.
स्थानीयता नीति का मुद्दा भी होगा प्रभावी
स्थानीयता नीति को परिभाषित करने का मसला भी इस चुनाव में बहुत खास होने जा रहा है. झारखंड में 1932 के खतियान की बात तो होती है, लेकिन अभी तक स्थानीयता नीति को लेकर कुछ भी पुख्ता नहीं हुआ है, इसलिए आदिवासी इस मुद्दे को लेकर भी वोट करने जा रहा है, ताकि झारखंड की नौकरियों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो.
सरना धर्म कोड भी बनेगा अहम मुद्दा
सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग, आलोका कुजूर और दयामनी बारला तीनों ही इस बात को मानते हैं कि इस बार के चुनाव में सरना धर्म कोड का मुद्दा अहम होगा. आदिवासी समाज लगातार अपने लिए सरना धर्म कोड की मांग करता है और इस बार वह इस बात पर ध्यान देगा कि कौन उनके वर्षों की मांग को अहमियत दे रहा है, इसलिए सरना धर्म कोड आदिवासियों के लिए चुनाव में अहम मुद्दा होगा.
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आदिवासी वर्षों से कर रहे हैं डेमोग्राफी चेंज होने की बात
दयामनी बारला कहती हैं कि हम तो वर्षों से विस्थापन का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इसी वजह से आदिवासियों की डेमोग्राफी बदलती है. आदिवासियों के लिए विस्थापन हमेशा से बहुत बड़ा मसला रहा है और इस चुनाव में भी वो मसला होगा. विस्थापन की वजह से रोजगार की भी समस्या उत्पन्न होती है.
संवैधानिक अधिकारों का मसला भी होगा अहम
आलोका कुजूर कहती है कि संविधान ने आदिवासियों के अस्तित्व को बचाने के लिए उन्हें कई अधिकार दिए हैं, जो उनकी जमीन, भाषा, संस्कृति और धर्म से जुड़ी है. इस चुनाव में आदिवासी अपने उन अधिकारों की रक्षा के लिए भी वोट करेगा, ताकि कोई भी बाहरी व्यक्ति उनके इन अधिकारों का हनन ना कर पाए. आरक्षण का मसला भी इसी काॅलम में आता है.
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