Jharkhand Assembly के मानसून सत्र के दौरान भत्तों के भुगतान के लिए विधायकों का आवेदन विधानसभा सचिवालय को मिलना शुरू हो गया है. 26 जुलाई से दो अगस्त तक चले विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान केवल छह दिन बैठकें चली. परंतु विधायकों को इसके लिए 10 दिन का भत्ता मिलेगा.
विधायकों की ओर से 10 दिन के भत्ते की दावेदारी में अवैध कुछ भी नहीं है. लेकिन सत्र शुरू होने के दिन से लेकर सत्रावसान के दिनों का फेर कुछ इस तरह रखा जाता है कि विधायकों को अधिक से अधिक भत्ता पाने का लाभ दिलाय़ा जा सके. इसमें नियम और कायदों का कहीं उल्लंघन तो नहीं होता है, पर पूरी प्रणाली पर नैतिकता का सवाल जरूर उठता है.
Jharkhand Assembly: व्यवस्था में कहां है पेच, कैसे है भत्ता बढ़ाने का खेल
झारखंड विधानसभा(संभवतः दूसरी विधानसभाओं की भी) की व्यवस्था है कि विधानसभा सत्र शुरू होने के एक दिन पहले और समाप्त होने के एक दिन बाद तक के लिए तय प्रतिदिन के हिसाब से विधायकों को भत्ते का भुगतान किया जाता है. खेल इसी में छिपा है.
विधानसभा का मानसून सत्र 26 जुलाई से शुरू हुआ. उस दिन शुक्रवार था. हाल ही में दुनिया छोड़ गई बड़ी हस्तियों की याद में शोक व्यक्त कर सामान्य परिपाटी के मुताबिक विधानसभा की कार्यवाही समाप्त कर दी गई. 27 जुलाई को शनिवार और 28 जुलाई को रविवार था. दोनों दिन सामान्य परिस्थितियों में विधानसभा की बैठकें नहीं होती हैं. 29 जुलाई को सोमवार से दो अगस्त को शुक्रवार तक बैठकें हुईं. विधायकों को भत्ता 25 जुलाई से तीन अगस्त तक का मिलेगा.
Jharkhand Assembly: तो कैसे हो सकती थी किफायत
अगर विधानसभा का सत्र 26 जुलाई को शुक्रवार के दिन की बजाय 29 जुलाई को सोमवार से शुरू होता तो विधायकों को दो दिन का कम भत्ता मिलता. वैसे भी 27 जुलाई और 28 जुलाई को शनिवार और रविवार होने के कारण विधानसभा का सत्र नहीं ही चलना था. फिर इन दोनों दिनों को सत्र की अवधि में रखने का कोई मतलब नहीं था. इन दोनों दिनों के भत्ते की फिजूलखर्ची का भार भी जनता की गाढ़ी कमाई से मिले टैक्स पर नहीं पड़ता. यह कोई पहली बार नहीं है. आप अगर झारखंड विधानसभा के पिछले मानसून सत्रों या दूसरे छोटे सत्रों पर भी गौर फऱमाएंगे तो आपको यह देखने के लिए मिलेगा.
Jharkhand Assembly: एक रुपये का कटौती प्रस्ताव लाने वालों का विरोध क्यों नहीं
राज्य सरकार की कथित फिजूल खर्ची का नैतिक विरोध जताने के लिए विपक्ष के विधायकों की ओर से एक रुपये का कटौती प्रस्ताव लाकर सांकेतिक तौर पर आपत्ति दर्ज कराई जाती है. परंतु विधानसभा सत्र के दिनों का संयोजन ठीक कर फिजूलखर्ची बंद करने की मांग उठाने की दरियादिली किसी विधायक की ओर से नहीं दिखाई जाती है. शुक्रवार की जगह सोमवार से विधानसभा सत्र शुरू करने पर सारे विधायी कार्य भी हो जाते और 10 दिन की जगह आठ दिन का भत्ता ही विधायकों को देना पड़ता. विधायकों को तीन हजार रुपये प्रति दिन के हिसाब से दो दिन का भत्ता कम मिलने पर यह राशि कुल मिलाकर पांच लाख से कम ही होती. पर बात राशि के आकार से अधिक नीयत और नैतिकता की है.
विधायकों को भत्ता अधिक मिले, इसे ध्यान में रखकर ही शुक्रवार से सत्र की शुरूआत की जाती है. शनिवार और रविवार को बंद होने के कारण अधिकतर विधायक शुक्रवार को पहुंच भी नहीं पाते हैं. इसलिए सोमवार से सत्र की शुरूआत करने में कोई दिक्कत नहीं है.
इंदर सिंह नामधारी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष
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