कोलकाता बड़ा बाजार के मालिक का गिरिडीह के सरिया में था मातृधाम, आज भी है इसका अस्तित्व

मातृधाम नामक एक बंगले के परिसर में विविध फूलों से सुसज्जित उद्यान में कई प्रकार के फलदार पौधे भी लगाये थे. इसका अस्तित्व आज भी है. बगीचे में पौधों की सिंचाई के लिए चारों बगल नल लगवाये गये थे.

By Sameer Oraon | June 22, 2024 8:39 PM

लक्ष्मीनारायण पांडेय, सरिया : अंग्रेजी शासनकाल में बंगाली कोठियों के लिए मशहूर हजारीबाग रोड (सरिया) पश्चिम बंगाल के संपन्न-संभ्रांत लोगों का अनुकूलतम आशियाना बना रहा. अपनी हैसियत के अनुकूल जमीन लेकर पसंद का बंगला बनवाना जैसे उनके शौक में शामिल था. 1920 से शुरू हुई आवाजाही से धीरे-धीरे यहां सैकड़ों बंगाली परिवार बस गये. इन्हीं में एक थे बड़ा बाजार कोलकाता के मालिक व कोयला व्यवसायी दीप्तिनारायण डीएन श्रीमानी.

बिहार-ओड़िशा की कोलियरियों में थी ठेकेदारी :

व्यापारियों के मददगार श्रीमानी के विषय में बताया जाता है कि इस बाजार में स्थित दुकानों के एवज में कभी किसी से टैक्स नहीं लिया, बल्कि जरूरत पड़ने पर उन्होंने इस बाजार में स्थित दुकानों के मालिकों की मदद भी करते रहते थे. बिहार-ओड़िशा में इनकी कोलियरियों में इनकी ठेकेदारी चलती थी. धनबाद स्थित भागाबांध कोलियरी (फिलहाल बीसीसीएल के पीबी एरिया में) के मालिक भी थे. उन्होंने बंगाल के अपने कई मित्रों के संपर्क में आकर सरिया स्थित आश्रम रोड चंद्रमारणी में तीन एकड़ 62 डिसमिल खरीदी और चार आलीशान बंगला बनवाये.

मातृधाम में था मिनी चिड़ियाघर :

मातृधाम नामक एक बंगले के परिसर में विविध फूलों से सुसज्जित उद्यान में कई प्रकार के फलदार पौधे भी लगाये थे. इसका अस्तित्व आज भी है. बगीचे में पौधों की सिंचाई के लिए चारों बगल नल लगवाये गये थे. उक्त बंगला परिसर में फव्वारे के बीच महारानी विक्टोरिया की मूर्ति स्थापित की गयी थी. यह प्रतिमा उस समय बंगला परिसर में आकर्षण का केंद्र थी. जीव-जंतुओं के प्रेमी श्रीमानी के इस परिसर में रंग-बिरंगे तथा सफेद मोर, हंस, सफेद खरगोश, विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियों को पालना इनकी प्रकृति में शामिल था. इन जानवरों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग पिंजरे की व्यवस्था थी. उनके पालतू जीव जंतुओं की सुरक्षा के लिए सालों भर आठ-आठ केयरटेकर लगे रहते थे.

शिकार करना था शौक :

इसके अलावा श्रीमानी की यहां तीन और कोठियां क्रमशः लाल कोठी, मुनी कोठी तथा घोष कोठी थी. लाल कोठी में गुरुवर साधु सीताराम जी का निवास था. आज श्रीमानी की सभी कोठियां बिक चुकी हैं, पर किसी आयोजन में बंगाली परिवार के लोग जब भी सरिया आते हैं गुरुवर साधु सीताराम जी के निवास लाल कोठी में नतमस्तक होते हैं. बताया जाता है कि परिजनों के साथ जब श्रीमानी छुट्टियां बिताने आते थे तो सरिया के जंगलों में स्थानीय लोगों के साथ मनोरंजन तथा मन बहलाव के लिए शिकार करने जाते थे.

खरीदारी के बाद दुकानदार से शेष रकम वापस नहीं लेते :

श्रीमानी की दयालुता को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं. लोग बताते हैं कि सरिया बाजार में पान खाने के बहाने जब निकलते थे तो 10-20 रु की खरीदारी पर 50 या 100 रु दुकानदार को देते थे. दुकानदार शेष राशि वापस करता तो हाथ जोड़कर पैसा वापस नहीं लेते थे. गरीबों की मदद के लिए इनका दर हमेशा खुला रहता था. परिवार के बढ़ने तथा समयाभाव के कारण उनका सरिया आना-जाना कम होता गया. भवन का रंग-रोगन तथा उचित रखरखाव के अभाव में अपने बंगले को बेच देने का निर्णय लिया.

खरीदार ने किया अरमान का सम्मान :

पत्नी सुभद्रा श्रीमानी शिक्षा प्रेमी थी. वह चाहती थीं की मातृधाम में कोई शिक्षण संस्थान खुले. वर्ष 2012 में सुभद्रा श्रीमानी ने अपनी सभी चार कोठियां बेच दीं. उस समय एकमात्र केयरटेकर रहे भातु महतो को उन्होंने 900 वर्ग फीट जमीन दान में दी. खरीदार सत्यदेव प्रसाद ने सुभद्रा श्रीमानी के अरमानों को पूरा करते हुए अंग्रेजी माध्यम का एक विद्यालय खोला. इसका उद्घाटन सुभद्रा श्रीमानी तथा उनके दामाद इंदु बोस ने किया. विद्यालय के उत्थान के लिए उन्होंने 51000 की राशि भी सहयोग स्वरूप भेंट की थी. विद्यालय प्रबंधक सत्यदेव प्रसाद ने बताया कि श्रीमानी परिवार के सौजन्य से विद्यालय आज फल-फूल रहा है. उनके बंगले व जमीन में अंग्रेजी विद्यालय के अलावे 17 लोग मकान बनाकर रह रहे हैं.

Also Read: Jharkhand News: गिरिडीह में ग्रामीण डॉक्टर के बेटे के अपहरण मामले में 6 अपराधी गिरफ्तार

Next Article

Exit mobile version