साइकोसिस और मेनिया की शिकार होकर बर्बाद हो रही हैं दुष्कर्म पीड़िताएं, 5-5 साल तक खा रही हैं दवाइयां

Kolkata Doctor Murder Case : दुष्कर्म की शिकार बेटियां सिर्फ दुर्घटना के वक्त ही दर्द नहीं झेलतीं, उन्हें आजीवन यह हादसा डराता है. डर और खौफ के साए में जीते हुए कई बार वे किसी शारीरिक बीमारी का शिकार बनती हैं, तो कभी किसी मानसिक रोग का. दरिंदगी झेल चुकी लड़कियां पागलपन जैसी मानसिक स्थिति से भी गुजरती हैं, उनकी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार लोग बेपरवाह रहते हैं.

By Rajneesh Anand | August 25, 2024 11:46 AM
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Kolkata Doctor Murder Case : कोलकाता डाॅक्टर मर्डर केस के बाद देश में जहां एक ओर लोगों का गुस्सा उबाल पर है, वहीं दूसरी ओर यौन शोषण के इतने मामले सामने आ रहे हैं कि समाज सन्न है. महाराष्ट्र के बदलापुर में जिस तरह एक नर्सरी स्कूल में दो छोटी बच्चियों के साथ सफाई कर्मचारी ने दुर्व्यवहार किया. कोल्हापुर में दुष्कर्म के बाद हत्या तो असम में सामूहिक दुष्कर्म. तमाम कानूनों के बाद भी हर 15 मिनट पर एक दुष्कर्म के मामले और कुछ इतने भयावह कि मानवता शर्मसार हो रही है. बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन घटनाओं का पीड़ित लड़की, बच्ची और महिला पर क्या प्रभाव पड़ता है? क्या इस तरह की हैवानियत से गुजरने के बाद उनकी जिंदगी सामान्य हो पाती है?

पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की शिकार हो जाती हैं पीड़िताएं

अमेरिका के साउथ कैरोलिना यूनिवर्सिटीं में एक रिसर्च किया गया है, जिसमें हिंसा की शिकार महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर रिपोर्ट पेश की गई है.इस स्टडी में यह बात सामने आई है कि दुष्कर्म की शिकार अधिकतर महिलाओं में जो समस्या सबसे पहले उभरकर सामने आती है वो है PTSD. पीटीएसडी यानी पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर. इस मानसिक विकार की वजह से दुष्कर्म पीड़िताएं काफी परेशान और डरी हुई रहती है. रिसर्च में यह बात सामने आई है कि दुष्कर्म पीड़ितों में से लगभग एक तिहाई (31%) को अपने जीवनकाल के दौरान कभी न कभी पीटीएसडी से गुजरना पड़ा. वहीं 11 %  महिलाएं आजीवन इसका शिकार रहती हैं.

पागलपन के लक्षण उभरकर सामने आते हैं

मनोवैज्ञानिक डाॅ पवन वर्णवाल का कहना है कि दुष्कर्म की शिकार लगभग सभी महिला में मनोवैज्ञानिक समस्याएं नजर आती हैं, लेकिन उन महिलाओं की स्थिति ज्यादा गंभीर होती है जिनके साथ हैवानियत हुई हो या सामूहिक दुष्कर्म हुआ हो. रांची के सीआईपी में इस तरह की घटनाएं आती रहती हैं. क्लिनिक में उस तरह की घटनाएं सामने ज्यादा आती हैं, जिनमें पीड़िता के रिश्तेदार या पहचान वाले शामिल होते हैं. आम तौर पर गंभीर मामलों में जो मानसिक समस्या ज्यादा दिखती है, वो इस प्रकार हैं-

1. साइकोसिस (मतिभ्रम की स्थिति, पागलपन के लक्षण उभरते हैं)

2. मेनिया (इस मानसिक स्थिति में इंसान के स्वभाव और व्यवहार में बहुत ज्यादा बदलाव आता है. वह बहुत गुस्सा भी करता है)

3. डिप्रेशन (डिप्रेशन में गया व्यक्ति खुद से नाराज हो जाता है, आत्महत्या तक की सोच विकसित हो जाती है)

करीबी या रिश्तेदार द्वारा रेप या यौन शोषण की शिकार हुई महिलाओं में जो मानसिक समस्या ज्यादा उभरकर सामने आती है वे इस प्रकार हैं-

1. पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्ड (इस स्थिति में पीड़िता बहुत ज्यादा सोचती है)

2. बदले की भावना का विकास

3. इरिटेशन 

4. घबराहट और बेचैनी की समस्या

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काउंसिलिंग की सख्त जरूरत

डाॅ पवन वर्णवाल ने बताया कि उनके पास एक केस आया था जिसमें 22 लोगों ने एक लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था. वह लड़की साइकोसिस का शिकार थी. उसके साथ इस तरह की दरिंदगी हुई थी कि वो अपना आपा खो चुकी थी. उसके इलाज में दवाइयों की जरूरत थी.

वहीं हाल ही में एक मामला सामने आया था जिसमें एक 14 साल की लड़की के साथ उसके कजिन ने यौन शोषण किया और वह इससे परेशान थी. लेकिन माता-पिता को बता नहीं पा रही थी, उसने अपनी बहन को बताया, वही उसे डाॅक्टर के पास लेकर आई थी. वह मानसिक तौर पर काफी परेशान थी, क्लिनिक में उसकी काउंसिलिंग की गई और उसे समझाया गया क्योंकि वह काफी डरी हुई थी.

लेकिन जो लोग साइकोसिस, डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, डिल्यूजन और मेनिया जैसी बीमारी के शिकार होते हैं, उन्हें दवा की जरूरत होती है. यह पीड़ित की मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है कि उसके इलाज में कितना वक्त लगेगा. कभी छह महीने तो कभी-कभी पांच साल का वक्त भी इलाज में लग जाता है. इस स्थिति में उन्हें सही इलाज और परिवार के प्रेम और सहारे की जरूरत होती है. मनोवैज्ञानिक भी उन्हें यही सबकुछ देने की कोशिश करते हैं, उनका भरोसा टूट चुका होता है, इसलिए उन्हें हौसले की जरूरत होती है.

छोटी बच्चियों में नहीं होती है समझ

दस साल से छोटी बच्चियों का यौन शोषण होता है, तो यहां यह समझना जरूरी है कि उनमें सेक्सुअल ओरिएंटेशन नहीं होता है, इसलिए उन्हें यह समझ ही नहीं आता है कि हमारे साथ क्या होता है. हमारे देश में अधिकतर बच्चियों में पीरियड्‌स की शुरुआत 12साल से होती है कुछेक मामलों में ही यह दस साल में नजर आता है. चूंकि बच्चियों को पता ही नहीं होता कि उनके साथ क्या हो रहा है, इसलिए उनके अंदर सिर्फ डर की भावना विकसित होती है. दोषी व्यक्ति बच्चियों को डरा कर या फुसलाकर उनके साथ यौन शोषण करता है, इसलिए कई बार परिवार वालों को पता भी नहीं चलता है कि उनकी बच्ची के साथ कुछ गलत हुआ है. लेकिन इन बच्चियों की मानसिक अवस्था तब खराब होती है जब वे बड़ी होती हैं और उन्हें वो सबकुछ याद रहता है कि फलां व्यक्ति ने उनके साथ गलत किया था. कई बार मामला गंभीर भी हो जाता है.

दुष्कर्म की वजह से हो सकती हैं बांझपन की शिकार 

दुष्कर्म के शारीरिक प्रभाव के बारे में बात करते हुए स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅ पुष्पा पांडेय कहती हैं कि अगर हैवानियत बहुत ज्यादा ना हुई हो तो लड़की के शरीर पर बहुत प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन गैंगरेप के मामलों में प्राइवेट पार्ट में इंज्युरी हो जाती है और उसे तुरंत इलाज की जरूरत होती है. वहीं कई बार यह भी होता है कि दोषी व्यक्ति किसी यौन रोग से पीड़ित हो और उसके प्रभाव में आने से लड़की को भी वो इंफेक्शन हो जाए. किसी-किसी मामले में तो ट्‌यूब ब्लाॅक भी हो जाता है जिसकी वजह से लड़की को मां बनने में परेशानी होती है. हालांकि इस तरह के केस कम ही सामने आते हैं, लेकिन यह संभव है. 

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