Lebanon Hindu Temple in Danger: लेबनान में हिज्बुल्लाह आतंकवादियों का नामोनिशान खत्म करने में जुटी इजरायली सेना लगातार एक के बाद एक मोर्चे फतह करती जा रही हैं.
आतंकवाादियों के खात्मे की अच्छी खबरों के साथ ही भारतीयों के लिए एक बुरी खबर भी है. वहां भारत की एक निशानी का भी वजूद खतरे में है. अगर यह खत्म हो गया तो लेबनान में भारतीयों के गौरव की महान निशानी मिट जाएगी. क्योंकि उस पर इजरायल की बमबारी और हिज्बुल्लाह आतंकवादियों के हमले दोनों के खतरे मंडरा रहे हैं.
लेबनान में भारत के गौरव की वह निशानी बालबेक मंदिर है. जो लेबनान की राजधानी बेरूत से 67 किलोमीटर दूर स्थित है. इसके आस-पास शिया मुसलमानों की बहुलता के कारण यहां हिज्बुल्लाह का मजबूत ठिकाना माना जाता है.
इस कारण इजरायली सेना धीरे-धीरे इस ओर बढ़ रही है. हालांकि दो हजार साल पुराने बालबेक मंदिर के खंडहर ही अब बचे हैं. परंतु ये खंडहर भी सीना ताने हुए सदियों से भारतीय गौरव की पताका लहरा रहे हैं.
चर्चा है कि उसके विशाल परिसर में छिपने के लिए हिज्बुल्लाह आतंकवादी वहां का रुख कर सकते हैं. ऐसे में इजरायली सुरक्षा बलों का भी हमला हो सकता है. इसके बाद के नतीजे का अनुमान आप आासानी से लगा सकते हैं. वहीं हिज्बुल्लाह आतंकी संगठन होने के साथ ही एक चरमपंथी धार्मिक संगठन भी है. हिज्बुल्लाह के भागते गुरिल्ले यहां मौजूद धार्मिक चिन्हों को मिटाने के लिए खंडहर के बचे अवशेषों को भी जमींदोज कर सकते हैं.
Lebanon Hindu Temple in Danger: मंदिर के बारे में लेबनान के बच्चे कोर्स में क्या पढ़ते हैं?
सद्गुरु जग्गी वासुदेव अपनी पुस्तक ‘भारत: एक राष्ट्र की लय’ में लिखते हैं कि लेबनान के बच्चे अपने स्कूल के कोर्स में पढ़ते हैं कि बालबेक मंदिर को चार हजार साल पहले भारतीय योगियों के द्वारा भारतीय कलाकारों, श्रमिकों और हाथियों की मदद से बनवाया गया था.
यह एक विशाल मंदिर है. इसके नींव के अधिकतर पत्थर 300 टन से अधिक वजनी हैं. छतों में कमल के फूल की आकृतियां भी उकेरी गई हैं. निःसंदेह लेबनान में कमल के फूल नहीं होते हैं. भारतीय संस्कृति में कमल को आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है. हर हिंदू मंदिर में कमल की आकृति जरूर मिलती है. ये भारतीय कलाकारों द्वारा बनाए गए थे. हर लेबनानी बच्चा यह जानता है.
सद्गुरु जग्गी वासुदेव आगे लिखते हैं कि अरब, रोमन और यूनानी साम्राज्य से पहले के भी बने इस मंदिर में उस वक्त काफी पैसा खर्च हुआ था. मंदिर की नींव में 800 टन वजन वाले पत्थरों का भीू इस्तेमाल किया गया है.
स्थानीय पुस्तकों के मुताबिक, इन पत्थरों को ढोने और 50 फीट ऊंचे स्तंभों को खड़ा करने के लिए हाथियों का उपयोग किया गया था, जबकि पश्चिम एशिया में हाथी नहीं होते हैं. हाथी पाया जाने वाला लेबनान का सबसे नजदीकी देश भारत ही है.
Lebanon Hindu Temple in Danger: षोडशोपचार पूजा की आकृति भी है बनी
जग्गी वासुदेव के मुताबिक, बालबेक के म्यूजियम में एक सोलह कोणीय पत्थर भी रखा गया है, जिसे वहां गुरु पूजा पत्थऱ कहा जाता है. यह आध्यात्मिक प्रक्रिया षोडशोपचार कहलाती है. बालबेक मंदिर के अलावा दुनिया में और कहीं हजारों साल पुराना गुरु पूजा के लिए निर्मित खास केंद्र मौजूद नहीं है.
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