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Lord Shiva God or Guru: सीधे भगवान महादेव से ही गुरुदीक्षा का दावा, कितनी है सच्चाई

करोड़ों शिवभक्तों का यह अनोखा समुदाय है..देश-दुनिया में फैला है..पर इसका हर सदस्य रांची आकर माथा टेकने के लिए बेचैन है..जानिए क्यों….

By Mukesh Balyogi | August 26, 2024 8:28 AM
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जागऽ…… जागऽ……महादेव….. 

उद्घोष के साथ सैकड़ों हाथ समवेत स्वर में एकसाथ उठते हैं. सबके ललाट खुशी से चमक रहे हैं. व्यास पीठ पर बैठी बरखा दीदी कहती हैं-हमारे गुरु इंसान नहीं भगवान हैं. हम सब महादेव के शिष्य हैं. खुद भगवान शिव से हमने गुरु दीक्षा ली है. शिव की शिष्यता में हम जैसे-जैसे मजबूत होते जाएंगे, हमारे भाव पवित्र होंगे और हम दूसरों को भी इस पवित्रता का लाभ देते रहेंगे. 

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Lord Shiva God or Guru: तारीख-23 अगस्त, रांची में पुराना विधानसभा के 1 नंबर गेट के पास

सावन बीत जाने के बात भी यहां शिव भक्तों की कतार लगी है. एक-एक कर सबको स्मृति स्थल में प्रवेश दिया जा रहा है. कोई गया, कोई नवादा, कोई मुंगेर और कोई बेगूसराय से आया है. जो कतार में नहीं है, वह अपने साथ लाए चूड़ा-गुड़, सत्तू या पूड़ी-सब्जी खा रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव से आए कई लोग अपने साथ भूना चना और मिसरी की डली भी लेकर आए हैं. एक-दूसरे को प्रसाद की तरह बांट रहे हैं. आपस में कह भी रहे हैं कि हमलोगों के लिए तो यह तीर्थस्थल ही हैं. चर्चा का मजमून यह भी है कि हमलोग किसी इंसान के शिष्य थोड़े ही हैं.. हमलोगों ने सीधे भगवान शिव से गुरुदीक्षा ली है.

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Lord Shiva God or Guru: निधन के बाद पूर्व नौकरशाह की कुर्सी देखने को उमड़ती है भीड़

रांची के धुर्वा इलाके के एक शांत कोने में तीर्थयात्रियों की भीड़ हर दिन किसी मंदिर में पूजा के लिए नहीं उमड़ रही है. यहां तो लोग अपने साहेब का आसन देखने और उसके सामने सिर झुकाने के लिए आते हैं.यह वही साहेब हैं, जिसने सबसे पहले बताया कि भगवान शिव आज भी गुरु हैं और इंसान को आज भी दीक्षा देते हैं. देखते ही देखते शिव से शिष्य बनने का बिहार के मधेपुरा जिले से शुरू हुआ आध्यात्मिक आंदोलन बिहार के कोने-कोने में व्याप्त हो गया. फिर राज्य की सीमा पार कर उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल के अधिकतर गांव में शिवचर्चा के नाम से लोगों में छा गया. इन इलाकों से लोग जहां-जहां गए वहां शिवचर्चा को लेते गए और हर राज्य में वहां के स्थानीय लोगों को सीधे भगवान शिव का शिष्य बनने का तरीका बताया. देखते ही देखते तमिल, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम और उड़िया समेत देश की अधिकतर भाषाओं में शिव को गुरु मानने वालों की शिवचर्चा नाम से रविवारीय आध्यात्मिक बैठक शुरू हो चुकी है.

देश के साथ ही विदेश में भी फैले करोड़ों शिवशिष्यों का आध्यात्मिक समुदाय कोई औपचारिक संगठन नहीं है. कार्यालय, कार्यसमिति और कार्यकर्ता जैसी कोई सुगठित व्यवस्था भी नहीं है. अधिकतर शिव शिष्य केवल इतना जानते हैं कि साहेब ने पहली बार भगवान शिव से शिष्य बनने के लिए प्रेरित किय़ा और यह पूरी दुनिया में फैल गया. नए बन रहे शिव शिष्य तो अपने साहेब का असली नाम हरींद्रानंद भी नहीं जानते हैं. बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हरींद्रानंद झारखंड सरकार के संयुक्त सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए. चार सितंबर 2022 को उनके निधन के बाद रांची स्थित झारखंड की पुरानी विधानसभा के 1 नंबर गेट के पास स्थित उनके अंतिम समय के आवास को म्यूजियम का स्वरूप दिया गया है. शिव शिष्यों के लिए यह स्मृति स्थल है. वहां साहेब के आसन और उनके उपयोग किए सामानों के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से हर दिन सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा होती है. 

Lord Shiva God or Guru: चमत्कार को नमस्कार से काम नहीं चला, दर्शन की आधारशिला दी

हरींद्रानंद की आध्यात्मिक जीवनी अनमिल आखर में लेखिका अनुनीता कहती हैं कि 1986 में बेगूसराय के एक मजिस्ट्रेट क्वार्टर में ब्रह्मवेला में दिव्य शक्ति ने शिव को गुरु बनाने के लिए लोगों को प्रेरित करने का आदेश दिया, मजिस्ट्रेट के रूप में हरींद्रानंद के जगह-जगह तबादले होते रहे. इसके साथ ही वे लोगों के बीच शिव को गुरु बनाने के लिए चार वाक्यों का संकल्प-पत्र वितरित करते रहे. शिव शिष्यों के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन होने लगे. लोग हरींद्रानंद से अपने अनुभव साझा करने लगे. चर्चा भी फैलने लगी कि एक मजिस्ट्रेट तांत्रिक भी है. लोग अपनी समस्याओं के समाधान और शिव गुरु से दीक्षा पाने की लालसा में हरींद्रानंद के पास आने लगे. यह बात चारों ओर फैलने लगी. इसी बीच मधेपुरा में पदस्थापन के दौरान हरींद्रानंद को सुलगते सवालों का सामना भी करना पड़ा. 

Lord Shiva God or Guru: शिव भगवान हैं, गुरु बनाकर महिमा क्यों घटाएं

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लोगों ने हरींद्रानंद से कहना शुरू किया कि शिव भगवान हैं, उन्हें गुरु कहकर हम महिमा क्यों घटाएं? शिव कैलाश में हैं,  हम उनसे दीक्षा कैसे ले सकते हैं? शिव को आज भी गुरु साबित करने के लिए शास्त्र से प्रमाणित करने हेतु हरींद्रानंद ने पुस्तकालयों की खाक छाननी शुरू की. अपने विचारों को साबित करने के लिए आध्यात्मिक ग्रंथों से प्रमाण के सूत्र तलाशे और शिव आज भी गुरु हैं..इसके पक्ष में दार्शनिक अधिष्ठान(philosphical paradigm) तैयार किए.  आओ चलें शिव की ओर नामक पुस्तक लिखकर भारतीय धर्मग्रंथों से शिव के आज भी गुरु होने के प्रमाण दिए. 

Lord Shiva God or Guru: युवा टीशर्ट पर ‘शिव आज भी गुरु हैं’ लिखवाकर घूमने लगे

शिवचर्चा का क्रेज इतना बढ़ा कि बिहार के कई हिस्सों में युवा  ‘शिव आज भी गुरु हैं’ लिखा टीशर्ट पहनकर घूमने लगे. आपसी चर्चा से शिव चर्चा का प्रसार भी होने लगा. जगह-जगह दो दिनों के शिव गुरु महोत्सव होने लगे, इनमें लाखों लोगों की तादाद जुटने लगी. सभी शिव शिष्य एक-दूसरे को गुरु भाई कहते हैं. वरीय गुरु भाइयों की देख-रेख में शिवचर्चा की टोलियां बनने लगी. कई जगह मन्नत पूरा होने पर लोग शिवचर्चा का आयोजन करने लगे. बिना किसी कर्मकांड और अनुष्ठान के शिव भक्ति प्रवाह को शुरू नें कम पढ़े-लिखे लोगों और वंचित समुदाय ने सहज पाकर इसे दिल से स्वीकार किया और बिना किसी बिचौलिये के सीधे भगवान से जुड़ने की तरकीब लोग ग्रहण करने लगे. बाद में शिक्षितों की जमात भी इससे जुड़ने लगी. 

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Lord Shiva God or Guru: विवादों का साया, सिरकटा शिव को क्यों पूजवाते हैं

किसी भी सामाजिक या आध्यात्मिक आंदोलन के विस्तार पाने के साथ ही विवादों का साया भी जुड़ता है. ऐसा ही शिव शिष्य परिवार के साथ भी हुआ. पारंपरिक सनातनी मान्यताओं को मानने वाले समाज में शिव शिष्य आंदोलन के कुछ तरीके बेढब लगे. सवाल भी उठे. हिन्दू मान्यताओं पर आघात के आरोप भी लगे. पूछा भी गया..शिवचर्चा वाले सिरकटा शिव की पूजा क्यों करते हैं?

साहेब हरींद्रानंद की आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बरखा दीदी प्रभात खबर संवाददाता की ओर से जनमानस का यह सवाल उछालने पर पहले हंसती हैं. फिर कहती हैं कि शिवशिष्यों को इस बारे में कोई भ्रम नहीं है. मेरे सामने यह पहली बार आया है कि कुछ लोग उस आकृति को सिरकटा शिव कहते हैं. दरअसल वह भगवान शिव का दिव्य तेजोदीप्त मुखमंडल है. शिव के मुखमंडल से निकलने वाली दिव्य आभा इतनी विराट है कि भक्त शिव के मुखमंडल को स्पष्ट तौर पर नहीं देख पाता है. उच्च साधना के बाद ही यह दिव्य अनुभूति हो सकती है. साहेब हरींद्रानंद जी की धर्मपत्नी और शिवशिष्यता को पोषित करने वाली मां नीलम आनंद को यह दिव्यानुभूति हुई थी. अपने जीवन काल में उन्होंने इसकी चर्चा कुछ शिवशिष्यों के सामने की थी. इसी को आधार बनाकर कई लोगों ने इस अनुभूति का चित्र बनवाकर वितरित कराना शुरू कर दिया. परंतु शिवशिष्यों को इस चित्र का वितरण नहीं करने के लिए कहा गया है. क्योंकि, यह दिव्य क्षणों की व्यक्तिगत अनुभूति है. 

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Lord Shiva God or Guru: आंदोलन की परिधि का हो रहा विस्तार, कैसे जोड़ रहे केंद्र से 

शिवशिष्यों के समन्वय का तंत्र क्या है? भावना. बरखा दीदी तपाक से जवाब देती हैं. बताती हैं कि शुरू में साहेब सबको व्यक्तिगत नाम से जानते थे. फिर शुरूआती दिनों में साहेब के साथ रहे लोग संभालने लगे. फिर नए-नए लोग जुड़ते गए तो सक्रिय लोगों के साथ प्रत्यक्ष संवाद के माध्यम से कार्य होने लगा. अब तकनीक के विकास के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से लोगों को जोड़ने और संवाद स्थापित करने का काम किया जाता है. सक्रिय शिवशिष्यों का डाटाबेस भी है, पर ज्यादातर काम औपचारिक तरीके की जगह अनौपचारिक और व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से ही चलता है. व्यवस्था के संचालन के लिए साहब ने दो न्यास और एक संस्था बनायी थी, इन्हीं के जरिये कार्यक्रम और शिवचर्चा के विस्तार की योजना बनाई जाती है, साहेब ने मुख्य सलाहकार के रूप में अर्चित आनंद जी को रखा था, वे इस पूरी व्यवस्था को चलाने में सहयोग करते हैं.

Lord Shiva God or Guru: पर क्या सनातन परंपरा को है स्वीकार ?

शिव शिष्य आंदोलन तो विस्तार पा रहा है. पंरतु सनातन परंपरा को यह कितना स्वीकार है? जवाब में अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं कि हिंदू परंपरा में चार मुख्य संप्रदाय हैं-श्री संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय, कुमार संप्रदाय और रुद्र संप्रदाय. रुद्र संप्रदाय में भगवान शिव की आऱाधना और भक्ति के अलग-अलग आध्यात्मिक प्रवाह समय-समय पर विकसित होते रहे हैं. भगवान शिव ज्ञान और कला की पंरपराओं के आदि गुरु कहे जाते हैं. हिंदू शास्त्रों में अलौकिक गुरुओं से भी दीक्षा पाने के प्रमाण है. उसमें भी शिव तो सर्वव्यापी हैं. उनको गुरु मानकर तो दीक्षा ली ही जा सकती है. 

आचार्य जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं कि एकलव्य ने द्रोण की प्रतिमा को गुरु मानकर साधना की तो तीरंदाजी में प्रवीण हो गया. सिख पंथ के लोग ग्रंथ को गुरु स्वरूप मानकर साधना करते हैं. सनातन परंपरा में तो मंत्रों से मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठा कर देवत्व को स्थापित किया जाता है. फिर शिव तो सर्वत्र हैं. वे सबके शिव हैं. आदि गुरु हैं तो फिर दीक्षा क्यों नहीं दे सकते हैं.

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