परमात्मा से आत्मा के मिलन का जरिया है महाकुंभ, जानिए नागा साधु क्यों शाही स्नान में पहले लगाते हैं डुबकी

Maha Kumbh Mela : महाकुंभ में स्नान से पाप धुल जाते हैं, ये बात हर दूसरा आदमी कहता है. लेकिन जो व्यक्ति पाप करता है, उसे पाप धोने की जरूरत क्यों पड़ती है? वजह साफ है एक इंसान के अंदर आत्मा होती है, जो परमात्मा का अंश है. आत्मा, परमात्मा के बिना नहीं रह सकती है और परमात्मा से मिलन के लिए वह पाप धोकर मोक्ष पाने की इच्छा करता है.

By Rajneesh Anand | January 11, 2025 2:23 PM
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Maha Kumbh Mela : हिंदू धर्म के अनुसार आत्मा अजर-अमर है और वह परमात्मा का अनमोल अंश है. परमात्मा हर आत्मा को किसी ना किसी उद्देश्य से धरती पर मानव रूप में जन्म लेने को कहते हैं और उसके बाद मानव के कर्म उसे जीवन चक्र में उलझा देते हैं. जीवन चक्र में उलझा व्यक्ति मोक्ष की चाहत करता है, क्योंकि वह परमात्मा का अंश है और उसे अपनी पूर्णता यानी परमात्मा से मिलने के लिए जीवन चक्र से मुक्ति चाहिए होती है. जीवन चक्र से मुक्ति ही मोक्ष है. प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ मेले में स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता हिंदू धर्म में है, इसी वजह से महाकुंभ मेले का महत्व काफी बड़ा है.

मोक्ष की ओर लेकर जाने का सहज साधन है महाकुंभ मेले का स्नान

जीवन चक्र से मुक्ति, एक व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर मिलती है. मनुष्य रूप में अगर व्यक्ति अच्छे कर्म करेगा तो वह मोक्ष की ओर अग्रसर होगा, अन्यथा उसे मृत्यु के बाद फिर एक जन्म लेकर जीवन के कष्ट भोगने पड़ेंगे. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ मेले में स्नान से बड़ा पुण्य मिलता है और मनुष्य के बुरे कर्म धुल जाते हैं, यही वजह है कि मोक्ष की चाहत में तड़पती आत्मा कुंभ की ओर अग्रसर होती है. 

प्रयागराज में ऐसा क्या है कि धुल जाते हैं पाप

प्रयागराज में स्नान

प्रयागराज यानी उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी. इस नगरी का जिक्र हमें पौराणिक कथाओं में भी मिल जाता है. प्रयागराज में तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, जिसे त्रिवेणी कहा जाता है. तीन नदियों के संगम को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्रमंथन के दौरान जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ा तो भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप लेकर असुरों को अमृत से वंचित किया, लेकिन जब असुरों को सच्चाई पता चल गई तो भयंकर युद्ध शुरू हो गया, तब भगवान विष्णु ने इंद्र देव के बेटे जयंत को अमृत कलश दे दिया और वह कौवे का रूप लेकर अमृत कलश लेकर उड़ गए. जब वे अमृत कलश लेकर उड़ रहे थे तो कलश से अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गई, इसी वजह से यहां की नदियों में स्नान से पाप धुल जाते हैं. इन चार स्थानों में मेला कब लगेगा इसका निर्धारण  सूर्य की स्थिति और उस समय बृहस्पति जिस राशि में रहता है उस आधार पर किया जाता है. प्रयागराज में हर 12 साल में महाकुंभ और हर 144 साल में पूर्णकुंभ लगता है. साल 2025 का महाकुंभ पूर्णकुंभ भी है.

महाकुंभ में क्या है शाही स्नान

महाकुंभ में शाही स्नान उस दिन आयोजित किए जाते हैं, जो दिन हिंदू धर्म के अनुसार काफी पवित्र माना जाता है. उस दिन महाकुंभ में शाही स्नान होता है. शाही स्नान का अर्थ होता है, नदी में पहले डुबकी वो लोग लगाएंगे जो संत हैं और सांसारिक मोहमाया से ऊपर हैं. शाही स्नान का समय ज्योतिषीय गणना के अनुसार तय किया जाता है. हर साधु समाज और अखाड़े के लिए उनके महत्व के आधार पर स्नान का समय निर्धारित है. नागा साधु जो हिमालय से आते हैं वे सबसे पहले स्नान करते हैं. उस वक्त मंत्रोच्चारण होता है, शंख ध्वनि बजती है और धूप-दीप से वातावरण आध्यात्मिक और भक्तिमय हो जाते हैं, मानों आत्मा का परमात्मा से मिलन यहीं हो रहा हो. इस वर्ष शाही स्नान की तिथि इस प्रकार है-

  • पौष पूर्णिमा 13 जनवरी(महाकुंभ प्रारंभ,पहला शाही स्नान)
  • मकर संक्रांति 14 जनवरी( दूसरा शाही स्नान)
  • मौनी अमावस्या 29 जनवरी (तीसरा शाही स्नान)
  • वसंत पंचमी तीन फरवरी (चौथा शाही स्नान)
  • माघी पूर्णिमा 12 फरवरी(पांचवां शाही स्नान)
  • महाशिवरात्रि 26 फरवरी (छठा शाही स्नान, महाकुंभ का समापन)

पवित्र पुरुष हैं नागा साधु, जिन्हें महाकुंभ में सर्वप्रथम डुबकी लगाने का है अधिकार

महा कुंभ मेले में नागा साधु

नागा साधु हिमालय और जंगलों में रहते हैं. वे सांसारिक मोहमाया को त्याग चुके होते हैं. उनके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं होता है और महादेव शंकर के ये भक्त अपने शरीर पर सिर्फ राख लगाए रहते हैं, कोई वस्त्र इनके शरीर पर नहीं होता, लेकिन मौसम का कोई असर भी इनपर होता नहीं दिखता है. लंबे बाल और जटाओं के साथ ये सबसे पहले हर-हर गंगे के जयघोष के साथ नदी में डुबकी लगाते हैं. उसके बाद अन्य साधुओं को डुबकी लगाने का मौका मिलता है, उसके बाद आम आदमी मोक्ष के लिए स्नान करता है.

महाकुंभ का विदेश तक है आकर्षण

महाकुंभ के दौरान कल्पवास किया जाता है. कल्पवास माघ माह के दौरान संगम के किनारे रहने और तप करने को कहा जाता है. कल्पवास के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं. इस बार एपल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी कल्पवास के लिए संगम के किनारे दो सप्ताह तक रहेंगी. वे निरंजनी अखाड़े के शिविर में रहेंगी. कल्पवास न्यूनतम एक दिन का होता है, जब श्रद्धालु को एक रात वहां रहकर तप करना पड़ता है. कल्पवास के दौरान वहां रहने वाले व्यक्ति को तीन बार स्नान करना होता है और कई नियमों का पालन करना पड़ता है, जिसमें अहिंसा, दयालुता,ब्रह्मचर्य, सच बोलना और पूजा पाठ जैसे नियम शामिल हैं. महाकुंभ के प्रति विदेशियों का आकर्षण काफी पुराना है और वे हजारों की संख्या में यहां आते हैं, कुछ कल्पवास में भी रहते हैं.

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सांस्कृतिक आयोजन

प्रयागराज में गंगा आरती

महाकुंभ के दौरान सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं, जिसमें सर्वप्रमुख है गंगा आरती. महाकुंभ के दौरान प्रतिदिन शाम को आध्यात्मिक वातावरण में गंगा आरती होती है. साथ ही नदी किनारे, रामायण और महाभारत का वाचन पंडित करते हैं. भारत के विभिन्न प्रदेशों के नृत्य –संगीत का आयोजन होता है और हाट–बाजार जो लगते हैं, उसमें भारतीय सभ्यता संस्कृति की अनूठी झलक मिलती है. 

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FAQ : महाकुंभ में कितने शाही स्नान होते हैं?

महाकुंभ में कुल छह शाही स्नान होते हैं. जो इस प्रकार हैं-
पौष पूर्णिमा 13 जनवरी(महाकुंभ प्रारंभ,पहला शाही स्नान)
मकर संक्रांति 14 जनवरी( दूसरा शाही स्नान)
मौनी अमावस्या 29 जनवरी (तीसरा शाही स्नान)
वसंत पंचमी तीन फरवरी (चौथा शाही स्नान)
माघी पूर्णिमा 12 फरवरी(पांचवां शाही स्नान)
महाशिवरात्रि 26 फरवरी (छठा शाही स्नान, महाकुंभ का समापन)

महाकुंभ और पूर्णकुंभ में क्या अंतर है?

महाकुंभ का आयोजन 12 वर्ष में और पूर्णकुंभ का आयोजन 144 वर्ष में होता है.

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