National News : मेक इन इंडिया के 10 वर्ष, देश को विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रणी बनाने का लक्ष्य

भारत को विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लक्ष्य के साथ मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत हुई थी. इस वर्ष सितंबर में इसने दस वर्ष पूरे कर लिये.

By Aarti Srivastava | October 1, 2024 5:58 PM
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National News : भारत को विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रणी बनाने और दूसरे क्षेत्रों में उद्यमशीलता बढ़ाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ पहल तब शुरू की गयी थी, जब भारत की आर्थिक वृद्धि में तेज गिरावट दर्ज हुई थी. ऐसी चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों में भारत को डिजाइन और विनिर्माण के वैश्विक केंद्र में बदलने के उद्देश्य से इस अभियान को शुरू किया गया था. इस अभियान का उद्देश्य निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना, आधुनिक और कुशल बुनियादी संरचना तैयार करना, विदेशी निवेश के लिए नये क्षेत्रों को खोलना, सरकार एवं उद्योग के बीच साझेदारी का निर्माण करना, नवाचार को प्रोत्साहित करना और विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का विकास करना था. आज यह अभियान गति पकड़ चुका है और भारत को आत्मनिर्भर बनाने की राह पर चल पड़ा है.

इन क्षेत्रों के साथ आगे बढ़ रहा अभियान

वर्ष 2014 में जब मेक इन इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, तब इसके तहत 25 क्षेत्रों की पहचान की गयी थी. भारत की मंशा इन क्षेत्रों में विनिर्माण का केंद्र बन देश की अर्थव्यवस्था को गति देने और रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ ही दुनिया को भारत के औद्योगिक कौशल से परिचय कराना था, ताकि निवेश को आकर्षित किया जा सके. अब 27 क्षेत्रों के साथ मेक इन इंडिया 2.0 महत्वपूर्ण उपलब्धियों और नये जोश के साथ आगे बढ़ रहा है, जिससे वैश्विक विनिर्माण परिदृश्य में भारत की स्थिति मजबूत हो रही है. ये 27 क्षेत्र दो प्रमुख सेक्टर- उत्पादन क्षेत्र (मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर) और सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) में बंटे हुए हैं.

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर : इस सेक्टर के तहत 15 क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिनमें एयरोस्पेस व डिफेंस, ऑटोमोटिव व ऑटो कंपोनेंट, फार्मास्युटिकल व चिकित्सा उपकरण, बायोटेक्नोलॉजी, पूंजीगत माल, कपड़ा व परिधान, रसायन व पेट्रो रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन व मैन्युफैक्चरिंग (ईएसडीएम), चमड़े व जूते-चप्पल, खाद्य प्रसंस्करण, रत्न एवं आभूषण, जहाजरानी, रेलवे, निर्माण, नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा शामिल है.

सर्विस सेक्टर : इस क्षेत्र के अंतर्गत 12 सर्विसेस को सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवा (आइटी और आइटीईएस), पर्यटन व आतिथ्य सेवा, मेडिकल वैल्यू ट्रैवल, परिवहन एवं रसद सेवा, लेखांकन व वित्त सेवा, श्रव्य-दृश्य सेवा, कानूनी सेवा, संचार सेवा, निर्माण और संबंधित इंजीनियरिंग सेवा, पर्यावरण सेवा, वित्तीय सेवा और शिक्षा सेवा शामिल है.

इन स्तंभों पर खड़ा है मेक इन इंडिया पहल

देश में विनिर्माण व उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गयी ‘मेक इन इंडिया’ पहल की आधारशीला निम्न चार स्तंभ रहे हैं.

  1. उद्यमशीलता को बढ़ावा देना : ‘मेक इन इंडिया’ उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक के रूप में ‘कारोबार करने की सुगमता (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस)’ की पहचान की गयी है. कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने के लिए कई उपाय लागू किये गये हैं, जिसका उद्देश्य स्टार्टअप और स्थापित उद्यमों के लिए अधिक अनुकूल माहौल बनाना है.
  2. नये बुनियादी ढांचे पर ध्यान : उद्योगों के विकास के लिए आधुनिक और सुविधाजनक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता बेहद जरूरी है. इसे समझते हुए सरकार ने औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट शहरों को विकसित करने, विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और उच्च गति संचार (हाई स्पीड कम्युनिकेशन) को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित किया. इसके साथ ही, सुव्यवस्थित पंजीकरण प्रणालियों और बेहतर बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर) बुनियादी ढांचे के साथ नवाचार और अनुसंधान में सहायता दी गयी. संबंधित उद्योग को किन कौशलों की आवश्यता है, उसकी पहचान करने और उसके बाद कार्यबल विकसित करने के प्रयास भी किये गये हैं.
  3. एफडीआई के लिए खुले नये क्षेत्र : रक्षा उत्पादन, बीमा, चिकित्सा उपकरण, निर्माण और रेलवे के बुनियादी ढांचे सहित विभिन्न क्षेत्रों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के लिए उल्लेखनीय रूप से खोला गया. इसके साथ ही बीमा और चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में एफडीआइ नियमों को आसान बनाया गया और अंतरराष्ट्रीय निवेश एवं विकास को प्रोत्साहित किया गया.
  4. नयी सोच के साथ आगे बढ़ना : उद्योग सरकार को एक नियामक के रूप में देखने के आदी रहे हैं. ‘मेक इन इंडिया’ का उद्देश्य उद्योगों के साथ सरकार के संवाद में आमूलचूल परिवर्तन लाकर इस सोच को बदलना है. इसी सोच के साथ सरकार ने देश के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए उद्योग संग साझेदारी करते हुए एक नियामक के बजाय एक सुविधाप्रदाता की भूमिका निभायी. इस बदलाव का उद्देश्य एक सहयोगी वातावरण को बढ़ावा देना है जो औद्योगिक विकास और नवाचार का समर्थन करता है.
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