National News : एक देश एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को भले ही 32 राजनीतिक दलों ने समर्थन दिया है और केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है, इसके बावजूद इस व्यवस्था को अपनाने की राह आसान नहीं है. देश में सभी चुनावों को एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन के साथ-साथ सरकार को कई अन्य चुनौतियों से भी जूझना होगा.
संविधान में इन संशोधनों की आवश्यकता होगी
यदि देश में सभी स्तरों के चुनाव एक साथ होते हैं, तो इसके लिए संविधान में कम से कम पांच अनुच्छेदों में संशोधन करने की जरूरत होगी, तभी जाकर सभी चुनाव का एक साथ सुचारु रूप से कार्यान्वयन संपन्न हो पायेगा.
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 141 व 152, धारा 147 से 151 ए : धारा 141 व 152 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए आम चुनाव की अधिसूचना से संबंधित है. वहीं धारा 147 से 151 ए, लोकसभा व विधानसभाओं के उप चुनावों से संबंधित हैं.
- अनुच्छेद 83 (2) और अनुच्छेद 172 (1) : अनुच्छेद 83 (2) और 172 (1) क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की अधिकतम अवधि निर्धारित करते हैं.
- केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रावधान : दिल्ली विधानसभा के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के अधिनियम, 1991 की धारा 5 (विधानसभा की अवधि) और पुद्दुचेरी की विधानसभा के लिए केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963 की धारा 5 (विधानसभा की अवधि). साथ ही, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 17 (विधानसभा की अवधि).
- अनुच्छेद 356, अनुच्छेद 85 और 174 : अनुच्छेद 356 केंद्र को निर्वाचित राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति देता है. वहीं अनुच्छेद 85 आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति को लोकसभा और 174 राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की अनुमति देता है.
- अनुच्छेद 325 : एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन की आवश्यकता होगी.
- अनुच्छेद 324 ए : नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए अनुच्छेद 324 ए को शामिल करने के लिए एक संविधान संशोधन विधेयक (अनुच्छेद 83 और अनुच्छेद 172 में संशोधन से अलग) पेश करना होगा. इस नये अनुच्छेद 324 ए के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के आम चुनावों के साथ-साथ पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनाव भी हो सकेंगे.
देश को इन चुनौतियों से होना होगा दो-चार
- देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए केंद्र सरकार को मूल रूप से दो महत्वपूर्ण विधेयकों- एक लोकसभा व विधानसभा चुनावों से संबंधित और दूसरा नगरपालिका व पंचायत चुनावों से संबंधित- को संसद द्वारा पारित करवाना होगा. परंतु संविधान में किसी भी संशोधन को मंजूरी देने के लिए सत्ता पक्ष के पास कम से कम दो-तिहाई बहुमत होना चाहिए. परंतु सत्ता पक्ष के पास साधारण बहुमत है. ऐसे में उसे दोनों विधेयकों को पारित कराने के लिए विपक्ष के सहयोग की आवश्यकता होगी.
- हमारे देश में लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, ऐसे में इन्हें समय पूर्व भंग करने पर सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह लोकसभा या किसी विधानसभा के भंग होने पर एक देश एक चुनाव का क्रम कैसे बरकरार रखेगी.
- इस कार्य के लिए अतिरिक्त ईवीएम/ वीवीपैट की आवश्यकता होगी, क्योंकि देश में इसकी संख्या सीमित है. यदि पूरे देश में वीवीपैट सिस्टम प्रयोग किया जाता है तो एक साथ चुनाव कराने के लिए दोगुने वीवीपैट की आवश्यकता होगी. इतना ही नहीं एक साथ चुनाव कराने पर हर 15 वर्ष में ईवीएम को बदलना भी पड़ेगा. जाहिर है ऐसे में ईवीएम की लागत भी बढ़ेगी. जनवरी में चुनाव आयोग ने अनुमान लगाया था कि एक देश एक चुनाव के लिए हर 15 वर्ष में 10,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.
- एक साथ चुनाव कराने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा और अधिक वाहनों की आवश्यकता भी पड़ेगी. साथ ही अतिरिक्त मतदान कर्मियों की भी जरूरत होगी, जिससे राज्यों पर दबाव पड़ेगा.
- इतना ही नहीं, ईवीएम को रखने के लिए भंडार गृह की जरूरत भी दोगुनी हो जायेगी, जो समस्या का कारण बन सकती है.
- एक साथ चुनाव कराने के लिए पर्याप्त धन की भी आवश्यकता होगी.
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