Oath Controversy: साल 2011. तारीख चार सितंबर. छोटानागपुर के पठार की गोद में बसी रांची की वह भींगी दोपहर थी. राजभवन के बिरसा मंडप में राज्यपाल का शपथ-ग्रहण समारोह चल रहा था. आसमान में घने काले बादल और अंधेरे की चादर चारों ओर से बिरसा मंंडप को धीरे-धीरे अपने आगोश में ले रही थी. ये घने छाये बादल बरसे तो नहीं, पर घंटे भर के अंदर बिजलियां जरूर गिरा गए.
जल्दी ही अंधेरे के झुरमुट से सियासत की चिनगारी फूटने लगी. जश्न की बहारों से बाहर आते राजभवन को दावानल में घिरता सा महसूस होने लगा. आरोपों की बौछार के बीच यह आवाज गूंजने लगी की झारखंड के नए गवर्नर डॉ. सैयद अहमद का शपथ-ग्रहण असंवैधानिक है. उन्हें दोबारा शपथ लेनी पड़ेगी.
डॉ. सैयद अहमद के जीवन के इस खुशगवार पल में शऱीक होने के लिए उनके साथ मुंबई के नागपाड़ा से दर्जनों की संख्या में आए परिजनों और रिश्तेदारों की नींद भी उड़ गई. सियासत की देहरी लांघ कर चौक-चौराहों पर भी यह चर्चा आम हो गई कि सैयद अहमद ने ये क्या कर दिया- उन्होंने तो पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक झारखंड के राज्यपाल पद की शपथ ले ली.
सैयद अहमद पर क्या लगे थे आरोप?
बाद में झारखंड के मुख्यमंत्री बने और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास सबसे पहले इस संग्रााम में कूदे. फिर पूरी भारतीय जनता पार्टी कूद पड़ी. आरोप लगाया गया कि नए राज्यपाल डॉ. सैयद अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 159 में राज्यपाल के शपथ-ग्रहण के तरीके का उल्लंघन किया है. इसलिए उन्हें राज्यपाल का पदभार-ग्रहण करने के लिए फिर से शपथ लेना होगा.
Oath Controversy:क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 159 का उल्लंघन हुआ था?
डॉ. सैयद अहमद ने झारखंड के आठवें राज्यपाल के रूप में शपथ-ग्रहण करते हुए ‘अल्लाह के नाम पर’ पद और गोपनीयता की शपथ ले ली थी. भाजपा नेताओं का कहना था कि राज्यपाल के शपथ-ग्रहण की प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 159 में दी गई है. इसके तहत अंग्रेजी में गॉड के नाम पर और हिंदी में ईश्वर के नाम पर शपथ लेने की व्यवस्था है. अगर व्यक्ति नास्तिक है और हिंदी में शपथ ले रहा है तो उसे सत्य़निष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं… यह कहना होता है.
संविधान के अनुच्छेद 159 में दिए प्रारूप के शब्द राज्यपाल के पद का शपथ लेने वाले व्यक्ति को हूबहू बोलने होते हैं. भाजपा का आरोप था कि डॉ. सैयद अहमद ने ईश्वर की जगह अल्लाह बोलकर संविधान का उल्लंघन कर दिया है. भाजपा नेताओं का जोर था कि सैयद अहमद को राज्यपाल बने रहने के लिए संविधान में दिए प्रारूप के मुताबिक फिर से शपथ लेने के अलावा और कोई चारा नहीं है. आरोप लगाने वालों का जोर विशेष तौर पर इस बात पर था कि डॉ. सैयद अहमद ने हिंदी में राज्यपाल पद की शपथ ली और इसके लिए संविधान के हिंदी प्रारूप में वर्णित ईश्वर की जगह अल्लाह शब्द का प्रयोग किया.
सैयद अहमद विवाद के पहलू को ऐसे समझिए
पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक शपथ के दावे क्यों
डॉ. सैयद अहमद के शपथ-ग्रहण के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले कमल नयन प्रभाकर नामक विद्यार्थी के वकील रहे विनोद सिंह कहते हैं कि संविधान के हिंदी प्रारूप में लिखा है- ईश्वर की शपथ लेता हूं कि … इसके बजाय डॉ. सैयद अहमद ने बोला- अल्लाह के नाम पर शपथ लेता हूं कि… डॉ. सैयद अहमद ने तीन शब्द “के नाम पर” अपने मन से जोड़ दिए. यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 159 में राज्यपाल के शपथ-ग्रहण का प्रारूप का नहीं है. यह पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 102 में प्रॉविंशियल गवर्नर के शपथ-ग्रहण के प्रारूप में शामिल है.
सियासत से अदालत पहुंची संविधान की लड़ाई
संविधान के नाम पर चल रही यह लड़ाई जल्दी ही सियासत के चौखटे पार कर अदालत की दहलीज पर पहुंच गई. कमल नयन प्रभाकर नामक व्यक्ति ने झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर डॉ. सैयद अहमद के राज्यपाल के रूप में शपथ-ग्रहण को अवैध करार देने की मांग की.
न्याय के मंदिर में दोषी नहीं पाए गए सैयद अहमद
डॉ. सैयद अहमद के शपथ-ग्रहण पर सियासी धमाल खूब मचा. तर्कों के तरकश से चुनींदा तीर निकालकर खूब बरसाए गए. पर शपथ-ग्रहण के खिलाफ तैयार आरोपों के पुलिंदे में बांचे गए कथित सांच की आंच से सैयद अहमद के जलने या झुलसने की आशंका न्याय के मंदिर में काठ के हथौड़े से मुनादी के साथ ही निर्मूल साबित हो गई. न्यायमूर्ति पीसी टांटिया और पीपी भट्ट की खंडपीठ ने सैयद अहमद को दोषी करार देने से इनकार कर दिया.
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इसके साथ ही इस पीआईएल को एसएफएल यानी शेमफूल पिटीशन करार दिया. साथ ही कहा कि एक ऐसा बच्चा जिसने अभी ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी पूरी नहीं की है, उसने इस तरह का पीआईएल दायर कर संविधान की आत्मा को दूषित करने की कोशिश की है. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट गए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को ही बरकरार रखा.
क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ
कौन थे सैयद अहमद
डॉ. सैयद अहमद 4 सितंबर 2011 से 17 मई 2015 तक तीन साल 255 दिन झारखंड के राज्यपाल रहे. 16 मई 2015 से 27 सितंबर 2015 तक मणिपुर के भी राज्यपाल रहे. इससे पहले 1980, 1985, 1990, 1999 और 2004 में मुंबई की नागपाड़ा सीट से पांच बार विधायक रहे. उन्होंने ‘पगडंडी से शाहराह तक’ नाम से अपनी आत्मकथा लिखा. 27 सितंबर 2015 को मुंबई के लीलावती अस्पताल में कैंसर की बीमारी के कारण इनका निधन हो गया.