20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भारत के लिए नया नहीं है वन नेशन, वन इलेक्शन, आजादी के बाद दो चुनाव इसी तर्ज पर हुए

One Nation One Election : केंद्रीय कैबिनेट ने वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. रामनाथ कोविंद समिति ने चुनावी खर्च को कम करने और कल्याणकारी योजनाओं को अच्छी तरह से लागू करने के लिए इसे बेहतर विकल्प बताया है. विपक्ष इस प्रस्ताव का विरोध कर रहा है और इसे संघात्मक व्यवस्था के लिए खतरा बता रहा है. लेकिन भारत में वन नेशन, वन इलेक्शन का काॅन्सेप्ट नया नहीं है, आजादी के बाद इसी तर्ज पर चुनाव हुए थे. अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी इसकी हिमायत करते रहे हैं, पढ़ें कोविंद समिति द्वारा पेश किए गए रिपोर्ट की बड़ी बातें.

One Nation One Election :  नरेंद्र मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने के साथ ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी. इस रिपोर्ट को कैबिनेट ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी है, यह विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा. इस समिति ने राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की है और उसके सौ दिन बाद निकाय चुनाव कराने की बात रिपोर्ट में है.

रिपोर्ट में क्या है खास?

कोविंद समिति की रिपोर्ट में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराए जाने की सिफारिश की गई है. इसके साथ ही समिति ने कुछ अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशें भी की हैं जो इस प्रकार हैं-

  • केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराए जाएं
  • लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिन बाद ही निकाय चुनाव कराए जाएं
  • समिति ने एक साथ चुनाव कराने के लिए साझा वोटर लिस्ट और वोटर आई बनाने की सिफारिश की है.
  • कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश भी की है, जिसमें से अधिकांश संशोधनों में राज्यों की मंजूरी जरूरी नहीं होगी.
  • संविधान संशोधन के लिए बिल को संसद के दोनों सदनों से पारित कराना होगा. 
  • रिपोर्ट में वोटर लिस्ट और वोटर आईडी के बारे में जो सुझाव दिए गए हैं उन्हें लागू करवाने के लिए देश के आधे राज्यों की मंजूरी जरूरी होगी. 
  • रिपोर्ट में त्रिशंकु सदन की स्थिति में यूनाइडेट सरकार बनाने और 2029 में वन नेशन इलेक्शन के लिए विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाने जैसी सिफारिशें भी की गई हैं

वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में क्या हैं तर्क

Copy Of Add A Heading 41 2
भारत के लिए नया नहीं है वन नेशन, वन इलेक्शन, आजादी के बाद दो चुनाव इसी तर्ज पर हुए 2

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्षधर रहे हैं. इससे पहले भी बीजेपी सरकार ने इसके पक्ष में अपनी राय रखी है. 2003 में अटल बिहारी वाजेपी की सरकार के वक्त भी इसपर चर्चा हुई थी और वे इसे लागू करवाना चाहते थे. बाद में 2010 में बीजेपी की शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने भी इस मुद्दे को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भेंट की थी और उनसे चर्चा की थी. वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में तर्क हैं-

  • देश में एक साथ चुनाव होने से खर्च कम होगा, अन्यथा हमेशा देश में चुनाव होते रहते हैं और हर बार चुनाव पर खर्च करना पड़ता है. राजनीतिक दलों को भी कम खर्च करना पड़ेगा
  • देश में कई बार चुनाव होने से अनिश्चितता की स्थिति बनती है और व्यापार एवं निवेश प्रभावित होता है.
  • बार-बार चुनाव होने से सरकारी मशीनरी प्रभावित होती है, जिससे नागरिकों को असुविधा होती है.
  • सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनाव ड्‌यूटी देने से उनपर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है.
  • आचार संहिता लागू होने से कई बार कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में देरी होती है, जिसकी वजह से विकास कार्यों पर असर पड़ता है.
  • बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं का उत्साह कम हो जाता है और वे वोटिंग में रुचि नहीं लेते हैं.

भारत के लिए नया नहीं है वन नेशन, वन इलेक्शन

1947 में जब देश आजाद हुआ और पहली बार चुनाव हुआ तो वह चुनाव वह नेशन, वन इलेक्शन की तर्ज पर ही हुआ था. 1957 में भी देश में वन नेशन, वन इलेक्शन ही हुआ था.  पहली बार केरल में अलग चुनाव तब हुए थे जब 1959 में ईएमएस नंबूदरीपाद की सरकार को पंडित नेहरू ने आर्टिकल 356 लगाकर गिरा दिया था. उसके बाद केरल में फरवरी 1960 में चुनाव हुए और विधानसभा का कार्यकाल अलग हो गया, जिसकी वजह से चुनाव भी अलग होने लगे. इसी तरह अन्य राज्यों में भी विधानसभाओं का कार्यकाल बदल गया और चुनाव भी अलग-अलग समय में होने लगे.

Also Read : पेजर ब्लास्ट से पस्त हुए हिजबुल्लाह के लड़ाके, विस्फोट में क्या है इजरायल की भूमिका?

विपक्ष कर रहा है विरोध

नरेंद्र मोदी सरकार के वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव का विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही हैं. कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है कि यह महज शिगूफा है, जिसका उद्देश्य मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना है. सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है कि सरकार यह बताए कि वह कैसे राज्यों और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराएगी, क्या वह उन राज्यों में विधानसभा को भंग करेगी, जहां उनकी पार्टी की सरकार है. 

झामुमो का कहना है कि वन नेशन, वन इलेक्शन संभव नहीं है. सरकार संविधान पर चोट पहुंचाने की कोशिश कर रही है. वह संघात्मक व्यवस्था को तोड़ना चाहती है. इस विचार को लागू करना संभव नहीं है. बीजेपी के लोग मनुवादी सोच के हैं, इसलिए वे इस तरह की राय रख रहे हैं.

एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करने वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध किया है. उनका कहना है कि मैंने हमेशा ही सोच का विरोध किया है, क्योंकि यह विचार समस्या की तलाश में एक समाधान है. यह देश के संघवाद को नष्ट करने वाला है और लोकतंत्र और संविधान की मूल संरचना  को नष्ट करने वाला है. 

Also Read : Property Rights of Second wife : क्या आप दूसरी पत्नी हैं? जानिए क्या हैं हक और अधिकार

FAQ : भारत में कितनी बार पूरे देश में एक साथ चुनाव हुए?

भारत में दो बार 1952 और 1957 में एक साथ पूरे देश में चुनाव हुए.

वन नेशन, वन इलेक्शन पर किस समिति ने रिपोर्ट सौंपी है?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने वन नेशन, वन इलेक्शन पर अपनी रिपोर्ट मार्च 2024 में सौंपी है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें