Rahul Gandhi : 18वीं लोकसभा के पहले सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जब चर्चा हुए तो प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने काफी आक्रामक भाषण दिया और उन्होंने पीएम मोदी और बीजेपी सरकार को निशाने पर लिया. उन्होंने हिंदू और हिंदुत्व के मसले पर भी सरकार को खूब लताड़ा और हिंदुओं को हिंसक बता दिया. चर्चा का जवाब देने के लिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में उठे तो उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिए बिना उन्हें बालक बुद्धि बताया और कहा कि बालकबुद्धि को इग्नोर नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे दुष्प्रचार भी करते हैं.
राहुल गांधी राजनीति के लिए अप्रासंगिक : दीपक प्रकाश
बीजेपी के राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश का कहना है कि राहुल गांधी भारतीय राजनीति के लिए अप्रासंगिक हैं. प्रधानमंत्री ने अगर उन्हें बालकबुद्धि बताया है, तो उन्होंने काफी सोच-समझकर उन्हें यह उपमा दी है. वे इतनी बार सांसद चुने जा चुके हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते हैं कि संसद में किस तरह का आचरण दिखाना चाहिए. क्या गलत है क्या सही है. उनके व्यवहार में परिपक्वता नजर नहीं आती है.
राहुल गांधी सबसे योग्य नेता : डाॅ अजय कुमार
कांग्रेस के नेता और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे डाॅ अजय कुमार ने कहा कि राहुल गांधी भारतीय राजनीति के सबसे योग्य नेता और वक्ता हैं. उन पर बेबुनियाद आरोप लगाना गलत है. संसद में जिस तरह प्रधानमंत्री ने उनके बारे में टिप्पणी की, वह कहीं से भी उचित नहीं है. राहुल गांधी ने बेहतरीन भाषण दिया था और देश के सभी प्रमुख मुद्दों पर सरकार को घेरा था, प्रधानमंत्री ने उन पर जिस तरह टिप्पणी की है, उन्हें गौर करना चाहिए कि क्या एक प्रधानमंत्री को यह शोभा देता है. राहुल गांधी आज जिस मुकाम पर हैं, उसमें उनकी अपनी मेहनत है, बीजेपी ने तो खूब दुष्प्रचार किया.
राहुल गांधी का कद देश की राजनीति और कांग्रेस पार्टी में बढ़ा
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई का कहना है कि राहुल गांधी का कद देश की राजनीति और कांग्रेस पार्टी दोनों में काफी बढ़ा है. इसके लिए राहुल गांधी ने काफी मेहनत भी की है. उन्हें काफी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, बावजूद इसके वे आज नेता प्रतिपक्ष के पद तक पहुंचे हैं, तो बेशक उन्होंने काफी मेहनत की और एक मुकाम हासिल किया है. कांग्रेस पार्टी का जो इतिहास रहा है उसमें नेतृत्व हमेशा से गांधी-नेहरू परिवार के हाथों में ही रहा और उसपर कभी सवाल भी नहीं उठाए गए. जब पंडित नेहरू थे तो कमान उनके हाथों में थी, जब इंदिरा गांधी थीं, तो कमोबेश यही स्थिति थी, हालांकि उन्हें थोड़ा संघर्ष करना पड़ा था. संजय गांधी को तो खैर समय ही नहीं मिला. राजीव गांधी के साथ भी यही स्थिति थी, उनके नेतृत्व में किसी को अविश्वास नहीं था, भले ही उनका राजनीतिक जीवन ज्यादा लंबा नहीं रहा. सोनिया गांधी ने भी जब कमान संभाली तो उनके खिलाफ कोई खड़ा नहीं हुआ. लेकिन जब राहुल गांधी आए तो परिस्थितियां काफी विकट थीं.
रशीद किदवई ने कहा कि राहुल गांधी जब राजनीति में आए, तो बीजेपी उन्हें गंभीरता से नहीं लेती थी. कांग्रेस पार्टी में भी उनकी स्वीकार्यता थोड़ी कम थी. कांग्रेस पार्टी के एक ही नेता ने मुझसे यह कहा था कि हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसका दामाद और नेता उससे अच्छा हो. राहुल गांधी जब कमान संभालने आए तो उनके प्रति अविश्वास कांग्रेस पार्टी में भी था. जी-23 के नेताओं ने अपना असंतोष जताया भी था. 12 मुख्यमंत्रियों ने पार्टी छोड़ दी. कांग्रेस पार्टी की स्थिति बहुत विकट थी. इन परिस्थितियों से निकलकर राहुल गांधी जिस तरह नेता प्रतिपक्ष के पद तक पहुंचे हैं, वो निश्चित तौर पर उनकी मेहनत को दर्शाता है.
राहुल ने अपनी विचारधारा से राजनीति की शुरुआत नहीं की
किदवई ने कहा कि राहुल गांधी की एक बड़ी समस्या यह भी थी कि जब वे राजनीति करने आए, तो वे अपनी सोच और विचारधारा के साथ राजनीति नहीं कर पाए. उनके सामने उनकी दादी, चाचा और माता-पिता के उदाहरण मौजूद थे. उन्हें यह समझ नहीं आया कि वे किस तरह राजनीति करें. लोगों की अपेक्षाएं कभी उनमें दादी, तो कभी पिता और कभी मां का स्वरूप देखती थी. इसकी वजह से राहुल गांधी को काफी परेशानी हुई.
राहुल गांधी के भाषणों में गंभीरता नहीं : उमेश चतुर्वेदी
राजनीतिक विश्लेषक उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के पद पर है, लेकिन उनके भाषणों में उनके पद की मर्यादा नजर नहीं आती है. नेता प्रतिपक्ष का पद कितना महत्वपूर्ण है इसको इस बात सेे समझा जा सकता है कि उनके पूरे भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में मौजूद रहे. लेकिन राहुल गांधी ने अपने पूरे भाषण के दौरान जिस तरह की शब्दावली का प्रयोग किया, वह उनके बालकबुद्धि का ही परिचायक है. प्रधानमंत्री ने बालकबुद्धि शब्द का प्रयोग किया, लेकिन उन्होंने किसी का नाम लेकर यह टिप्पणी नहीं की, जो सदन में उनके मर्यादित आचरण का सूचक है.
सत्तापक्ष और विपक्ष के संबंधों में कटुता
उमेश चतुर्वेदी ने बताया कि आज सदन में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच जिस तरह की खटास देखने को मिलती है, वैसी पहले नहीं दिखती थी. राहुल गांधी ने तो अपने भाषणों में अति कर दी है, कभी चौकीदार चोर है, तो कभी कुछ और कहते हैं, मर्यादित आचरण कहीं नजर नहीं आता है. हमने ब्रिटेन से संसदीय परंपरा तो ग्रहण किया, लेकिन उनके यहां जिस तरह की भाषा की मर्यादा और आचरण सदन में दिखती है, उसे हम अपना नहीं सके. अभी ब्रिटेन चुनाव के बाद जिस तरह हारने वाले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और जीतने वाले किएर स्टार्मर ने एक दूसरे को बधाई और शुभकामनाएं दी वह काबिलेतारीफ और अनुकरणीय है.हमारे यहां सदन के बाहर जो कटुता होती है, वह सदन के अंदर भी नजर आने लगी है.
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