Priyanka Gandhi Vadra : संसद में अब तीनों गांधी पहुंच चुके हैं और निश्चित तौर पर उनके निशाने पर वही व्यक्ति होगा, जिसने कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का नारा दिया. यह कहने में कोई गुरेज भी नहीं है कि वे इसमें काफी हद तक सफल भी रहे. कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल करने और उसके सांसदों की संख्या को दो अंकों तक सीमित करने में पीएम नरेंद्र मोदी का बड़ा योगदान है. साल 2014 और 2019 की अपेक्षा 2024 के चुनाव में कांग्रेस मजबूत हुई है. इस बार उनके 99 सांसद संसद पहुंचे हैं और राहुल गांधी को प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा भी मिला है. नि:संदेह कांग्रेस की कोशिश अब बीजेपी की ताकत को कम करने की होगी. इसमें प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं, क्योंकि वे संसद पहुंच चुकी हैं.
गांधी परिवार के तीनों गांधी की बात करें, तो आम जनता के बीच प्रियंका, सोनिया और राहुल की अपेक्षा ज्यादा पसंद की जाती हैं. वजह है उनका हाव-भाव और चेहरा, जो उनकी दादी इंदिरा गांधी से काफी मिलता जुलता है. प्रियंका गांधी के व्यक्तित्व पर उनकी दादी का बहुत प्रभाव है और यही वजह है कि जब भी वो कोई बड़ा काम करती हैं, उनकी कोशिश हमेशा दादी की तरह दिखने और उनको अनुभव करने की होती है. प्रियंका गांधी ने अपनी शादी में जो साड़ी पहना था, वो उनकी दादी का था और जब वो पहली बार सांसद के रूप में संसद पहुंची हैं, तब भी उन्होंने अपनी दादी की ही साड़ी पहनी है. संसद के सेंट्रल हाॅल में इंदिरा गांधी की जो तस्वीर लगी है, उसमें इंदिरा उसी साड़ी में नजर आ रही हैं.
इंदिरा और प्रियंका के बीच समानताएं
![इंदिरा की कसावु साड़ी में उनकी छवि बनकर संसद पहुंचीं प्रियंका गांधी, क्या उसी तरह राजनीति भी कर पाएंगी? 1 Copy Of Add A Heading 2024 11 29T143301.296](https://www.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/2024/11/Copy-of-Add-a-heading-2024-11-29T143301.296-1024x683.jpg)
इंदिरा गांधी और प्रियंका गांधी का चेहरा काफी कुछ एक जैसा है. यही वजह है कि इंदिरा गांधी को पसंद करने वाले और उनके समर्थक प्रियंका के प्रति सहानुभूति रखते हैं और उनके साथ खड़े हो जाते हैं. प्रियंका गांधी का बचपन अपनी दादी की गोद में बीता है. यही वजह है कि वे भारतीय जनमानस और यहां के मुद्दे को उसी तरह जानती और समझती हैं, जिस तरह इंदिरा गांधी समझती थीं. इंदिरा और प्रियंका दोनों का ही अपने पिता से जुड़ाव बहुत ज्यादा था. हालांकि, जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई उस वक्त प्रियंका महज 11-12 साल की ही थीं और उन्हें अपनी दादी से राजनीति को समझने का मौका नहीं मिला. लेकिन इंदिरा गांधी के मन में यह बात थी कि अगर प्रियंका गांधी राजनीति में आईं तो उनसे आगे जाएंगी और लोग इंदिरा को भूलकर प्रियंका को याद रखेंगे. इंदिरा गांधी के करीबी रहे माखनलाल फोतेदार ने अपनी किताब ‘द चिनार लीव्स’ में भी इस बात का जिक्र किया है.
प्रियंका नहीं सारिका होता नाम
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इंदिरा गांधी ने अपनी पोती का नाम जम्मू-कश्मीर की एक देवी के नाम पर रखने का सोचा था. देवी का यह मंदिर श्रीनगर में है. इंदिरा उसी देवी के नाम पर अपनी पोती का नाम सारिका रखना चाहती थीं, लेकिन प्रियंका गांधी के जन्म से कुछ पहले राजीव गांधी के मित्र कैप्टन सतीश शर्मा के यहां भी बेटी का जन्म हुआ और वे उसे लेकर इंदिरा गांधी के पास आए और उसका नामकरण करने को कहा. उस वक्त इंदिरा गांधी के मुंह से सारिका नाम निकल गया, हालांकि उन्होंने यह नाम अपनी पोती के लिए सोचा हुआ था. बाद में इंदिरा गांधी को अफसोस भी हुआ कि यह मैंने क्या कर दिया. बाद में जब प्रियंका का जन्म हुआ तो इंदिरा गांधी ने ही उनका नाम प्रियंका रखा. राहुल और प्रियंका दोनों का ही नामकरण इंदिरा गांधी ने किया था.
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कितनी कठिन है राजनीति की डगर
प्रियंका गांधी ने राजनीति में इंट्री तो कर ली है, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां हैं. इंदिरा गांधी जब राजनीति में आई थीं तो उनके साथ सहानुभूति थी. पंडित नेहरू की मौत के बाद उन्हें राजसभा का सदस्य नियुक्त किया गया था और लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री थीं. लालबहादुर शास्त्री की मौत के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और पार्टी अध्यक्ष कामराज ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया, वे यह समझते थे कि इंदिरा कमजोर हैं और उन्हें नियंत्रित करना आसान होगा, लेकिन इंदिरा ने उन्हें झूठा साबित किया और एक दिग्गज और ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में उभरीं.
प्रियंका गांधी के सामने परेशानी यह है कि वे राजनीति में तब आई हैं, जब कांग्रेस खस्ताहाल है और विपक्ष में हैं. दूसरी बात यह है कि उनके सामने उनके मुकाबले में उनके भाई हैं, जो राजनीति में उनसे बहुत सीनियर हैं. प्रियंका ने राजनीति में इंट्री भी अपने भाई के छोड़े गए सीट से ही की है. इसलिए प्रियंका के सामने अपनी भूमिका को लेकर भी काफी चुनौतियां हैं.
प्रियंका कांग्रेस पार्टी का मुख्य किरदार नहीं हैं : रशीद किदवई
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राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि प्रियंका गांधी के सामने कई चुनौतियां हैं. वे इंदिरा गांधी का प्रतिरूप भले ही लगती हों, लेकिन दोनों की चुनौतियां अलग हैं. वे जिस पार्टी और परिवार से आती हैं वहां की पोस्ट पर राहुल गांधी हैं. राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता हैं, जबकि प्रियंका महज 99 सांसदों में से एक हैं. सबसे पहले तो उन्हें अपनी भूमिका तय करनी होगी कि वह करना क्या चाहती हैं. क्या वह पार्टी प्रशासन में रहना चाहती हैं, संगठन के लिए काम करना चाहती हैं या कुछ और? वर्तमान परिस्थिति की बात करें तो कांग्रेस बहुत ही विषम परिस्थिति में है. प्रियंका गांधी पार्टी का मुख्य किरदार नहीं हैं. वो जानती है कि राहुल गांधी उनके नेता हैं, यहां विवाद जैसा कुछ नहीं है. सबकुछ सौहार्दपूर्ण है. लेकिन वो व्यवहार कुशल हैं, ऐसे में उन्हें पार्टी को मजबूत करने के लिए काफी काम करना होगा. हां, यह जरूर है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है और उन्हें यह लग रहा है कि राहुल की अनुपस्थिति में भी उनके पास एक मजबूत नेतृत्व है.
अगर संभावनाओं पर विचार करें तो यह लगता है कि वो पार्टी को राज्यों में मजबूत करने में बड़ी भूमिका अदा कर सकती है. मसलन अगर उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दे दी जाए या राजस्थान की जिम्मेदारी दे दी जाए, तो अखिलेश यादव या फिर सचिन पायलट के साथ उनकी जोड़ी बन सकती है और वे पार्टी को मजबूत कर सकती हैं. जहां तक बात इंदिरा गांधी जैसी लगने का है तो प्रियंका अपनी दादी से काफी प्रभावित हैं. वे उनका बहुत सम्मान करती हैं और उनका अपनी दादी के प्रति स्नेह को ऐसे भी समझा जा सकता है कि वो अजिताभ बच्चन की बेटी की शादी में भी उनकी ही साड़ी पहनकर गई थीं. इंदिरा जी ने वो साड़ी अपने अमेरिका दौरे के दौरान पहनी थी.
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FAQ : क्या इंदिरा गांधी लोकसभा का चुनाव लड़कर संसद पहुंची थीं?
नहीं. वो राज्यसभा की सदस्य नियुक्त हुई थीं.
प्रियंका गांधी कहां से चुनाव जीती हैं?
प्रियंका गांधी वायनाड से चुनावी जीती हैं?