Rakhi special: रक्षा का सूत्र

रक्षा बंधन, जो भाई- बहन के बीच अटुट प्रेम और विश्वास का प्रतिक है. इस विशेष अवसर पर भाई- बहनों की कई कहानीयां साबित करती है कि यह पर्व सिर्फ राखी बांधने तक सिमित नहीं है.बल्कि सुरक्षा, स्नेह और जिम्मेदारीयों का भी प्रतिक है.

By Swati Kumari Ray | August 18, 2024 4:48 PM
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रिचा फोन पर अपने भाई से कह रही थी, आज पहली बार है, जो तुम्हें राखी नहीं बांध पा रही. बहुत याद आ रही है तुम्हारी, कहते-कहते वह थोड़ा ठिठकी.
आज फिर से अपने बिल्डिंग के गार्ड को उसने खुद को घूरते हुए पाया. जैसे ही लिफ्ट के सामने खड़ी हुई कि बत्ती गुल हो गयी. उसने मोबाइल के टॉर्च को ऑन किया और सीढ़ियों से चढ़ना शुरू किया. तभी पीछे किसी की आहट महसूस हुई. घबराहट में वह तेज कदमों से सीढ़ियां चढ़ने लगी. तभी लगा कि दो लोग आपस में गुत्थमगुत्थी कर रहे हैं. तब तक बत्ती आ गयी. सबने देखा कि गार्ड एक लड़के से उलझा हुआ है और दोनों में हाथापाई हो रही है.
जब लोगों ने दोनों को छुड़ाया, तब गार्ड ने बताया, यह लड़का पिछले कुछ दिनों से रिचा दीदी का पीछा कर रहा था. अलग-अलग कंपनी का डिलीवरी ब्वॉय बनकर आता है और रिचा दीदी के फ्लैट के पास मंडराता है. जब मुझे संदेह हुआ तो मैं रिचा दीदी के वापस आने पर उनको उनके फ्लैट तक छोड़ने चला जाता था, ताकि कोई अनहोनी न हो जाये. यह जानकर रिचा सन्न रह गयी!
अब तक उसने जिसे भक्षक समझा था, असल में वह रक्षक निकला. लोगों ने तब तक पुलिस को फोन कर दिया. गार्ड को चोट आयी थी, सो लोग उसे मरहम-पट्टी करने लगे. रिचा अचानक गार्ड के पास आयी और हाथ जोड़कर कहा, भैया! माफ करना. मैंने तुम्हें कितना गलत समझा था!
कोई बात नहीं है दीदी. ऐसी ही एक घटना की वजह से मैंने अपनी बहन को हमेशा के लिए खो दिया था… कहते-कहते उसकी आवाज भर्रा गयी. रिचा अपने फ्लैट में जाकर राखी और मिठाई ले आयी और गार्ड की कलाई में राखी बांधकर मिठाई खिलाते हुए बोली, आज समझो कि तुम्हारी बहन तुम्हे वापस मिल गयी. मधेपुरा की डॉ मोनिका राज की कहानी ने इस पर्व के महत्व को नई दिशा दि.

उपहार

विष्णु भैया! इस बार मैं रक्षाबंधन के दो दिन पहले ही आ रही हूं. मेरा उपहार तैयार रखना. नहीं रश्मि! इस बार तुम न ही आओ तो अच्छा रहेगा. मंदी के चलते धंधा-पानी नहीं चल रहा है. रोज के खर्चे निकालने ही भारी पड़ रहे हैं, तो क्या उपहार दे पाऊंगा? नहीं भैया! मैं तो आऊंगी- कहकर कुछ सोचते हुए रश्मि ने फोन काट दिया. दो दिन पहले न आकर राखी के दिन ही रश्मि जा पहुंची. खाने के बाद रश्मि ने आवाज लगायी, भैया! आ जाओ, राखी बांधने का शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है. मुझे जाना भी है. विष्णु आकर सामने बैठ गया, पर चेहरे पर उदासी के बादल थे. क्या भैया! आज के दिन तो खुश रहो. यूं मुंह नहीं लटकाते. रश्मि ने मुस्कुराते हुए भैया के ललाट पर तिलक लगाया और हाथ पर सुंदर-सी राखी बांधते हुए मुंह मीठा करवाया. नारियल पर एक लिफाफा रखकर आरती करने लगी! भैया, अब लाओ मेरा उपहार. विष्णु पचास का नोट थाल में रखकर अपने कमरे में चला गया. तभी रश्मि ने आवाज लगायी, भैया! मैं जा रही हूं, वो मिठाई खा लेना. रश्मि चली गयी. बेटे सन्नी ने डिब्बे से मिठाई उठाकर खानी शुरू की, तो लिफाफा पर नजर गया.
पापा! पापा! यहां आओ. विष्णु कमरे से बाहर निकला. सन्नी ने लिफाफा खोलकर दिखाया, तो उसमें पांच हजार रुपये थे. यह देखकर विष्णु की आंखें नम हो गयीं. वह आंसू पोंछते हुए धीमे से बोल उठा, पगली कहीं की! तो यह उपहार मांग रही थी! आखिर मुसीबत में रक्षा करने का फर्ज निभा ही गयी. एक भाई बहन के संबंध की गहराई को उजागर करता है कोटा के नवीन गौतम की कहानी.

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जिम्मेदारियों वाली राखी

‘अरे दीदी, जल्दी करो. कोमल दीदी की ट्रेन कभी भी आती होगी’. ऋषि ने किचन से बड़ी बहन सरगम को आवाज लगाया.
‘हां, हां.. तू इतना उतावला क्यों हो रहा? अभी दीदी को आने में करीब दो घंटे हैं’. सरगम ने दूर से ही कपड़े छत पर डालते हुए कहा.
आज रक्षाबंधन है, इसलिए दोनों काफी उत्साहित थे और बड़ी बहन कोमल के आने का इंतजार कर रहे थे, जो दिल्ली में एक सेमिनार में बतौर प्रोफेसर भाग लेकर लौट रही थी. वो कोमल ही थी, जिसने दोनों भाई-बहन को पढ़ाया और इस काबिल बनाया. ऋषि वाणिज्य मंत्रालय में अधिकारी बन गया था और सरगम बैंक में पीओ बन चुकी थी.
कुछ देर में कोमल दरवाजे पर खड़ी थी. जैसे ही सरगम ने दरवाजा खोला, फूलों की बरसात हो गयी. कोमल ने चौंकते हुए ऊपर देखा, तो ऋषि हाथों में फुल लिये खड़ा था.
हाथ-मुंह धोने के बाद सरगम राखी की थाली ले आयी. जैसे ही कोमल ने ऋषि की कलाई पर राखी बांधने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, सरगम ने कोमल की कलाई पर राखी बांधते हुए कहा, ‘ऋषि और मैंने सोचा है कि हम दोनों आपको राखी बांधेंगे, क्योंकि मां-पापा के जाने के बाद आपने ही हमें संभाला और इस लायक बनाया है कि हम समाज में सिर उठाकर जी सकें’.
अपने भाई-बहन से इतना प्रेम पाकर कोमल की आंखें भी नम हो गयीं. उन दोनों को गले से लगाते हुए कोमल ने कहा, ‘तुम दोनों ने आज मुझे वह खुशी दी है, जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था’.
इस बीच ऋषि ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘दीदी अभी इमोशनल होने का नहीं, राखी बांधने के बाद नेग देने का समय है’. मुजफ्फरपुर के सौम्या ज्योत्सना कि कहानी भी दिल छु लेने वाली हैै.

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