बदला परिदृश्य, पर नयी नीतियां हैं जरूरी
हरित क्रांति यानी 1966-67 के बाद बहुत बदलाव आये. अधिक उत्पादकता वाले बीजों की किस्में मंगायी गयीं और यहां की जलवायु के अनुसार उन्हें परिष्कृत किया गया. हरित क्रांति का असर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे पहले देखा गया, क्योंकि यहां के किसान बदलाव को स्वीकार करने में सबसे आगे थे.
भारत में गणतंत्र की स्थापना से लेकर अब तक कृषि के क्षेत्र में देश ने एक बड़ा बदलाव देखा है. लगभग हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल हुई है. वर्ष 1950-51 से अभी तक के सफर को देखें, तो खाद्यान्न उत्पादन में लगभग नौ गुना की वृद्धि हुई है. पचास के दशक में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन करीब 50 मिलियन मीट्रिक टन था, अब यह 330 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है. यह एक बहुत बड़ा अंतर आया है कृषि उत्पादन में, जिसे देश ने देखा है. आजादी के वक्त खाद्यान्न उत्पादन के मामले में भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी. इस पूरे दौर में कृषि उत्पादन में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी हुई है. हरित क्रांति यानी 1966-67 के बाद बहुत बदलाव आये. अधिक उत्पादकता वाले बीजों की किस्में मंगायी गयीं और यहां की जलवायु के अनुसार उन्हें परिष्कृत किया गया. हरित क्रांति का असर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे पहले देखा गया, क्योंकि यहां के किसान बदलाव को स्वीकार करने में सबसे आगे थे.
आजादी के बाद खाद्यान्न के मामले में भारत आयात पर निर्भर था. एक बड़ी चुनौती थी कि खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाये और आयात पर निर्भरता खत्म की जाये. इस पर तेजी से काम किया गया. बीज की नयी किस्में आईं, सिंचाई की सुविधाओं पर काम किया गया, इसके साथ ही फसल खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू किया गया. एमएसपी का सिस्टम भी लगभग 1965 के आस-पास ही शुरू हुआ. इसके लिए कृषि मूल्य आयोग बना, जो बाद में कृषि लागत और मूल्य आयोग बन गया. किसानों को उपज का एक सुनिश्चित दाम देना अनिवार्य किया गया. एमएसपी सबसे पहले धान और गेहूं में शुरू हुआ और यह उन्हीं राज्यों में शुरू हुआ, जहां उपज अधिक थी. इस तरह एक सिस्टम बनाया गया और खाद्यान्न की उपलब्धता देश के कोने-कोने में सुनिश्चित की गयी.
इसी क्रम में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) का गठन हुआ, जिससे खरीद व भंडारण का एक तंत्र विकसित किया जा सके. केंद्रीय भंडारण निगम और राज्य भंडारण निगम स्थापित किये गये. फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उर्वरक की आवश्यकता थी, इसलिए उर्वरक उपलब्धता के लिए आयात के साथ-साथ देश में उर्वरक उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया. सरकारी क्षेत्र में उर्वरक कंपनियां आईं, सहकारी क्षेत्र में इस पर काम हुआ. इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) एवं भारती को-ऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) शुरू हुईं. इसे सीधे ऐसे देख सकते हैं कि बीज की नयी किस्में लाने, उन्हें यहां की जलवायु के मुताबिक विकसित करने, सिंचाई की व्यवस्था करने, एमएसपी लागू करने, उर्वरक की उपलब्धता बढ़ाने पर बड़े पैमाने पर काम हुआ. इसी क्रम में देश में कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत काम हुआ. राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) का गठन हुआ. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने गेहूं की किस्मों को विकसित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभायी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का हरित क्रांति में अहम योगदान रहा. देश भर में कृषि विश्वविद्यालय स्थापित हुए. आज देश में तकरीबन 70 कृषि विश्वविद्यालय हैं. इसके बाद खाद्यान्न में जो बाकी फसलें थी, जैसे तिलहन, दलहन, कॉटन उनकी उपज बढ़ाने पर काम शुरू हुआ.
कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के क्रम में डेयरी सेक्टर में भी बड़े पैमाने पर काम किया गया. आणंद सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ यानी अमूल की स्थापना तो पहले हो चुकी थी, जिसकी स्थापना वर्गीज कुरियन के प्रयासों से त्रिभुवनदास पटेल की अगुवाई में की गयी थी. आजादी के बाद देश में ऑपरेशन फ्लड आया, जिसे श्वेत क्रांति भी कहते हैं. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन हुआ और इसने अमूल मॉडल के आधार पर ऑपरेशन फ्लड को आगे बढ़ाया. राज्यों में डेयरी के क्षेत्र में काम करने के लिए सहकारी संगठन बने. इस तरह पशुपालन या कहें डेयरी के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति हुई, जो कृषि का एक अहम हिस्सा है. आज भारत दुनिया का बड़ा दूध उत्पादक देश है और डेयरी व पशुपालन करीब दस करोड़ लोगों की आय का साधन है. कृषि के परिदृश्य को बदलने में फिशरीज का भी बड़ा योगदान रहा. आज एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट में सबसे अधिक निर्यात मरीन प्रोडक्ट का होता है.