Social media: सोशल मीडिया की दिखावटी दुनिया, पेरेंट्स परफेक्शन एंग्जायटी का शिकार
इंग्लैंड की एक एनजीओ ‘होम स्टार्ट’ द्वारा किये गये अध्ययन में पता चला है कि 10 में से 6 पेरेंट्स सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर परफेक्ट पेरेंटिंग के दबाव में आ जाते हैं.
Social media: पूनम ने आज अपने ऑफिस मैनेजर को मेल भेजकर वर्क फ्रॉम होम का ऑप्शन ले लिया था. उसके ऑफिस ने यह सुविधा दे रखी थी कि वह चाहे तो हफ्ते में दो दिन ऐसा कर सकती है. लॉग इन करने से पहले वह सोसायटी के बाहर मौजूद स्टेशनरी शॉप पर गयी और ढेर सारे आर्ट पेपर, ड्रॉइंग कॉपी, पोस्टर कलर, पेंसिल, ब्रश एवं स्केच पेन ले आयी. उसने निश्चय किया था कि अपनी पांच वर्षीय बेटी शृंगी को वह पेंटिंग सिखायेगी. दरअसल, उसने हाल ही इंस्टाग्राम पर ऐसी कई रील्स देखी थी, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे एक से बढ़कर एक करामात दिखा रहे थे. कोई कविता सुना रहा था, तो कोई गाना गा रहा था. कुछ बच्चे बढ़-चढ़कर सामान्य ज्ञान का प्रदर्शन कर रहे थे, किसी ने पेंटिंग में अनूठा प्रदर्शन कर दिखाया था. कोई डांस व एरोबिक्स में अपना कमाल दिखा रहा था, जबकि पूनम की बेटी शृंगी ऐसा कुछ भी नहीं कर पाती थी. इस बात से पूनम को एंग्जायटी होने लगी थी.
दरअसल, वह तुलनात्मक हीनता से ग्रस्त हो गयी थी. उसने दिखावटी सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर यह नहीं सोचा कि शृंगी एक अनुशासित बच्ची है. समय पर जागती व सोती है. स्कूल से मिला होमवर्क बिना किचकिच किये पूरा कर लेती है. घर का बना भोजन बिना नखरे खा लेती है और अपने रूटीन काम खुद कर लेती है. शृंगी ने पूनम की लाख कोशिशों के बाद भी पेंटिंग में दिलचस्पी नहीं ली, तो उसका मूड ऑफ हो गया. आज सोशल मीडिया के दौर में यह आम बात हो गयी है.
Social media से बढ़ रहा चिंता और तनाव
बहुत सारी न्यू एज मॉम्स या नव विवाहित जोड़े हैं, जो सोशल मीडिया पर लोगों के घूमने-फिरने, महंगे रेस्तरां में भोजन करने, आलीशान घरों में रहने, बच्चों के बढ़-चढ़कर टैलेंट प्रदर्शन से प्रभावित होकर चिड़चिड़ापन महसूस करने लगते हैं. कई बार मांएं अपने बच्चों पर जाने-अनजाने में अनावश्यक दबाव डालकर अत्याचार करने लगती हैं. इससे उनका बच्चा धीरे-धीरे उद्दंड, गुस्सैल,जिद्दी और चिड़चिड़ा हो जाता है.
also read: Caption Supritha CT: सियाचिन ग्लेशियर में तैनात पहली महिला एयर डिफेंस ऑफिसर
दुनियाभर में बढ़ रही है इस तरह की समस्या
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह स्थिति भारत ही नहीं, कमोबेश पूरी दुनिया में है. इंग्लैंड की एक एनजीओ ‘होम स्टार्ट’ द्वारा किये गये अध्ययन में पता चला है कि 10 में से 6 पेरेंट्स सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर परफेक्ट पेरेंटिंग के दबाव में आ जाते हैं. इन पेरेंट्स ने स्वीकार किया कि वे सोशल मीडिया पर दूसरे मम्मी-पापा और उनके बच्चों के पिक्चर और परफेक्ट परफॉर्मेंस को देखकर शर्मिंदगी और अपराध बोध महसूस करते हैं, क्योंकि वे अपने बच्चों को ऐसा सुपर परफॉर्मर नहीं बना सके.
सोशल मीडिया एंग्जायटी से उबरने के लिए करें ये काम
- कोई भी इंस्टाग्राम इनफ्लुएंसर या रील मेकर अपनी 24 घंटे की एक्टिविटी या अपने डार्क एरिया प्रदर्शित नहीं करेगा. महज 40-45 सेकंड की वीडियो को एडिट या बार-बार रीमेक के बाद तैयार किया जा सकता है. इसलिए जो आपको दिखाया जाता है, उसे सिर्फ मनोरंजन समझ कर देखें, दिल और दिमाग पर न लें.
- इंस्टा इनफ्लुएंसर आपको अपने घर का एक कोना मात्र दिखाते हैं. उस स्थान को रील बनाने के लिए विशेष रूप से सजाया जाता है. वे कभी आपको अपनी गंदी बेडशीट, घर में बिखरे हुए कपड़े, किचन में लगी कालिख या जाले लगी दीवारों को नहीं दिखायेंगे, इसलिए उन्हें देखकर ‘परफेक्शन एंजायटी’न पालें.
- जो बच्चा फटाफट चित्र बनाता है या गाने सुनाता है, उसे घंटों की मेहनत के बाद एक परफॉर्मेंस के लिए तैयार किया जाता है. बाकी समय में उस बच्चे की एक्टिविटी कैसी होती है, उसका स्कूल परफॉर्मेंस कैसा है, घर में वह कैसे कपड़े पहनता है, यह सब आपको नहीं पता. इसलिए आप अपने बच्चों के साथ उसकी तुलना न करें.
- आप अपने लक्ष्य व अपने बच्चे की दिलचस्पी और क्षमताओं के अनुसार ही धीरे-धीरे आगे बढ़ें. सोशल मीडिया पर दूसरे बच्चे क्या कर रहे हैं, ये आपके लिए जानना जरूरी नहीं है. अच्छा होगा सोशल सर्किल पर ज्यादा ध्यान दें. ‘पेरेंटिंग इन द एज आफ एंजायटी’ के लेखक डॉ जिराक मार्कर कहते हैं कि आपको ऐसी रील और इंस्टा पोस्ट देखने से बचना चाहिए, जिनमें बच्चों या पेरेंट्स को ‘पिक्चर परफेक्ट’ सुपर मॉम या सुपर चाइल्ड के रूप में दिखाया जाता है.
मानसिक सेहत पर प्रतिकूल असर डालते हैं रील्स
अमेरिका में एक ऑनलाइन प्रयोग के दौरान 464 नयी मम्मियों (जिनके 3 वर्ष तक या उससे छोटी उम्र के बच्चे थे) को कुछ दिनों तक 20 इंस्टाग्राम पोस्ट दिखायी गयी. इनमें मॉम इन्फ्लुएंसर को दिखाया गया था. ज्यादातर मम्मियों ने इन पोस्ट को देखकर सोशल कंपैरिजन एंग्जायटी व ईर्ष्या की भावना महसूस की. कुछ पोस्ट साधारण मम्मियों की भी दिखायी गयी. उन्हें देखकर इन मम्मियों की मानसिक स्थिति पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा. इससे मनोवैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि मॉम इनफ्लुएंसर्स की बढ़ा-चढ़ाकर दिखायी गयी एक्टिविटीज न्यू एज मॉम्स की मेंटल हेल्थ पर प्रतिकूल असर डालते हैं.
also read: Historical Place in Chhattisgarh: प्राचीन कलाकृति और ऐतिहासिक धरोहर का अद्भुत केंद्र है डीपाडीह