रावलपिंडी और नोआखाली जैसे नरसंहार के बाद की अनकही कहानियां
Story Of Partition Of India 8 : भारत विभाजन के वक्त जब रावलपिंडी और नोआखाली जैसे नरसंहार हुए, तो लोगों ने एक दूसरे की हत्या इस तरह की जैसे वो उनका जन्मसिद्ध अधिकार था. लोगों को जलाकर मार देना, गला काटकर मार देना, स्तन और गुप्तांग काट देना जैसी घटनाएं बर्बरता के साथ हुईं. एसिड अटैक बिना किसी डर के हुए. महिलाएं और बच्चे तो जैसे खि़लौना बन गए. महिलाओं की खरीद-बिक्री हवस बुझाने के लिए हुई. उसी दौरान कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं, जिन्होंने इंसानियत जिंदाबाद के नारे को बुलंद किया.
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Story Of Partition Of India 8 : भारत-पाकिस्तान विभाजन की आग इतनी भयावह थी कि लोगों का मानसिक संतुलन बिगड़ गया था. लोग पागलों की तरह बर्ताव कर रहे थे, उनके लिए जीवन मरण से भी बदतर था. इन हालात में कोई एक दूसरे की सुनने को तैयार नहीं था. महात्मा गांधी जैसे नेता के प्रति भी लोगों में आक्रोश था, उस वक्त मन को सुकून दे रही थीं वैसी घटनाएं, जिसमें हिंदू मुसलमान की रक्षा कर रहा था और मुसलमान किसी सिख या हिंदू की. इंसानियत सबसे ऊपर है, इस बात को पुख्ता करती कई कहानियां सामने आ रही थीं.
विनाशलीला से थर्राए लोग और प्रशासन
भारत विभाजन का असर इस कदर हैवानियत भरा होगा यह किसी ने नहीं सोचा था. भारत विभाजन की नींव रखने वाले लार्ड माउंटबेटन ने भी इस बात की कल्पना नहीं की थी. नेहरू और जिन्ना की बात तो खैर दीगर है. माउंटबेटन तो खैर विदेशी थे, लेकिन पंडित नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना ने भी कैसे अपने लोगों के मनोभाव को नहीं समझा, इस बात की चर्चा उस समय भी होती थी और आज भी होती है. यही कारण है कि भारत विभाजन के लिए कभी जिन्ना तो कभी नेहरू को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. माउंटबेटन तो इतना आतंकित हो गए थे कि उन्होंने एक बार महात्मा गांधी को कलकत्ता में रूकने को कहा था क्योंकि उन्हें यह भरोसा हो गया था कि अगर वहां हिंसा की आग बुरी तरह फैल गई तो सेना भी वहां के गली-कूचों में लोगों को नहीं रोक पाएगी. महात्मा गांधी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो भारतीयों की मानसिकता को समझते थे इसलिए उन्होंने विभाजन का बहुत विरोध किया था.
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इंसानियत की कायम की मिसाल
हिंदू पुलिस अफसर जिनकी चर्चा बहुत कम होती है, उनके बादरे में फ्रीडम एट नाइट में लिखा गया है कि वे रोज एक व्यक्ति की जिंदगी बचा लेने की कोशिश करते थे. उन्होंने अनगिनत लोगों की जान अपने प्रयासों से बचाए थे. उस वक्त कई ऐसे सिख थे, जिन्होंने मुसलमानों को अपने घर पर महीनों तक छिपाकर रखा. एक मुसलमान रेलवे क्लर्क अहमद अनवर की जान उसे ईसाई बताकर एक सेल्समैन ने बचाई थी. फ्रंटियर फोर्स के कप्तान जो मुसलमान थे, उन्होंने सिखों के एक समूह को बचाने के लिए अपनी जान दे दी.
एक सिख परिवार को बचाने के लिए खाई थी कुरान की झूठी कसम
विभाजन के दौरान इंसानियत की मिसाल कायम करते हुए एक मुस्लिम अफसर ने डॉक्टर तरुणजीत सिंह बोतालिया के परिवार को बचाया था. बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बारे में विस्तृत खबर छापी थी, जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार बोतालिया परिवार को अपने भाई का परिवार बताकर उस मुस्लिम अफसर ने बचाया था. जब आसपास के लोगों को शक हुआ तो इमाम ने उन्हें कुरान की कसम खिलाई और उन्होंने कसम खाकर यह कहा था कि उनके घर में जो लोग हैं वे उनके भाई और उसका परिवार है. इस मुस्लिम अफसर का नाम सूबे खान था.
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