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Sub Classification Of SC-ST Quota :  राजनीति पर क्या पड़ेगा असर, क्रीमी लेयर के निर्धारण से किसे होगा नुकसान, पढ़ें पूरी खबर

Sub Classification Of SC-ST Quota : सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण में वर्गीकरण की बात कही है. यानी कि अब राज्य इन जातियों के लिए निर्धारित आरक्षण में से उन जातियों को विशेष लाभ दे सकते हैं, जिनकी शैक्षणिक और सामाजिक स्थिति बहुुत खराब है. कोर्ट ने यह भी कहा कि इसका निर्धारण हित और राजनीति के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए.

Sub Classification Of SC-ST Quota : सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसके तहत अब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कोटे यानी आरक्षण में भी कोटा होगा. कहने का अर्थ यह है कि अब राज्य सरकारें वंचित समुदायों में यह तय कर सकेगी कि किन्हें आरक्षण की ज्यादा जरूरत है और उसी के हिसाब से उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों को एससी और एसटी जातियों के अंदर उप-वर्गीकरण का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिले जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अत्यधिक पिछड़ी हैं. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात सदस्यीय पीठ ने 6:1 के बहुमत से यह निर्णय सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले और उसके प्रभाव को समझने के लिए हमने कुछ विशेषज्ञों से बात की, पढ़िए क्या कहते हैं एक्सपर्ट-

एससी-एसटी समुदाय के वंचितों को मिलेगा बड़ा फायदा 

विधायी मामलों के जानकार अयोध्या नाथ मिश्र ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है, क्योंकि इसके प्रभाव में आने से वंचितों में से जो ज्यादा वंचित हैं, उन्हें लाभ मिलेगा. देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को 1950 से आरक्षण का लाभ प्राप्त है, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि एससी और एसटी में भी कुछ खास वर्ग के लोग ही आरक्षण की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं.

 मसलन मेहतर कम्युनिटी के लोगों में शिक्षा का सख्त अभाव है और वे आज भी काफी पिछड़े हैं. वहीं पासी, चमार और धोबी समुदाय के लोग पढ़े-लिखे हैं और आरक्षण का बखूबी लाभ उठा रहे हैं. डाॅक्टर का बेटा डाॅक्टर बन रहा है, वहीं वंचितों में से वंचित तबका आज भी पिछड़ा है और आरक्षण का लाभ नहीं ले पा रहा है. वही स्थिति एसटी में है, जो लोग क्रिश्चयन बन चुके हैं वे आरक्षण का लाभ ज्यादा लेते हैं, जबकि गांव में रह रहा आदिवासी आज भी आरक्षण के लाभ से काफी हद तक वंचित है. 

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी समुदाय में वर्गीकरण को सही ठहराने से सबको विकास का समान अवसर मिलेगा, जो संविधान सम्मत भी होगा. क्रीमी लेयर की पहचान से उन लोगों को आरक्षण के दायरे से बाहर किया जा सकेगा, जिनकी पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का लाभ उठाकर संपन्न हो चुकी है. 

कोटे में कोटा के राजनीति मायने

राजनीतिक विश्लेषक उमेश चतुर्वेदी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अच्छा है, कोटे में कोटे के प्रावधान से उन लोगों को लाभ मिलेगा जो कोटे के अंदर भी पिछड़े हैं. आज के समय में जब जाति को अत्यधिक प्रमुखता दी जा रही है, हर जाति यह चाहती है कि उसका विकास हो और वह तथाकथित मुख्यधारा के विकास में शामिल हो. सबकी राजनीतिक लड़ाइयां हैं और सभी विकास की दौड़ में शामिल हैं. 

उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग में भी उपवर्गीकरण के राजनीतिक मायने भी हैं. अभी तक यह समुदाय एकजुट होकर उन्हें ही वोट करता था, जिनके बारे में इन्हें यहे लगता था कि वे हमारे हक की बात करते हैं या फिर वे हमारा भला चाहते हैं. कोटे के अंदर कोटा अब इस मिथ को तोड़ेगा और यह समुदाय अब एकमुश्त वोट नहीं करेगा. अगर अनुसूचित जाति और जनजाति का वोट बंटेगा, तो इसके बड़े राजनीतिक प्रभाव होंगे.

उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में अन्य कई बातें भी कहीं हैं, जिनपर ध्यान देने की जरूरत है. सबसे पहली बात जो कोर्ट ने कही है वो यह है कि आरक्षण कोई इस तरह की व्यवस्था नहीं है जो अनंत काल तक चलने वाली है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि इन वर्गों के उन लोगों को आरक्षण का लाभ छोड़ना होगा जो पीढ़ी दर पीढ़ी से इसका लाभ ले रहे हैं और क्रीमी लेयर में आ चुके हैं.

क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीति बनाएं राज्य : सुप्रीम कोर्ट

अब सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से किसका होगा नुकसान? सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई ने अपने फैसले में कहा है कि राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए.  इसका उद्देश्य अधिक वंचित जातियों को आरक्षण का लाभ देकर उनका विकास करना है.  जस्टिस गवई ने 281 पृष्ठों के अलग लेकिन सहमति वाले फैसले में लिखा है कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों के पिछड़े वर्ग को तरजीह दे, जिनका सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है. यानी कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कह दिया है कि उन लोगों को अब आरक्षण छोड़ना होगा, जो वर्षों से इसका लाभ ले रहे हैं.

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