Theatre News : दिल्ली में एमसीडी ने नाटक प्रस्तुत करने को लेकर एक नया आदेश जारी किया है. इस नये आदेश के अनुसार, अब नाटक प्रस्तुत करने के लिए पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (पीसीसी) लेना होगा. अब दिल्ली के किसी भी ऑडिटोरियम में नाटक, संगीत, नृत्य या किसी भी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम करने से पहले इसके लिए एक नये पोर्टल पर फॉर्म भरना होगा. जिसका नाम है- ‘दिल्ली में भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों के लाइसेंस के लिए एकीकृत पोर्टल’. इस प्रकार, इस नये पोर्टल ने थिएटर, नृत्य और संगीत के लिए परफॉर्मिंग लाइसेंस को भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों की श्रेणी में डाल दिया है. इसी बात को लेकर रंगकर्मियों में खासा रोष है और वे सवाल उठा रहे हैं कि क्या होटल, रेस्तरां और बोर्डिंग प्रतिष्ठान के कानून नाटक, संगीत और नृत्य जैसे परफार्मिंग आर्ट पर लागू होते हैं?
दिल्ली समेत मुंबई के रंगकर्मी भी आदेश के विरोध में
दिल्ली और मुंबई के तमाम रंगकर्मियों ने एमसीडी के आदेश को लेकर अपना विरोध जताया है और कहा है कि अगर सत्ता को इस तरह की मनमानी करने की छूट दिल्ली में दी गयी, तो इस तरह के आदेश के पूरे देश में लागू करने का खतरा है. ऐसे में इस फैसले का विरोध कर रंगकर्मियों की आजादी को बचाना ही होगा. उनका कहना है कि रंगकर्मियों और नाटक करने वाली संस्थाओं पर शिकंजा कसने की पहले भी कई बार कोशिशें हुई हैं, परंतु जबरदस्त विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका है. बीते कुछ वर्षों से यह नये-नये रूपों में सामने आ रही है.
यह फैसला अतार्किक, अवैध और अलोकतांत्रिक है : अरविंद गौड़
प्रसिद्ध थिएटर डायरेक्टर अरविंद गौड़ का मानना है कि दिल्ली में नाटक प्रस्तुत करने के लिए पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट अतार्किक, अवैध और अलोकतांत्रिक है. क्योंकि यह अप्रत्यक्ष रुप से हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने का प्रयास है. यह नियम नाटककारों और कलाकारों की रचनात्मक स्वतंत्रता को सीमित करता है. पुलिस के पास नाटकों को मंजूरी देने या न देने का अधिकार नहीं होना चाहिए. यह नियम लोकतंत्र के सिद्धांतों के विरुद्ध है. यह नाटकों को पुलिस की निगरानी में रखने का प्रयास है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक है. यह नाटककारों और कलाकारों को अपनी बात रखने की आजादी से वंचित और सीमित करेगा. भारत ही नहीं, दुनिया में कहीं भी ऐसे कानून मौजूद नहीं हैं. यह प्रत्यक्ष उत्पीड़न ही है.
अरविंद का कहना है कि एनओसी, लाइसेंसिंग प्रक्रिया में शामिल विभिन्न विभागों के भीतर आपसी तालमेल न होने से थिएटर और सांस्कृतिक समूहों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. और वे इन्ही मुद्दों पर प्रश्न और आपत्तियां उठा रहे हैं. एजेंसियों को ऐसे कानून बनाने से पहले सभी हितधारकों से परामर्श करना चाहिए. विदित हो कि अरविंद रंगकर्मियों की अभिव्यक्ति की आजादी की लड़ाई लंबे समय से लड़ते रहे हैं और जब भी ऐसा कोई आदेश आता है, वे प्रतिबद्ध रंगकर्मियों की आवाज को मजबूती से उठाते हैं. इस बार भी उन्होंने दिल्ली नगर निगम की मेयर शैली ओबेराय से मिलकर इस पर आपत्ति जतायी. पर शैली ओबेराय ने इसकी जानकारी होने से ही मना कर दिया. उनका कहना था कि दिल्ली के ऐसे तमाम फैसले उप राज्यपाल ही ले रहे हैं और उन्हें बताया तक नहीं जाता. अरविंद ने इसे लेकर उप राज्यपाल से भी समय मांगा, पर वहां से भी कोई जवाब नहीं आया.
संस्कृति विरोधी-जन विरोधी आदेश
मशहूर नाट्य समीक्षक जयदेव तनेजा ने एमसीडी के इस तुगलकी फरमान पर जबरदस्त विरोध जताया है. उन्होंने इसे संस्कृति विरोधी और कलाकार विरोधी बताया है.
जाने माने नाट्य निर्देशक बैरी जॉन ने तो इस आदेश पर आश्चर्य जताते हुए इसे कलाकारों के लिए बेहद अपमानजनक फैसला बताया है. साथ ही कहा है कि यह कलाकारों को उनकी जड़ों से काटने की कोशिश है.
‘अंबेडकर और गांधी’ जैसे मशहूर नाटक के लेखक और तमाम नाटकों के लिए चर्चित रहे राजेश कुमार ने भी इसे जनविरोधी और संवेदनहीन फैसला करार दिया है. उन्होंने कहा है कि यह सरकार की असंवेदनशीलता है. कोई भी सरकार हो, रंगमंच के प्रति उसका रवैया दमनात्मक ही रहा है. इसका सख्त विरोध होना चाहिए.
जाने माने लेखक, निर्देशक, अभिनेता और नाटककार महेश दत्तानी ने कहा है कि मुंबई का नाटकों की सेंसरशिप से पुराना नाता है. वहां कई बार ये कोशिश हुई, परंतु हमें विजय तेंदुलकर और श्रीराम लागू जैसे दिग्गज शख्सियतों का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इसके खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी. फलस्वरूप वहां सेंसरशीप की कोशिश विफल रही. दिल्ली के कलाकारों को भी इस लड़ाई में पीछे नहीं रहना चाहिए. यदि ऐसा कोई नियम लागू हो गया, तो इसे वापस कराना मुश्किल हो जायेगा.