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40 Years of Prabhat Khabar : ट्रांसफर-पोस्टिंग में BDO के लिए 8 और चीफ इंजीनियर के लिए 15 लाख रुपए का था रेट

40 Years of Prabhat Khabar : झारखंड गठन के समय से ही प्रदेश में भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा था. अलग राज्य गठन के बाद यह कोशिश की गई कि भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जाए, लेकिन नेता-मंत्री पर कमीशनखोरी के आरोप लग रहे थे. ट्रांसफर-पोस्टिंग एक इंडस्ट्री के रूप में उभर गया था और लाखों रुपए देकर मनमाफिक जगहों पर पोस्टिंग कराई जा रही थी. प्रभात खबर के रिपोर्टर शकील अख्तर ने इसपर एक विस्तृत रिपोर्ट 2003 में लिखी थी

40 Years of Prabhat Khabar : 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य तो बन गया, लेकिन भ्रष्टाचार राज्य के लिए बड़ी समस्या बना रहा. राज्य गठन से पहले पशुपालन घोटाले की आंच में प्रदेश जल चुका था. 14 नवंबर 2003 को एक रिपोर्ट प्रभात खबर के फ्रंट पेज पर छपी थी, जिसमें इस बात की चर्चा थी कि प्रदेश के लिए भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. इस रिपोर्ट में विधानसभा अध्यक्ष के उस आह्वान का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने ईमानदार रहने की कसम खाने को कहा था. झारखंड गठन के लगभग 24 साल बाद भी यह समस्या बनी हुई है, पढ़िए, शकील अख्तर की यह खास रिपोर्ट, जिसमें  यह बताया गया था कि किस प्रकार भ्रष्टार झारखंड में उद्योग बनता जा रहा है. 

14 नवंबर, 2003 भ्रष्टाचार बना सबसे बड़ा उद्योग 

Corruption Industry
40 years of prabhat khabar : ट्रांसफर-पोस्टिंग में bdo के लिए 8 और चीफ इंजीनियर के लिए 15 लाख रुपए का था रेट 2

उम्मीदों के साथ बने झारखंड के तीन साल भ्रष्टाचार की बदशक्ल इमारतों को खड़ा करने में लग गए. यह सबको याद है कि झारखंड बनते-बनते विधानसभा अध्यक्ष ने ईमानदार रहने की कसम खाने का आह्वान किया था. पहला विधानसभा सत्र बिरसा मुंडा की प्रतिमा के आगे ईमानदारी से काम करने की कसम खाने का आह्वान… सब कुछ आज चिंदियों की तरह भ्रष्ट राजनीति और प्रशासन के गंदे तालातब में बह रहा है. एक ही गोल के नेता के नेता एक-दूसरे पर कमीशनखोरी का आरोप लगा रहे हैं और सचमुच यह कटु सत्य है. भ्रष्टाचार तीन वर्षों में झारखंड की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. विश्व बैंक कहता है कि विकास के लिए अनिवार्य शर्त है ‘भ्रष्टाचार पर नियंत्रण’, यह नैतिक उपदेश नहीं बल्कि आर्थिक अनिवार्यता है. 

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इंडस्ट्री बन गई है ट्रांसफर-पोस्टिंग

शिशु राज्य में ट्रांसफर-पोस्टिंग एक इंडस्ट्री का रूप ले चुकी है. यह इंडस्ट्री समय-समय पर मंत्रियों व मुख्यमंत्री के बीच होने वाली जंग का मुख्य कारण है. तबादले के मामले में मंत्रियों को साल में चार माह की छूट हासिल है. इन चार माह (मई-जून, नवंबर-दिसंबर) महीनों में विभागीय मंत्री जैसे चाहें तबादला करने के लिए आजाद हैं. बाकी के आठ महीनों में मंत्रियों की मरजी में मुख्यमंत्री की दखल होती है. मंत्रियों को यह दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं है. 

ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए प्रचलित घूस दर

वांछित पदघूस दर
प्रखंड विकास पदाधिकारी4-8 लाख
अंचलाधिकारी2-3 लाख
बंदोबस्त अधिकारी1-2 लाख
निगम बोर्ड में प्रबंध निदेशक3-5 लाख
मुख्य अभियंता8-15 लाख
अधीक्षण अभियंता8-10 लाख
कार्यपालक अभियंता5-8 लाख
सहायक अभियंता3-6 लाख
कनीय अभियंता2-4 लाख

नीचे का भ्रष्टाचार

राज्य में विकास के लिए निर्धारित राशि का एक बड़ा हिस्सा प्रखंडों में जाता है. प्रखंडों में भेजी जाने वाली इस राशि से विभिन्न प्रकार की योजनाएं क्रियान्वित की जाती हैं. प्रखंडों में राशि भेजने के उद्देश्य से उन्हें चार ग्रुपों में बांटा गया है. यह बंटवारा गांव की आबादी और उसके आकार के हिसाब से की गई है. ए श्रेणी में रखे जानेवाले प्रखंडों में औसतन ढाई से तीन करोड़ रुपए, बी श्रेणी में डेढ़ से दो करोड़ रुपए, सी श्रेणी में एक करोड़ रुपए और डी श्रेणी में औसतन 75 लाख रुपए की दर से खर्च होता है. यह रकम स्वास्थ्य व शिक्षा सहित अन्य स्थायी विभाग द्वारा प्रखंडों में खर्च की जाने वाली रकम को छोड़ कर है. अगर इस सारे विभागों से एक ब्लाॅक में विकास के लिए होने वाले सारे खर्चों को छोड़ दें, तो यह राशि औसतन प्रति ब्लाॅक सात करोड़ के बीच होगी.

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