25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Variety of Indian rice: कई तरह के चावल, कई तरह के स्वाद

जब भारतीय बासमती चावल की बात होती है, तो आमतौर पर इसके लंबे दाने वाली विशेषताओं का गुणगान होता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि हमारे देश के कई हिस्सों में बासमती के मुकाबले स्थानीय चावल की किस्मों को कहीं अधिक जायकेदार और पोषक माना जाता है. भारत के विभिन्न राज्यों में उगाई जाने वाली चावल की प्रजातियां न केवल विविधता से भरी हैं, बल्कि उनके स्वाद और गुणों की अपनी अनूठी पहचान है.

Variety of Indian rice: पुरानी कहावत है- ‘दाने-दाने पर लिक्खा है खाने वाले का नाम!’ पता नहीं, क्यों किसी ने इसी तर्ज पर यह नहीं कहा- ‘दाने दाने पर बसता है उसका स्वाद!’ इसकी याद हाल हमें दिलायी सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट’ में वनस्पति शास्त्री विभा वार्ष्णेय ने. जब कुछ मित्र भारतीय बासमती का गुण गान कर रहे थे, तो उन्होंने जैव विविधता की बात छेड़ी. हमारे देश के कई हिस्सों में सुवासित, लंबे दाने वाली इस महारानी की तुलना में स्थानीय चावल के दानों को कहीं अधिक जायकेदार समझा जाता है. बंगालियों के लिए गोविंद भोग के स्वाद का मुकाबला कोई दूसरा चावल नहीं कर सकता. पायेश हो, सोनार मूंग की दाल के साथ जुगलबंदी या बासंती पुलाव, इसी का स्थान सर्वोपरि है. बिहार तथा पूर्वांचल में काला जीरा की महिमा निराली है.

भिन्न राज्यों के स्थानीय चावल

छत्तीसगढ़ में चावल की कई प्रजातियां हैं, पर दूर्वराज से टक्कर लेने की हिम्मत किस धान में है? ओडिशा के आदिवासी इलाके में दुर्लभ हल्दी धान, अन्नदा के अलावा कई अन्य नाम और उनके बेहतरीन जायके स्थानीय लोगों की जुबान पर चढ़े हैं. मणिपुर में जंगली काला चिपकू चावल अद्भुत खीर के लिए प्रयोग होता है. इसी रंग का और मटमैला चावल केरल तथा तमिलनाडु में सेहत के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा है- सुपाच्य एवं अतिरिक्त प्रोटीन की मौजूदगी के कारण अधिक पौष्टिक. एक प्रजाति मापिली कहलाती है क्योंकि इस स्वादिष्ट चावल को दामाद को ही खिलाने के लिए भंडार में सुरक्षित रखा जाता था. मलयालम में महापिल्लै दामाद को कहा जाता है, मापिला और मोपला उसी शब्द के अपभ्रंश हैं. इसी तरह का लाल चावल हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड में भी पैदा किया जाता रहा है.

कुमाऊं के गुलाबी रंग के चावल का स्वाद

कुमाऊं के कलम इलाके में छोटे दाने के पकने के बाद गुलाबी रंग के चावल को ही बासमती नाम दिया जाता है. दाना लंबा नहीं होता, पर भात खुशबूदार होता है. यहां यह भी साफ करने की जरूरत है कि चावल की सूरत और सीरत में, इंसानों की ही तरह, बड़ा फर्क होता है. जरूरी नहीं कि लंबा, पकने के बाद भी अलग-अलग रहने वाला चावल ही स्वादिष्ट हो. बिरयानी में इसका जो मिथक गढ़ा गया है, उसकी बुनियाद टिकी है केसर, इत्र, इलायची, केवड़ा जल तथा जावित्री-जायफल जैसे खड़े मसालों पर. मांस या शाकाहारी यखनी (झोल) को भी न भूलिए, जिसमें महंगी बासमती दम पर पकायी जाती है. चूंकि इस व्यंजन को अभिजात्य वर्ग का भोजन माना जाता है, तो इसके स्वाद की मरीचिका में दुनिया अरसे से भटक रही है.

Also Read: 17 साल के करियर को छोड़ जेनी पिंटो ने खड़ा किया सस्टेनेबल ब्रांड ‘ऊर्जा’

बासमती का बाजार गर्म होने के साथ ही चावलों की जैव विविधता नष्ट होने लगी. मसलन तिलक चंदन का उल्लेख किया जा सकता है. उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश की तराई में इसकी फसल कुछ दशक पहले लहलहाती थी. फिर यह गायब हो गया. दो-चार साल पहले पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की सहायता से एक उद्यमी सिख किसान ने इसे पुनर्जन्म दिया है और इसका निर्यात भी आरंभ किया है. सार-संक्षेप यह है कि स्वाद पर सिर्फ बासमती का एकाधिकार नहीं. चावल के हर दाने का जायका और तासीर फर्क एवं अनूठे हैं.

Also Read: Janmashtami special: जीवन राग सिखाते हैं घनश्याम

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें