22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पाकिस्तान में शिया और सुन्नी एक दूसरे के खून के प्यासे, ये है जंग की वजह

Violence In Pakistan : पाकिस्तान का कुर्रम जिला जो सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान मुजाहिदीनों का लॉन्चिंग पैड था, आज एक बार फिर हिंसा की आग में दहक रहा है. वर्चस्व की लड़ाई में शिया मुसलमान बहुल इस क्षेत्र में सुन्नी अकसर उन्हें टक्कर देते रहते हैं. यहां की सरकारों ने भी सुन्नी आतंकवादी संगठनों का समर्थन ही किया है, हालांकि हिंसा की आग बढ़ जाने की वजह से यह क्षेत्र सरकार के लिए सिरदर्द बन चुका है और अब कोशिश यह की जा रही है कि इलाके में शांति स्थापित की जाए.

Violence In Pakistan : पाकिस्तान भारत का एक ऐसा पड़ोसी मुल्क है, जहां राजनीतिक हिंसा के साथ-साथ जातीय हिंसा की घटनाएं भी लगातार होती रहती हैं. इस तरह की हिंसा में अनगिनत लोग अपनी जान भी गंवाते हैं. हालिया मामलों की बात करें तो नवंबर महीने में पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा के कुर्रम इलाके में शिया-सुन्नी आपस में भिड़ गए और अबतक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.

पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार डॉन का दावा है कि कुर्रम में हिंसा की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है. यह इलाका पाकिस्तान के बनने से पहले भी अशांत रहा है. डॉन का दावा है कि 21 नवंबर को ताजा झड़पें शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच हुईं, जब मंडोरी के पास यात्री वाहनों पर घात लगाकर हमला किया गया. इस घटना में 44 शिया मुसलमान मारे गए. इस घटना का बदला लेने के लिए कुर्रम के बग्गन बाजार में आग लगा दी गई जिसमें करीब 40 लोग मारे गए.  इन इलाकों में सीजफायर का ऐलान हो चुका है बाजवूद इसके हिंसा जारी है. 26 नवंबर को शिया-सुन्नी विवाद में 10 लोग मारे गए और 21 घायल हैं. पुलिस ने इस बात की पुष्टि की है.  

कुर्रम में हिंसा का इतिहास क्या है?

खैबर पख्तूनख्वा राज्य के कुर्रम जिले में सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास काफी पुराना है. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले 1938 में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी, उस वक्त कुर्रम के आदिवासी अपने लोगों का समर्थन करने के वहां जाना चाहते थे. उस वक्त कुर्रम में उनकी इच्छा का सम्मान नहीं हुआ और अन्य समुदाय ने इसका विरोध किया, उसी वक्त से यहां सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई, जो बदस्तूर आज भी जारी है.

इन घटनाओं ने कुर्रम को बनाया जंग का मैदान

Copy Of Add A Heading 2024 11 28T151023.314
कुर्रम की 99 आबादी पश्तूनों की है. एआई इमेज

कुर्रम जिला जनजातीय बहुल है. इस जिले को ‘तोते की चोंच’ कहा जाता है क्योंकि इसकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार की है कि यह अफगानिस्तान से बिलकुल सटा है. काबुल से यहां की दूरी बहुत कम है. कुर्रम की सीमा पर ही ओसामा बिन लादेन का मुख्यालय भी था. जहां वह अपने लड़ाकों को प्रशिक्षण दिया करता था. इन पांच वजहों से कुर्रम में है अशांति. 

1. ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद उसे इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया. ईरान एक शिया बहुल देश है, जबकि सऊदी अरब में सुन्नी आबादी है. कुर्रम में शिया और सुन्नी का ही विवाद था, जिसे इन दोनों देशों ने भड़काया और यह एक युद्ध क्षेत्र बन गया. 

2. सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान कुर्रम मुजाहिदीनों का लॉन्चिंग पैड बना, जहां से उन्हें अफगानिस्तान भेजा जाता था. साथ ही युद्ध से भाग रहे सुन्नी लोगों के लिए यह शरणस्थली भी बना. जिसकी वजह से यहां आतंकवाद का जन्म हुआ.

Also Read : इस्कॉन को बांग्लादेश में बताया कट्टरपंथी, जानिए बुरे वक्त में स्टीव जॉब्स का पेट भरने वाली संस्था का इतिहास

संभल के जामा मस्जिद का क्या है सच ? जानिए क्या है इतिहासकारों की राय

विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए क्लिक करें

3. कुर्रम में शिया आबादी ज्यादा है, जबकि सुन्नी यहां अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं, जिसकी वजह से यहां कई आतंकवादी गुट पनपे जिनका उद्देश्य शिया आबादी को खत्म करना है. शिया विरोधी पाकिस्तानी तालिबान (टीटीपी) जैसे आतंकवादी गुट इसका प्रमाण हैं.

4. कुर्रम क्योंकि जनजातीय इलाका था, इसलिए 1947 के बाद इन इलाकों को संघ प्रशासित जनजातीय क्षेत्र बनाया गया, जहां सीधे केंद्र के कानूनों के हिसाब से शासन चलता था. लेकिन धीरे-धीरे यहां हिंसा इतनी बढ़ती गई कि 2018 में इन जनजातीय क्षेत्रों को जिनमें कुर्रम भी शामिल था, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत का हिस्सा बना दिया गया. इनमें सात जनजातीय जिले शामिल थे. इन जनजातीय क्षेत्रों के लोगों और सांसदों ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था. उनका यह मानना था कि जनजातीय क्षेत्रों का अलग राज्य बनाया जाए. इसकी वजह से भी यहां तनाव लगातार बढ़ा है.

क्या है हिंसा का ताजा मामला

कुर्रम में हिंसा का ताजा जमीन विवाद से जुड़ा है. विवाद में शिया और सुन्नी समुदाय शामिल है. पाकिस्तान की आबादी का लगभग 80 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान हैं. कुर्रम जिले की आबादी 7.85 लाख  है (2023 की जनगणना के अनुसार). इनमें से 99% पश्तून हैं जो तुरी, बंगश, जैमुश्त, मंगल, मुकबल, मसुजाई और परचमकानी जनजातियों से संबंधित हैं. जिले की कुल आबादी का 45 हिस्सा शिया मुसलमानों का है. शिया मुसलमान कुर्रम के ऊपरी हिस्से में रहते हैं, जबकि निचले और मध्यम भागों पर सुन्नियों का कब्जा है. शिया समुदाय में शिक्षा स्तर बेहतर है. इनके बीच लड़ाई की वजह प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे को लेकर है. ब्रिटिश काल में इन क्षेत्रों पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए उन्होंने कुछ जनजातियों को फायदा पहुंचाया और उनके नाम पट्टे कर दिये, जिसकी वजह से आपसी तनाव बढ़ा.

शिया और सुन्नी मुसलमान में क्या है फर्क

Copy Of Add A Heading 2024 11 28T150553.259
इस्लाम के दो पंथ शिया और सुन्नी के बारे में बताती तस्वीर

इस्लाम धर्म को मानने वालों की दो शाखाएं हैं. एक को शिया और दूसरे को सुन्नी कहा जाता है. पूरे विश्व में मुसलमानों की कुल आबादी का 85 प्रतिशत सुन्नी और 15 प्रतिशत शिया समुदाय से हैं. इन दोनों संप्रदायों के बीच जो मुख्य अंतर है वह पैगंबर मोहम्मद साहब के उत्तराधिकार को लेकर है. 632 ई में पैगंबर मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर उनके अनुयायियों में मतभेद हुआ, क्योंकि मोहम्मद साहब का कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं था. मोहम्मद साहब ने अपने उत्तराधिकारी के बारे में कुछ घोषणा भी नहीं की थी. यही वजह था कि विवाद हुआ. एक पक्ष यह मानता था कि उत्तराधिकारी का चुनाव आम सहमति से हो, जबकि दूसरा पक्ष सिर्फ पैगंबर के वंशजों को ही उनका उत्तराधिकारी बनना चाहता था. पहले पक्ष को इस विवाद में जीत मिली और पैगंबर के करीबी दोस्त अबू बकर को उनका उत्तराधिकारी और इस्लाम का पहला खलीफा चुना गया. यह संप्रदाय सुन्नी के रूप में जाना जाता है. दूसरा पक्ष जो पैगंबर के वंशजों को उनका उत्तराधिकारी बनना चाहता था उसे शिया संप्रदाय के रूप में जाना जाता है.  

Also Read : डोनाल्ड ट्रंप की कैबिनेट में इन 3 वजहों से मिल रही जगह, जानिए कौन हैं टीम में शामिल कैरोलिन लेविट

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें