Who After Sitaram Yechury: देश के सबसे बड़े वामपंथी दल भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) यानी माकपा का नया मुखिया चुनने के लिए केंद्रीय कमेटी की बैठक जारी है. केंद्रीय कमेटी में मंथन के बाद पार्टी के टॉप लीडर सीताराम येचुरी के निधन के बाद महासचिव की खाली कुर्सी के लिए पोलित ब्यूरो की बैठक में अंतिम मुहर लगाई जाएगी. इसकी घोषणा 30 सितंबर की शाम तक हो सकती है. फिलहाल माकपा के कार्यवाहक महासचिव की घोषणा होगी. कार्यवाहक महासचिव का कार्यकाल अप्रैल तक रहेगा. दो से छह अप्रैल 2025 तक मदुरै में होने वाले अगले पार्टी कांग्रेस में नए महासचिव की घोषणा होनी है.
Who After Sitaram Yechury: किसके हाथ होगी लाल कमान?
माकपा का महासचिव बनना केवल किसी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखिया होना मात्र नहीं है, बल्कि देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी होने के नाते एक तरह से भारत के पूरे संसदीय वामपंथ के कमान थामने जैसा है, लंबे समय तक देश के तीन राज्यों में सरकार चला चुकी माकपा आज भी केरल जैसे राज्य की सरकार चला रही है. इस कारण अपना नया मुखिया चुनने में माकपा नेता काफी मंथन कर रहे हैं.
फिलहाल माकपा के रणनीतिकारों की नजर अपने तीन उभरते सितारों पर है. अब इन तीनों की आजमाइश की जाएगी कि इनमें से कौन लाल झंडे को सबसे ऊंचा उठा सकता है. इसी पर मंथन जारी है. माकपा में फिलहाल जो नेता नेतृत्व की दौड़ में आगे दिख रहे हैं, वे हैं मो. सलीम, वृंदा करात और माणिक सरकार.
मो. सलीम का नाम सबसे आगे चल रहा है. वे पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के सचिव भी हैं. इसके अलावा केंद्रीय कमेटी और पोलित ब्यूरो के सदस्य भी है. वे सांसद भी रहे हैं. उनके पास सांगठनिक और प्रशासनिक दोनों अनुभव है. हिंदी और बांग्ला सहित कई भाषाओं में बोलने में भी दक्ष हैं. वहीं वृंदा करात पार्टी के पूर्व महासचिव प्रकाश करात की पत्नी हैं और माकपा का नारी चेहरा हैं. वे विचारधारा के आधार पर मुखर पार्टी नेताओं में शुमार की जाती हैं. पार्टी नेतृत्व के लिए माणिक सरकार के नाम पर भी विचार किया जा रहा है. माणिक सरकार लंबे समय तक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे हैं. वे पार्टी के सौम्य चेहरा हैं. उन्हें सादगी पसंद कम्युनिस्ट नेताओं में शुमार किया जाता है.
Who After Sitaram Yechury: गठबंधन की राजनीति से जूझने की होगी चुनौती?
यों तो माकपा नेतृत्व के लिए विचारधारा की कसौटी पर 24 कैरेट खरे नेता की तलाश की जा रही है. परंतु नए माकपा महसचिव की सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन राजनीति से जूझने और अपने लिए अधिक से अधिक हिस्सेदारी लेने की होगी. भाजपा के विरोध में इंडिया गठबंधन से तारतम्य बैठाने के लिए कई जगह वैचारिक आग्रह को किनारे कर कांग्रेस पार्टी के साथ सामंजस्य बैठाना होगा. इस पूरी प्रक्रिया में पार्टी के अंदर और बाहर भी नए महासचिव को काफी विरोध झेलने पड़ सकते हैं.
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