Jaya Amitabh Bachchan : राज्यसभा की सांसद जया अमिताभ बच्चन शुक्रवार सदन में फिर गुस्सा हो गईं. उनकी नाराजगी की वजह इस बार राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ थे. जया बच्चन संसद के मानसून सत्र में लगातार यह कह रही हैं कि उन्हें जया बच्चन कहकर ही पुकारा जाए, कोई जरूरी नहीं है कि उन्हें उनके पति के नाम के साथ ही बुलाया जाए. यह विवाद तब शुरू हुआ जब सदन में उपसभापति हरिवंश मौजूद थे और उन्होंने जया बच्चन से किसी मसले पर बोलने के लिए कहा और उनका नाम जया अमिताभ बच्चन ले लिया.
महिलाओं की स्वतंत्र पहचान और उपलब्धियां हैं : जया बच्चन
जया बच्चन जब बोलने के लिए खड़ी हुईं तो उन्होंने कहा कि सर अगर आप सिर्फ जया बच्चन भी कह देते तो कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन आजकल यह चलन हो गया है कि महिलाएं अपने पति के नाम से ही जानी जाएं. जैसे उनकी अपनी कोई उपलब्धि ही नहीं है. इसपर उपसभापति हरिवंश ने कहा कि यहां पूरा नाम यही लिखा था तो मैंने कह दिया, आपकी अपनी उपलब्धि है. उसके बाद से सदन में चेयर की ओर से रोज जया बच्चन को जया अमिताभ बच्चन ही बुलाया जा रहा है. शुक्रवार को भी जब सभापति जगदीप धनखड़ ने उन्हें जया अमिताभ बच्चन पुकारा, तो जया बच्चन ने उनके बोलने के तरीके पर आपत्ति जताई जिससे सभापति नाराज हो गए और उन्होंने यह तक कहा कि आप सेलिब्रिटी होंगी लेकिन यहां आपको मर्यादा का पालन करना होगा.
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परंपराओं के अनुसार लिया जाता पिता या पति का नाम
यहां सवाल यह है कि आखिर जया बच्चन, जया अमिताभ बच्चन कहने से नाराज क्यों हुई? जया बच्चन को आपत्ति इस बात को लेकर है कि उनकी पहचान पति से अलग भी है और वे राज्यसभा सांसद हैं तो अपने बलबूते पर हैं, पति के नाम की वजह से नहीं. दरअसल भारतीय समाज में एक महिला की पहचान जन्म के बाद उसके पिता के नाम से और शादी के बाद उसके पति से ही उसकी पहचान होती थी, लेकिन यह पुराने समय की बात है. आज महिलाएं अपने बूते अपनी पहचान बनाती हैं और समाज में प्रतिष्ठा पाती हैं. यहां यह जानना आवश्यक है कि हमारे देश में नाम को लेकर क्या है कानून और परंपराएं.
महिलाओं का अपमान है उसकी उपलब्धियों को नकारना : किरण
सोशल एक्टिविस्ट और महिला अधिकारों के लिए सक्रिय किरण कहती हैं कि जया बच्चन के नाम में अमिताभ बच्चन का बच्चन लगा होना काफी नहीं है क्या कि जया अमिताभ बच्चन कहना पड़ रहा है. एक शक्तिशाली महिला जो अपने काम की वजह से संसद तक पहुंची हैं, उनकी उपलब्धियों को इस तरह दरकिनार करना उचित नहीं है. यह उस महिला का अपमान है. पितृसत्तामक सोच इसके लिए जिम्मेदार है, जो एक महिला को अपने बूते खड़ा देखना नहीं चाहता है. जब जया बच्चन बार-बार विरोध कर रही हैं, तब भी उनकी बातों को ना सुना जाना बहुत ही गलत है. मनुस्मृति में यह भले ही कहा गया हो कि महिलाओं की पहचान बचपन में पिता से, जवानी में पति से और बुढ़ापे में बेटे से होगी,लेकिन आज हम संविधान के अनुसार जीते हैं, जहां स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं.
पिता, पति या गांव का नाम लिखना कानूनन जरूरी नहीं
किसी महिला के नाम को लेकर कानून क्या कहता है इसपर अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्रा बताते हैं कि इस संबंध में कोई कानून नहीं है, यह परंपराओं के अनुसार ही गाइड होता रहा है. स्त्री-पुरुष उसी नाम से जाना जाता है जो उसके 10वीं बोर्ड के प्रमाणपत्र में लिखा होता है. हां अगर कोई व्यक्ति अपने नाम में बदलाव लाना चाहता है, तो वह फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के पास शपथ लेकर अपना नाम बदल सकता है. जिस दिन उसके नाम से शपथपत्र बन जाएगा वह व्यक्ति अधिकारिक रूप से उस नाम से भी जाना जाएगा. चाहे स्त्री हो या पुरुष किसी के लिए भी यह जरूरी नहीं है कि वह अपने नाम के साथ अपने पिता, पति या गांव का नाम लिखे. जया बच्चन को संसद में जया अमिताभ बच्चन कहकर इसलिए पुकारा जा रहा है क्योंकि नाॅमिनेशन के दौरान उन्होंने अपना वही नाम लिखा है. संसद की वेबसाइट पर भी उनका वही नाम आ रहा है, इसलिए इसमें आपत्तिजनक कुछ भी नहीं है. महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों में बच्चे को अपने पिता, पति और गांव का नाम भी लिखना पड़ता है, लेकिन यह महज परंपराएं हैं, इनका कानून से कोई वास्ता नहीं है.