World Day Against Child Labour 2024: उत्तर बिहार में चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग नेटवर्क सक्रिय
दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, पश्चिमी चंपारण, और सीतामढ़ी बिहार के उन 13 जिला की सूची में शामिल हैं जिनमें बाल श्रम का करीब 55% हिस्सा है.
” हमें जयपुर में लाख की चूड़ी बनाने के एक फैक्ट्री में ले जाया गया था. हमसे आधी रात तक लगातार काम करवाया जाता था. काम खराब होने पर मारा पीटा जाता था. खाने को खाना भी भरपेट नहीं मिलता था’ ‘ रेस्क्यू हुए किशोर की आपबीती इस बात की गवाह है कि चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग के नेटवर्क कितना बड़ा और भयानक है. छह महीने से अन्य साथियों के साथ चूड़ी फैक्ट्री में काम करते रहे किशोर की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा है. प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर बिहार में चाइल्ड लेबर में कमी नहीं हो पा रही है. राज्य सरकार इससे निपटने के लिए संघर्ष कर रही हैं. हॉटस्पॉट चिह्नित कर निगरानी प्रणाली स्थापित की गई है. बावजूद इसके दरभंगा, समस्तीपुर, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी और पूर्वी, पश्चिम चंपारण से बालश्रम के लिए बच्चों की आवाजाही जारी है.
मुजफ्फरपुर, वैशाली और दरभंगा के बच्चे छुड़ाए
चाइल्ड ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था ‘सेंटर डायरेक्ट’ (डीआईआरसीटी) के कार्यकारी निदेशक सुरेश कुमार बताते हैं कि हमने जयपुर जाकर चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग का शिकार बच्चों को बचाया है. रेस्क्यू किए गए 61 बच्चे 19 जून को बिहार के लिए रवाना होंगे. इनमें मुजफ्फरपुर के तीन , वैशाली और दरभंगा के दो- दो बच्चे हैं. वहीं, 29 बच्चों की रेस्क्यू के बाद की प्रक्रिया पूरी की जा रही है. वह भी जल्द बिहार लाए जायेंगे. यह बच्चे दिसंबर 2023 से जयपुर में फंसे हुए थे.
जयपुर के लिए हर साल 5,000 से अधिक बच्चों की तस्करी
दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, पश्चिमी चंपारण, और सीतामढ़ी बिहार के उन 13 जिला की सूची में शामिल हैं जिनमें बाल श्रम का करीब 55% हिस्सा है. खुफिया एजेंसियों के अनुमान के अनुसार, लॉकडाउन हटने के बाद से हर साल 5,000 से अधिक बच्चों को जयपुर में तस्करी करके लाया जा रहा है. इन बच्चों को भट्टा बस्ती, शास्त्री नगर, कोतवाली, जालूपुरा, संजय सर्किल, आमेर ब्रह्मपुरी रामगंज, और गलता गेट जैसे उत्तरी जयपुर के इलाकों में चूड़ी बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम कराया जाता है.
बीते साल 12 जून को जयपुर स्थित भट्टाबस्ती से 22 मासूमों को पुलिस और एक बाल संस्था ने रेस्क्यू किया था. इन बच्चों को बंधक बनाकर लाख के गहने बनवाए जा रहे थे. मासूमों से दिन के 18 घंटे काम करवाया जाता है. खाने में सिर्फ दो बार खिचड़ी दी जाती है. जांच में पता चला था कि माता- पिता को 500-500 रुपये देकर बिहार से जयपुर लाया गया था. प्रत्येक राज्य में कम से कम 50 प्रतिशत पुलिस थानों में मानव तस्करी विरोधी इकाइयां होनी चाहिए, लेकिन उत्तर बिहार के जिले इस मामले में बहुत पीछे रह गए हैं.
सुरेश कुमार , कार्यकारी निदेशक ‘सेंटर डाइरेक्ट ‘
ट्रैफिकर ने अपना पैटर्न बदला
चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग के खिलाफ काम करने वाली एक संस्था के लिए तिरहुत और दरभंगा प्रमंडल में सक्रिय पंकज मिश्रा बताते हैं कि जयपुर की चूड़ी फैक्टी अब लाइमलाइट में आ गयी हैं. ट्रैफिकिंग गैंग ने अपना पैटर्न बदला है. वह अब यूपी के मुरादाबाद और दिल्ली की इकाइयों को चाइल्ड लेबर उपलब्ध करा रहे हैं. ट्रैफिकर परिवार के सदस्यों के नजदीकी बनाते हैं. महाजन से कर्ज लेकर आर्थिक संकट में फंसे परिवार के बच्चे उनका उनका आसान शिकार हैं. दूसरा शिकार पढ़ाई छोड़ चुके गरीब बच्चे हैं. इनको मजदूरी से अच्छे कपड़े मोबाइल आदि खरीदने की लालसा जगाकर बालश्रमिक के रूप में तैयार करते हैं. मुजफ्फरपुर और दरभंगा ट्रांजिस्ट प्वाइंट बन गया है. वैशाली के पातेपुर में सबसे अधिक बच्चे शिकार हो रहे हैं.