World News: Bangladesh Crisis : निरंतर घट रही है हिंदू आबादी, जानिए बांग्लादेश की स्थापना के समय कितने हिंदू रहते थे यहां
बांग्लादेश अपनी स्थापना के समय एक गैर-सांप्रदायिक देश था और यहां सबको समान अधिकार प्राप्त थे. फिर भी हिंदुओं की आबादी में निरंतर कमी आती गयी. जानते हैँ क्या रहे हिंदुओं की जनसंख्या में कमी के कारण.
World News: ऐतिहासिक रूप से देखें, तो बंगाली भाषी क्षेत्र में, जिसे तब पूर्वी बंगाल कहा जाता है और जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है, जनसंख्या का बड़ा हिस्सा हिंदुओं का था. पिछली शताब्दी की शुरुआत में, हिंदू इस क्षेत्र की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा (33 प्रतिशत) हुआ करते थे. हालांकि तब से लेकर अब इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव आया है. आजादी के बाद की बात करें, तो पाकिस्तान सरकार की 1951 की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र में, जो तब पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था, हिंदुओं की जनसंख्या कुल आबादी का 22 प्रतिशत थी. जबकि महज दस पूर्व, यानी 1941 की भारत सरकार की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, यहां हिंदुओं की आबादी 28 प्रतिशत थी. वर्ष 1941 में जहां इस बंगाली भाषी क्षेत्र में हिंदुओं की जनसंख्या एक करोड़, एक लाख थी, वह 1951 में गिरकर लगभग 90 लाख पर आ गयी थी. यह बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी गिरावट को दर्शाता है. वर्ष 1961 की जनगणना में इस क्षेत्र के हिंदुओं की संख्या में फिर कमी आयी और वह घटकर 18.5 प्रतिशत पर आ गयी. वर्ष 1971 में बांग्लादेश के उदय के बाद 1974 में हुई जनगणना में एक बार फिर से हिंदुओं की संख्या कम होकर 13.5 प्रतिशत पर आ गयी. बांग्लादेश बनने के बाद भी यहां हिंदुओं की जनसंख्या में निरंतर गिरावट जारी है.
हिंदुओं की आबादी का वर्षवार तुलनात्मक आंकड़ा
कुल जनसंख्या में भागीदारी (प्रतिशत में)
- 1974 : 13.5
- 1981 : 12.1
- 1991 : 10.5
- 2001 : 9.6
- 2011 : 8.5
- 2022 : 8
स्रोत : विभिन्न रिपोर्ट पर आधारित
हिंदुओं की संख्या में कमी के लिए अनेक कारण हैं जिम्मेदार
जनसंख्या विशेषज्ञों की मानें, तो प्रति 10 वर्ष में बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या में 15 लाख की कमी आ रही है.
- हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की रिपोर्ट कहती है कि 1964 और 2013 के बीच धार्मिक उत्पीड़न और असहिष्णुता के कारण 1.13 करोड़ हिंदू बांग्लादेश छोड़कर चले गये. प्रतिवर्ष दो लाख, तीस हजार हिंदू बांग्लादेशी यहां से पलायन कर जाते हैं.
- हिंदुओं की संख्या में आयी कमी के लिए जहां प्रवासन जिम्मेदार है, वहीं इसके दूसरे कारणों में प्रजनन दर में कमी और उच्च मृत्यु दर है.
- बहुत से बांग्लादेशी हिंदू मानते हैं कि संविधान में निहित संपत्ति अधिनियम ही हिंदुओं के यहां से प्रवासन का प्रमुख कारण है. पाकिस्तान सरकार ने 1965 युद्ध के दौरान इस कानून को लागू किया था. भारत के साथ पाकिस्तान का यह युद्ध तो 17 दिनों में समाप्त हो गया था, परंतु आज भी यह कानून संविधान में बना हुआ है. इस कानून के कारण हजारों हिंदू परिवारों को इस देश में अपनी ही संपत्ति से हाथ धोना पड़ा और उन्हें अपने घर से बेदखल होना पड़ा.
1971 का युद्ध और पलायन
वर्ष 1971 में हुए बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के नरसंहार से त्रस्त एक करोड़ लोगों ने भारत में शरण ली थी. इनमें से बड़ी संख्या हिंदुओं की थी.
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- वर्ष 1990 में भारत में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से क्रोधित बांग्लादेशी मुसलमानों ने वहां के हिंदुओं पर हमले शुरू कर दिये थे, सो जान बचाने के लिए कई हिंदुओं ने भारत में शरण ली.
- इसी तरह की हिंसा 2001 में हुए संसदीय चुनाव के दौरान और उसके बाद हुई, जिसने अल्पसंख्यकों को पलायन के लिए विवश किया.
- विगत कुछ वर्षों में सोशल मीडिया पोस्ट ने भी देश में दंगों को भड़काने में अहम भूमिका निभायी है. वर्ष 2012 में एक युवा के सोशल मीडिया पोस्ट से बौखलाये लोगों ने रामू, उखिया और पटिया में बौद्ध मंदिरों को आग के हवाले कर दिया था.
- अक्तूबर 2021 में दुर्गा पूजा के दौरान उपद्रवियों ने न केवल मंदिर और मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया, बल्कि कई हिंदुओं की जान भी ले ली.
धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश ऐसे बना इस्लामिक देश
वर्ष 1971 में बांग्लादेश का उदय गैर-सांप्रदायिक भावना के साथ हुआ था और यहां हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई समेत सभी धर्म के लोगों को समान अधिकार दिया गया था. वर्ष 1972 में धर्मनिरपेक्षता एक प्रमुख स्तंभ के रूप में संविधान में समाहित था, परंतु विवादित निहित संपत्ति अधिनियम (वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट), जो पाकिस्तान की संविधान में विद्यमान था, उसे वैसे ही रहने दिया गया. अल्पसंख्यकों को समान अधिकार देने वाले देश के संविधान में पहला बदलाव 1977 में हुआ. इस बदलाव में पांचवें संशोधन के तहत संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटा दिया गया. इसके 11 वर्ष बाद जून 1988 में इस्लाम को देश का धर्म घोषित किया गया. इस बदलाव का अनेक राजनीतिक दलों व नागरिक संस्थानों द्वारा विरोध किया गया. हालांकि ये दोनों ही बदलाव सैन्य शासन के तहत किये गये थे, परंतु इसके बाद आयी एक भी लोकतांत्रिक सरकार ने इसे बदलने का प्रयास नहीं किया, ताकि पूर्व की तरह देश की गैर-सांप्रदायिक स्थिति बहाल की जा सके.