World News : बीते वर्ष सात अक्तूबर को फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास द्वारा इस्राइल पर किये गये हमले व इस्राइली नागरिकों को बंधक बनाने के बाद से शुरू हुआ युद्ध अब तक जारी है. शांति बहाली की तमाम कोशिशें असफल साबित हुई हैं. अब यह युद्ध हमास-इस्राइल से आगे बढ़ गया और इसमें इस क्षेत्र के तमाम देशों के साथ यहां सक्रिय अनेक चरमपंथी संगठन भी शामिल हो चुके हैं. पश्चिमी जगत भी परोक्ष रूप से इसमें शामिल है. इससे पश्चिम एशिया में संकट गहरा गया है, साथ ही भू-राजनीतिक चिंताएं भी बढ़ गयी हैं.
इस्राइल-हमास संघर्ष में इन देशों की है महत्वपूर्ण भूमिका
पश्चिम एशिया इन दिनों अशांति के दौर से गुजर रहा है. इस्राइल और हमास के बीच छिड़े युद्ध के बाद इस क्षेत्र के कई देश फिलिस्तीन व हमास के समर्थन में उतर आये हैं, वहीं कई इस्राइल के समर्थन में भी हैं. वहीं कुछ देश युद्धविराम के लिए भी प्रयास कर रहे हैं.
इस्राइल : सात अक्तूबर को हमास द्वारा इस्राइल पर हमला करने के बाद से ही इस्राइल इस क्षेत्र में अनके मोर्चों पर लड़ रहा है. हालांकि इस यहूदी राष्ट्र को अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे पश्चिमी व कुछ अरब देशों का भी समर्थन मिल रहा है. विदित हो कि अपनी स्थापना के समय से ही इस्राइल इस क्षेत्र के अनेक देशों के साथ संघर्षरत है.
फिलिस्तीन : फिलिस्तीन के साथ इस्राइल का युद्ध भी तब से चल रहा है जब से इस क्षेत्र (इस्राइली व फिलिस्तीनी क्षेत्र) को इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच बांट दिया गया और इस्राइल ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया. हालांकि इस क्षेत्र के अधिकांश देश फिलिस्तीन के साथ हैं.
ईरान : इस देश ने अतीत में अनेक चरमपंथी समूहों द्वारा इस्राइल पर हमला करवाया है. पर हाल के महीनों में इसने इस्राइल पर प्रत्यक्ष रूप से कई हमले किये हैं. हालिया हमला एक अक्तूबर को किया गया. इस दिन ईरान ने हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्ला की हत्या और तेहरान में शीर्ष हमास नेता इस्माइल हानियेह की हत्या के प्रतिशोध में इस्राइल पर 200 मिसाइलें दागीं.
सीरिया : चूंकि अब ईरान खुलकर इस्राइल के खिलाफ खड़ा हो गया है, सो सीरिया की भूमिका भी यहां महत्वपूर्ण हो जाती है. सीरिया में ईरान समर्थित अनेक चरमपंथी समूह फल-फूल रहे हैं, जो इस्राइल की मदद करने के कारण अमेरिका से नाराज हैं और उसके सैन्य ठिकानों पर दर्जनों हमले करते रहे हैं.
इराक : रॉयटर्स की रिपोर्ट की मानें, तो कई इराकी सशस्त्र समूहों ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका इस्राइल पर हुए ईरानी आक्रमण का जवाब देता है या इस्राइल तेहरान के खिलाफ इराकी हवाई क्षेत्र का उपयोग करता है, वे इराक स्थित अमेरिकी ठिकानों पर हमला करने से गुरेज नहीं करेंगे.
तुर्की : गाजा युद्ध की शुरुआत के बाद से तुर्की ने हमास के प्रति गर्मजोशी दिखाई है और कई घायल फिलिस्तीनियों को इलाज के लिए एयरलिफ्ट किया है. इस वर्ष के आरंभ में तुर्की और इस्राइल के बीच तनाव तब चरम पर पहुंच गया जब तुर्की ने इस्राइल की जासूसी एजेंसी मोसाद के 30 सदस्यों को गिरफ्तार करने का दावा किया.
लेबनान : इस्राइल और लेबनान के बीच हमेशा से तनातनी रही है. माना जाता है कि लेबनान स्थित चरमपंथी समूह हिजबुल्लाह द्वारा इस्राइल पर हमले के जवाब में इस्राइल ने हिजबुल्लाह के कमांडर व उसके प्रमुख को बेरूत में मारा डाला. दूसरी बात यह कि लेबनान के ईरान के साथ अच्छे संबंध है और इस समय इस्राइल-ईरान के बीच फिलिस्तीन को लेकर भी एक दूसरा मोर्चा खुल गया है.
जॉर्डन : इस्राइल के साथ संघर्ष शुरू होने के बाद भले ही जॉर्डन ने गाजा को सहायता भेजी है, पर उसने इस्राइल के साथ भी राजनयिक संबंध बनाये रखा है, जिसके साथ उसने 1994 में शांति संधि पर हस्ताक्षर किया था.
मिस्र व कतर का युद्धविराम का प्रयास : जॉर्डन की तरह मिस्र के भी इस्राइल के साथ कूटनीतिक रिश्ते कायम हैं. कतर के साथ मिस्र भी हमास और इस्राइल के बीच युद्धविराम कराने के लिए प्रयासरत है, पर अब तक इसमें सफलता नहीं मिल पायी है.
पश्चिमी देशों का रुख : इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमेरिका पूरी तरह इस्राइल का समर्थन करता है. गाजा में मानवीय सहायता भेजने के साथ ही वह संकट की इस घड़ी में इस्राइल के साथ दृढ़ता से खड़ा है. ब्रिटेन भी इस्राइल के साथ खड़ा है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने कहा है कि उनका देश इस्राइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता है. फ्रांस भी इस्राइल की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और ईरानी खतरे से निपटने के लिए वह पश्चिम एशिया में सैन्य संसाधन भेज रहा है. जर्मनी इस्राइल का पुराना सहयोगी है और वह इस्राइल के साथ है. हालांकि गाजा पर हमले को लेकर ईयू और इस्राइल के बीच तनातनी बढ़ रही है.
चरमपंथी समूहों की मौजूदगी
हमास : इस्राइल और गाजा के बीच दशकों से संघर्ष चल रहा है. वह फिलिस्तीन की आजादी के लिए इस्राइल से युद्ध लड़ रहा है. हालांकि इसका प्रभाव पूरे फिलिस्तीन पर नहीं है, केवल गाजा पट्टी में है.
हूथी विद्राही : हूथी विद्रोही यमन के अल्पसंख्यक शिया ‘जैदी’ समुदाय का एक हथियारबंद समूह है. इनका यमन के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण है और इन्हें ईरान का समर्थन प्राप्त है. ये विद्राही हमास-इस्राइल के बीच शुरू हुए संघर्ष के बाद न केवल इस्राइल बल्कि उसके समर्थक देशों के लाल सागर से गुजरने वाले मालवाहक जहाजों को भी निशाना बना रहे हैं.
हिजबुल्लाह समूह : लेबनान स्थित इस शिया इस्लामवादी राजनीतिक व उग्रवादी समूह के ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. इस समूह की स्थापना इस्राइली आक्रमण से लड़ने के लिए ही हुई थी. वर्तमान में इस्राइल के साथ इसके संघर्ष तेज हो चुके है.
इराक और सीरिया के विद्रोही संगठन : इन दोनों देशों में भी शिया मिलिशिया समूह हैं, जिन्हें खड़ा करने में ईरान ने सहायता की है. इन समूहों में इराक का ब्रदर ऑर्गनाइजेशन, कातएब हिजबुल्लाह शामिल हैं. ये समूह अमेरिका और इस्राइल के विरुद्ध काम करते हैं.