बस किसी तरह ख़ुश रहना सीख लो

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार,आलोचक और संपादक सुशील सिद्धार्थ का जन्म 2 जुलाई 1958, भीरा,बिसवां(सीतापुर, उ.प्र.) में हुआ. इन्होंने हिंदी साहित्य में पीएचडी किया है. प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. वे चर्चित स्तंभ लेखक हैं साथ ही मीडिया लेखन व अध्यापन करते हैं. प्रमुख प्रकाशित कृतियां है:- प्रीति न करियो कोय,मो सम कौन,नारद की चिंता,मालिश महापुराण,हाशिए का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2017 5:00 PM
an image

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार,आलोचक और संपादक सुशील सिद्धार्थ का जन्म 2 जुलाई 1958, भीरा,बिसवां(सीतापुर, उ.प्र.) में हुआ. इन्होंने हिंदी साहित्य में पीएचडी किया है. प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. वे चर्चित स्तंभ लेखक हैं साथ ही मीडिया लेखन व अध्यापन करते हैं. प्रमुख प्रकाशित कृतियां है:- प्रीति न करियो कोय,मो सम कौन,नारद की चिंता,मालिश महापुराण,हाशिए का राग,सुशील सिद्धार्थ के चुनिंदा व्यंग्य ( व्यंग्य संग्रह) दो अवधी कविता संग्रह. संपादित पुस्तकें: पंच प्रपंच,व्यंग्य बत्तीसी(व्यंग्य संकलन) श्रीलाल शुक्ल संचयिता,मैत्रेयी पुष्पा रचना संचयन,हिंदी कहानी का युवा परिदृश्य(3 खंड) . किताबघर प्रकाशन की सीरीज़ ‘ व्यंग्य समय ‘ में परसाई,शरद जोशी,श्रीलाल शुक्ल, रवींद्र नाथ त्यागी,मनोहरश्याम जोशी, नरेंद्र कोहली और ज्ञान चतुर्वेदी के चयनित व्यंग्य की छः किताबें . व्यंग्य और अवधी कविता के लिए दो दो बार उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान से नामित पुरस्कार. स्पंदन आलोचना सम्मान.अवधी शिखर सम्मान आदि. संपर्क : संपादक, किताबघर प्रकाशन,24 अंसारी रोड,दरियागंज,दिल्ली-2, मोबाइल: 09205016603, ईमेल:sushilsiddharth@gmail.com

-सुशील सिद्धार्थ-

अपनी लहलहाती फसल को देखकर जो आनंद एक किसान को मिलता है,अपने घोड़े को देखकर जो आनंद बाबा भारती को मिला था, वही आनंद मुझे किलबिलाता देखकर डॉक्टर को मिल रहा था. मैं उसकी फसल था. नकदी फसल. मैं उसका घोड़ा था. उसकी ऐशोआराम की सवारी को ढोने वाला. मैं उसका भरोसेमंद मरीज़ था. उसका और उसकी बिरादरी का भरोसा बनाये रखने के लिए मैं मुस्तैदी से बीमार रहता था. अगर कभी चूक गया तो बिरादरी मुझे अचूक एहसास करा देती थी कि मैं बीमार होने की योग्यता रखता हूं.

इस कारण मासूम और मानवतावादी डॉक्टर बहुत देर तक जांच रिपोर्टें देखता रहा. इस बीच, जैसा कि मुहावरा है,उसके चेहरे पर कई भाव आये और गये. मैं कमबुद्धि आदमी हूं. यह समझ न सका कि भाव आये कहां से और चले कहां गये. शायद पैथालॉजी से आये और उसके अकाउंट में चले गये. ऐसा मेरा अनुमान है. इस अनुमान के पीछे मेरी पाप भावना हो तो ईश्वर मुझे क्षमा करे. डॉक्टर क्षमा नहीं करेंगे,इसलिए उनके लिए नहीं कह सका. वे तो ‘चंद्र टरै सूरज टरै टरै जगत ब्योहार,पै दृढ़ श्री हरिचंद कौ टरै न सत्य विचार ‘ में भरोसा करते हैं. कुछ भी विचलित हो जाए, वे पेमेंट से विचलित नहीं होते. इसी वचन का पालन करते हुए उन्होंने कई बार मुर्दे को भी गिरफ्तार रखा है.पूरा भुगतान मिलने के बाद ही रिहाई दी है.यही डॉक्टर संस्कृति और सत्य के रक्षक हैं.ऐसे करुणानिधानों को ही भगवान कहा जाता है.

वैसे भी डॉक्टर के लिए मेरा क्या कहना और क्या न कहना. मेरा अब तक का जीवन ऐसे ही बीता है. मेरी हैसियत एक दर्शक और श्रोता की है.और कहने में संकोच क्या कि अच्छी हैसियत है. मैं हर सभा में बुलाया जाता हूं. आस्था से सुनता हूं.श्रद्धा से थपोड़ी पीटता हूं.अहोभाव से सिर हिलाता हूं. देखते और सुनते हुए तुम्हारे मन में कोई विचार व प्रतिक्रिया पैदा न हो,यह शिक्षा मुझे मेरे उस्ताद ने दी थी. यह शिक्षा मेरे बहुत काम आई. उस्ताद अब नहीं है वे शहित में काम आए.किस्सा मुख़्तसर यह कि किसी को शिक्षा देकर रात में लौट रहे थे,कि पता नहीं किसने उनका काम लगा दिया. उस्ताद दुनिया से जाते जाते भी परोपकार कर गए.इससे अख़बारों को मसालेदार ख़बर मिली. वे ख़ुद भी मसालेदार जीवन जीते थे. यह उनका अंतिम मसालेदार परोपकार था. उन्होंने किसी गुनगुने क्षण में कहा था कि हर तरह से अख़बारों का पेट भरना हमारा दायित्व है.

बहरहाल,जब भावों के आने जाने की चहल पहल रुकी तो डॉक्टर ने मेरी ओर देखा. फिर हम्म कहा.सामान्य लोग हूं या हां कहते हैं. असामान्य लोग हम्म कहते हैं. उसका हम्म गूंज चुका तो वह ख़ुद गूंज उठा. बोला, आपको दिक्कत तो है मगर ऐसी कोई दिक्कत भी नहीं है. चिंता की बात तो है,मगर कुछ ख़ास चिंता की बात भी नहीं है….मैं एक अच्छा पाठक भी हूं. इस शब्दावली से मेरा पाला रोज़ पड़ता है. मैंने कहा कि डॉक्टर साब,आपने कोई कुंजी छपा रखी हो तो दे दीजिए. मैं घर जाकर आपकी बातों का मतलब निकाल लूंगा. डॉक्टर की बात और राइटिंग को समझने की कोशिश करने वाले को पैथालोजीपाक नरक मिलता है,जो कुंभीपाक नरक से रेटिंग में दो स्टार ज़्यादा है.

डॉक्टर ने पास रखी फाइल से कुछ कागज निकाले. बोला,कुंजी से मतलब न रखो. मैंने दवाइयां लिख दी हैं. उनसे रखो. रेगुलर लेते रहना. हर महीने रेगुलर आते रहना.रेगुलर फीस देते रहना….दवाइयों की सूची लंबी थी. बेइंतिहा दवाइयों की सूची लिखकर एक डॉक्टर को बेपनाह ख़ुशी होती है.यानी मरीज़ को कहीं भी पनाह न मिले,ऐसी हालत में लाकर ही एक डॉक्टर को बेपनाह ख़ुशी मिलती है.मैंने कहा डॉक्टर साब,इतना रेगुलर रहना मेरे बस में नहीं है.मेरा अभ्यास नहीं है.मैं रेगुलर चरित्रवान भी नहीं हूं.क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप हर महीने वाली फीस का मसला ही ख़त्म कर दें.आप मुझे आजीवन फीस का सदस्य बना लीजिए.जैसे पत्रिकाओं की आजीवन सदस्यता ली जाती है,वैसे ही अपनी फीस भी समझिए.

डॉक्टर मुस्कुराया.आइडिया अच्छा है.तय करके बताता हूं….मैंने जानना चाहा कि कोई ख़ास निर्देश मेरे लिए.जिससे चौंचक रह सकूं. डॉक्टर किसी तरह ख़ुश होता दिखा. फिर बोला,यह याद रखो कि तुमको ख़ुश रहना है हमेशा. किसी तरह ख़ुश रहना है. मैं बोला,साब कोशिश तो करता हूं,मगर रह नहीं पाता. अक्सर नाख़ुश हो जाता हूं.समझ नहीं पाता ऐसा क्यों हो जाता है.

डॉक्टर चिंता में पड़ गया,’मैंने आजतक जिसको भी यह सलाह दी है उसने आंख मूंदकर मान ली है.एक तुम ऐसे हो जो इतना कुछ कह रहे हो.पता नहीं मैं सही हूं.या तुम गलत हो.’ डॉक्टर ने कहा ठीक था.जो आंखें मूंदे रहते हैं वे किसी भी बात को सही मान लेते हैं. इसीलिए किसी भी मजहब की पूजा इबादत में आंखें मूंदने का बड़ा महत्व है.मजहब कहता ही है कि आंखें गिरवी रख कर ही सत्य को पाया जा सकता है.

मैंने कहा कि साब, नहीं रह पाता तो क्या करूं. आप तो रास्ता बताओ जो मुझे रास आ जाए.वह बोला,ठीक है आज तुम्हारी फीस दुगुनी.अब तुमको समझाता हूं.तुम किसी भी बात पर कैसे भी चुटकुले पर कैसी भी घटना पर हंसने का रियाज़ करने लगो.मैं परेशान हुआ कि सर,यह कैसे संभव है.हंसने वाली बात पर ही तो हंसा जाएगा.किसी को दुखी देखकर कोई कैसे खुश हो सकता है.डॉक्टर निराश दिखा.इसीलिए तुम बरबाद हो.तुम्हारा फार्मूला मान लें तो डॉक्टर और वकील तो कभी ख़ुश हो ही नहीं सकते.और इसको दर्शन की आंख से देखो.हर बात के दो पहलू होते हैं.जो जनता के लिए मलेरिया जांडिस है,वही हमारे लिए इन्कम है.जो जनता के लिए चोरी डकैती कत्ल है वही किसी के लिए केस तारीख फीस है.

कल्पना करो,करोड़ों का इंवेस्टमेंट करने वाला डॉक्टर जब किसी देवस्थान जाता होगा ,पूजा करता कराता होगा,मनौती मानता होगा …तो क्या कहता होगा! यह तो नहीं ही कहता होगा कि सब सुखी हों सब नीरोग हों.वह ऐसा सोचना भी पाप समझता है.उसको तो सुबह सुबह ऊपर की ओर आंखें या हाथ उठाकर कहना चाहिए,हे प्रभु मुझे शक्ति दो कि आज मैं बहुतों को ऊपर पहुंचा सकूं.हर आदमी धंधे में बरकत चाहता है.

नेता की बरकत मूढ़ जनता से,वकील की झगड़ों से,डॉक्टर की बीमारों से,अखबारों की दे दनादन टाइप ख़बरों से आती है.शहर के कुछ साथियों ने ‘बरकत योग’नामक क्लब की स्थापना की है जिसमें हम साप्ताहिक प्रार्थना करते हैं–हे सर्वशक्तिमान प्रभु,अगर कण कण में ईश्वर है तो क्षण क्षण में बीमार क्यों नहीं हैं. हे रहमदिल,सबको बीमार होने की नेमत अता कर,ओम व्याधिः व्याधिः व्याधिः.इसके बाद हम खुश हो जाते हैं.

मैं चुप रहा.डॉक्टर बोला शायद यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आई.कोई बात नहीं.एक चुटकुला सुनो–

‘दोस्त : साथी ,इनसे मिलो,ये मेरी पत्नी हैं.

साथी :लेकिन सर,गोवा में तो किसी और को आपने पत्नी कहकर मिलवाया था.

दोस्त : तो? उससे क्या हुआ जी .ये मेरी मोबाइल पत्नी हैं.

साथी : और वे!

दोस्त : वे मेरी लैंडलाइन पत्नी हैं.

साथी : यह तो आपने ग़ज़ब किया.’

दोस्त: असली ग़ज़ब तो अब आएगा.वो यह है कि मैं एक मोबाईल में दो दो सिम रखता हूं.

…मैं परेशान होकर बोला, डॉक्टर साब यह चुटकुला तो स्त्री विरोधी है. बल्कि उसका अपमान है. डॉक्टर भड़क उठा, यही समस्या है तुम जैसे पिछड़ों की. तुमको विरोध अपमान से क्या मतलब. तुम मौज लो. खुश रहो. इतना सोचोगे तो बरबाद हो जाओगे. जाओगे क्या हो ही रहे हो.

मैंने निवेदन किया,सर मैं औरों के बारे में सोचता रहता हूं. एक मनुष्य और नागरिक होने के नाते यह मेरा कर्तव्य भी है. मगर आप जो कहेंगे मैं उसी राह पर चलूंगा.

अब डॉक्टर खुश दिखा.बोला,चलो तुमको इतना तो कन्विंस कर लिया.कहा गया है,मन पछितैहे अवसर बीते.अंतहि तोहि तजैंगे पामर तू न तजै अबही ते.इसका मतलब समझो. मन को पछताने न दो.जो मौका मिले लूट लो.जो तुमको कल छोड़ेंगे उनको आज छोड़ दो.खुश रहो.इस कवि ने यूज़ एंड थ्रो नामक महाकाव्य में ऐसा लिखा है.यूज़ करो ,छोड़ दो.बल्कि यूज़ करने और फेंकने के बाद भी अगर वह आदमी सही सलामत दिखे तो वहां जाकर फिर यूज़ करो.याद रखो,कुछ देना न देना मगन रहना.

मैं उदास हो गया कि सर,यह प्रवचन हम जैसे लतमरुओं के लिए नहीं है.हम किसी को क्या यूज़ करेंगे.खुद ही हो रहे हैं.जो पाता है लतिया देता है.

डॉक्टर ख़ुश हुआ.ठीक है.प्वाइंट है तुम्हारा. तब तुम गीता का पाठ करो. सुख में दुख में समान रहो. यह मानकर जाओ कि खुशनुमा अपमान होगा. वहां कोई तीन लातें मारेगा.फिर जब दो पड़ेंगी तो ख़ुशी होगी. अपेक्षा ही दुख का कारण है. जब कभी कहीं हार जाओ तो हार का प्रतिशत निकालो. याद रखो आंकड़े खुश रहने में भारी मदद करते हैं.पूरे देश की खुशी आंकड़ों पर निर्भर है.अब जाओ.फीस खत्म.

मैं अब बहुत खुश था.खुश होना सीख गया था.बाहर आया और किसी अज्ञात को मां की गाली दी.औसत पुरुष ख़ुश होने पर मां और बहन की गाली न दे तो उसे ख़ुश नहीं माना जाता.

Exit mobile version