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सौंदर्य के नये पैमाने रचते कवि प्रवीण सिंह की कविताएं

प्रवीण सिंह पेशे से पत्रकार हैं और वर्तमान में गुजरात के सूरत शहर में एक हिंदी दैनिक अखबार में कार्यरत हैं. इनकी साहित्य में रुचि है और कविता लेखन से जुड़े हैं. मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के रहने वाले हैं. प्रवीण सिंह प्रगतिशील शैली में कविता लेखन करते हैं. संपर्क : 08447388711,ps150525@gmail.com सौंदर्य के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 22, 2017 12:14 PM
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प्रवीण सिंह पेशे से पत्रकार हैं और वर्तमान में गुजरात के सूरत शहर में एक हिंदी दैनिक अखबार में कार्यरत हैं. इनकी साहित्य में रुचि है और कविता लेखन से जुड़े हैं. मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के रहने वाले हैं. प्रवीण सिंह प्रगतिशील शैली में कविता लेखन करते हैं. संपर्क : 08447388711,ps150525@gmail.com

सौंदर्य के नये पैमाने
नहीं कहता तुम्हें मैं
गुलाब कली
भोर का तारा
या सांझ की लालिमा
तो कारण नहीं
कि दिल सूना है
या मेरा प्यार है धुंधला
बस केवल यही है :सारे उपमान
पड़ चुके हैं धुंधले
जैसे कपड़े घिस-घिस कर
छोड़ देते हैं रंग
मगर क्या तुम
नहीं पहचान पाओगे
अगर कहूं तुम्हें,
कास के फूल जैसा
या शरद की सुबह में
लहराती छरहरी
बजरे की बाली
सभ्यता के इस दौर में
जुही के फूल को भले ही
समझा जाता हो,
सौंदर्य का पैमाना
पर इससे अधिक
सच्चे- प्यारे प्रतीक हैं
कास के फूल
या शरद की सूनी सांझ
में डोलती बजरे बाली
न होता राष्ट्रवाद …
डार्विन अच्छा किया तुमने,
बता दिया कि
हम पूर्व में बंदर थे
अब कह सकूंगा खुदा से
इंसानों को फिर से
बंदर कर दे
ना देना दोबारा ऐसा दिमाग,
इसकी बुद्घि को भी
बंजर कर दे,
ताकि ना पनप सके
फिर राष्ट्रवाद .
इस कमजर्फ नें
धरती को लाल कर दिया,
सिर्फ दो सौ सालों में
लाशों से पाट दिया,
देखते ही देखते
इसने दुनिया को
कंटीली बाड़ों में बांट दिया
जब से यह प्रेत आया
धरती ने हिटलर देखा,
मौत का गैस चेंबर देखा,
दो -दो महा युद्ध देखा,
नागासाकी- हिरोशिमा को
पिघलते देखा,
इंसानों को
भाप बनते देखा,
वियतनाम देखा,
इराक देखा,
फिलस्तीन में
मासूमों का चिथड़ा देखा.
न होता यह राष्ट्रवाद,
न बंटती यह धरती,
न गरजती बंदूकें
न जमता कोई
सियाचीन में
न जलता कोई
सहारा की रेत में.
कर सकता हर कोई
यात्राएं धरती के
इस छोर से
उस छोर तक,
बची रह जाती
थोड़ी इंसानियत
प्यास खून की नहीं
पानी की होती,
न होता यह राष्ट्रवाद तो
हम भी पंछी जैसे होते…
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