प्रेम की कोमल भावना से ओतप्रोत सुषमा शर्मा की कविताएं

सुषमा शर्मा मूलत: बिहार की रहने वाली हैं. पेशे से शिक्षिका हैं, लेकिन साहित्य में विशेष रुचि हैं. इनकी कविताओं में प्रेम की कोमल भावना प्रमुखता से मुखरती होती है. संपर्क :sushma2feb@gmail.com 9473361301आज पढ़ें इनकी कविताएं :- अदग दर्पण अंबर का चमकता चांद हो तुम दीप तुम ,…मन का ,आक्षकाम अक्षय ज्योत जला के हमदम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2017 12:39 PM

सुषमा शर्मा मूलत: बिहार की रहने वाली हैं. पेशे से शिक्षिका हैं, लेकिन साहित्य में विशेष रुचि हैं. इनकी कविताओं में प्रेम की कोमल भावना प्रमुखता से मुखरती होती है. संपर्क :sushma2feb@gmail.com 9473361301आज पढ़ें इनकी कविताएं :-

अदग दर्पण
अंबर का चमकता चांद हो तुम
दीप तुम ,…मन का ,आक्षकाम
अक्षय ज्योत जला के हमदम
रौशन कर देते, मेरा जीवन
सांसों में सदैव सुगंध लिये
हर्षित करते ,मेरा तन मन
जीवन में अतुल्य उमंग भरा
एहसास जागते, हो हरदम
इस बात का तो है नाज हमें
अद्वैत और अदास, हो तुम
अर्पण कर दे "सुषमा -सुकमल "
प्रणय भरा यह, जीवन धन
अद्‌भुत और विश्वास भरा
मेरे हो तुम, ‘अदग दर्पण ‘
आज फिर …..।
आज फिर
तुम आ गये ख्वाबों में
मेहमान बनकर
आज फिर
तुम छा गये होंठों पर मेरे
मुस्कान बनकर
आज फिर
फूलों में थी बस
हर वक्त तेरी महक
आज फिर
सांसों में थी बस
तेरे एहसासों की कसक
आज फिर
उन तितलियों में
उमंग भरी उड़ान थी
आज फिर
कोयल की धुन में
गजब की मीठी तान थी
आज फिर
हर रौशनी के
हर किरण में तुम दिखे
आज फिर
इस मन उपवन में
कली बनके तुम हो खिले
आज फिर
दामन को मेरे
छूकर के हवा जो गुजरी
आज फिर
तेरा छुवन
महसूस कर आंचल सिहरी
आज फिर
पलकों नें भी
झुककर तुझे सलाम किया
आज फिर
आंखों ने तुझको
हाले दिल का पैगाम दिया
आज फिर
अपनी जिंदगी को
खुलकर जिया है मैंने
आज फिर
ये दिल बस तेरे
ही नाम किया है मैंने
कल्पना में भी हो तुम
चेतना में भी हो तुम
कामना में भी हो तुम
साधना में भी हो तुम
आत्मरत ना थी कभी मैं
आत्म-विस्मृत हो चुकी थी
आरस्य सी जिंदगी
अब तलक मैं जी रही थी
चिरकांछित स्नेह का
सांसों में सरगम सजाने
आ गये ताउम्र मेरे
दर्द का अवसाद मिटाने
मेरे सुर में भी हो तुम
ताल में बसे हो तुम
गीत और संगीत में भी
गज़ल में भी तुम ही तुम
खो गयी थी स्वर-सरगम
भावनाशून्य हो चुकी थी
होंठ की वह गुनगुनाहट
दर्द बनकर रो रही थी
मेरे उन बेसुर गज़ल का
फिर से तरन्नुम सजाने
आ गये ताउम्र मेरे
दर्द का अवसाद मिटाने
जीत की ख़ुशी में तुम
प्रीत की हंसी में तुम
रूह में बसे हो तुम
स्वर बन सजे हो तुम
खो चुकी थी द्रिक्शक्ति
चेतना शून्य हो चुकी थी
होंठ की वह मुस्कराहट
मान मंदिर जा चुकी थी
मेरे उन खामोश अधर पर
फिर से तरन्नुम सजाने
आ गये ताउम्र मेरे
दर्द का अवसाद मिटाने

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