नया ज्ञानोदय का स्त्री स्वर अंक आ गया है. इस अंक के बारे में बताते हुए प्रसिद्ध कवि, लेखक और पत्रकार विमल कुमार ने लिखा है. नया ज्ञानोदय पढ़ रहा हूं. मंडलोई इधर अंक अच्छे निकाल रहे हैं. इस अंक में कई नयी कवयित्रियों को छापा गया है.
कुछ वर्षों में बाबुषा कोहली देवयानी भारद्वाज लीना मल्होत्रा दास लवली गोस्वामी शैलजा पाठक यशवशिनी पांडेय संध्या निवेदिता अनुराधा सिंह की कविताओं ने ध्यान खींचा है. 84 के आस पास इसी तरह गगन गिल शुभा तेजी ग्रोवर अनामिका सविता सिंह कात्यायनी हिंदी कविता के परिदृश्य पर आयी थीं. हालांकि अब अच्छी कविता लिखना अधिक चुनौती पूर्ण हो गया है क्योंकि समाज मे संकट गहरा हुआ है.
वैचारिक संकट भी बढ़ा है. राजनीतिक पतन सांप्रदायिकता स्त्रियों पर हिंसा बढ़ी है और बाजार का नंगा नाच शुरू हो गया है. ऐसे में ये कवयित्रियां कविता में नये शिल्प नयी भाषा के साथ यथार्थ की इस भयावहता को कैसे चित्रित करें. नया ज्ञानोदय को पढ़ते हुए यह सवाल मेरे मन में आया. समकालीन स्त्री स्वर पर एक किताब लिखने की अब जरूरत है.