17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गांव के बदलते स्वरूप पर प्रणय प्रसून वाजपेयी की कविता

यह हमारे गांव की कहानी है. कमोबेश यही भारत के गांव की कहानी बनती जा रही है. गांवों का चेहरा किस कदर विद्रूप हुआ है, यहां इसकी बात की गयी है. और इस ओर से हम बेखबर बने हुए हैं. गांव को अपने हाल पर छोड़ दिया है. दूसरी ओर डिजिटल भारत बन रहा है. […]

यह हमारे गांव की कहानी है. कमोबेश यही भारत के गांव की कहानी बनती जा रही है. गांवों का चेहरा किस कदर विद्रूप हुआ है, यहां इसकी बात की गयी है. और इस ओर से हम बेखबर बने हुए हैं. गांव को अपने हाल पर छोड़ दिया है. दूसरी ओर डिजिटल भारत बन रहा है. हम विकास-विकास खेल रहे हैं. कंक्रीट के बनते मकानों के बीच हमारा गांव गुम हो गया है.

एक आदमी,एक गांव को जिंदा रहने के लिए जो चीजें चाहिए होता है, अब वह ही नहीं रहा. गांव से गवंईपन गायब है. आपसी प्रेम-भाईचारा मिट गया है. चौपाल का रिवाज ख़त्म हो रहा है. आपसी सहमति-असहमति के लिए कोई स्पेस नहीं है. यहां भी लोग भाग-दौड़ रहे हैं. जाहिर सी बात है, अब गांव पहले जैसा नहीं रहा. रहना भी नहीं चाहिए. पर इस दौर में गांव से जीवन भी तो समाप्त हो गया. लोग बदल रहे हैं. या कहें अपने भारत की छवि खुद-ब-खुद बिगाड़ रहे हैं. अपने आपको और देश-समाज को कमजोर बना रहे हैं.

तो क्या कभी किसी चुनाव में गांव हमारे लिए मुद्दा बनेगा ? हम इसको लेकर कब चेतेंगे और सोचेंगे. और इसके लिए हम ग्रामीणों को ही पहल करनी होगी.

नया ज्ञानोदय का स्त्री स्वर अंक उपलब्ध, नयी कवयित्रियों को मिला स्थान

यहां पेशे से पत्रकार रहे #प्रणय_प्रसून_बाजपेयी की लिखी कविता लगा रहा हूं. दिल्ली से आकर इन दिनों गांव में रहते हैं. चाहते हैं कि गांव को लेकर एक सिस्टम डेवलप हो. नये के समावेश के साथ कुछ पुरानी परिपाटी को बरकरार रखा जाये. लोग सिविक सेंस को समझें. उनकी कविता में व्यंग है. और यह भी कि उन्होंने किसप्रकार से गांव को समझा है.
वे काली चाय के शौकीन हैं. खूब पीते और पिलाते हैं. कहते हैं -इससे ताकत मिलती है निगेटिव ताकतों और क्रियाकलापों से लड़ने-जूझने में.” चाहते हैं उनका गांव पहले की तरह ही खूबसूरत बने. फ़िलहाल उनकी लिखी कविता पढ़ें.
मशालें बुझा चुके हैं,लोग मेरे गांव के
अंधेरों में जी रहे हैं, लोग मेरे गांव के
उजालों की चाहत नहीं है मेरे गांव को
कह रही है झोपड़ी और पूछते हैं खेत भी
कब तक धृतराष्ट्र बने रहेंगे लोग मेरे गांव के
झूठ और फरेब से पैसा बना रहे हैं लोग मेरे गांव के
यह नशा ऐसा चढ़ा कि अब झूठ और फरेब की ही
फसल उगा रहे लोग मेरे गांव के
जब मन की गंदगी साफ नहीं कर पाये तो
गली-कूचों की गंदगी क्या साफ करेंगे, लोग मेरे गांव के
सर झुकाकर और सर छुपा कर
नजरें चुराकर और हाथ बांधकर
खड़े हैं लोग मेरे गांव के
खून गर्म नहीं होता है मेरे गांव का
जुबां पे ताला लगाकर हर हालात और बात को
मौन स्वीकृति देते हैं,लोग मेरे गांव के
यहां की फिजां में सिर्फ जहर और नफरत बसती
हर सच्ची बात पर नजरें चुरा लेते हैं
लोग मेरे गांव के
स्वार्थ से कमजोर हुये लोग मेरे गांव के
आंधी और तूफान में शुतुरमुर्ग की तरह
सर झुकाये बैठे हैं,लोग मेरे गांव के
जुबां तो रही नहीं
अब सांसें भी ख़त्म हो रही है मेरे गांव की
अब कबूतर बन गये हैं लोग मेरे गांव के
प्रणय प्रसून वाजपेयी चर्चित-वरिष्ठ टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी के अग्रज हैं. (साभार Prawin Tiwary के फेसबुक वॉल से)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें